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Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 18 जून 2017 (11:09 IST)

राष्‍ट्रपति चुनाव : प्रधानमंत्री ने नहीं दिया पार्टी का साथ, हार गया उम्मीदवार

राष्‍ट्रपति चुनाव : प्रधानमंत्री ने नहीं दिया पार्टी का साथ, हार गया उम्मीदवार - President election
नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में आम तौर पर सत्तारुढ़ दल का उम्मीदवार ही विजयी रहता है लेकिन एक ऐसा चुनाव भी था जिसमें प्रधानमंत्री ने ही अपनी पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया और उसे हार का सामना करना पड़ा।
 
यह रोचक चुनाव 1969 में हुआ था जिसमें निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरि सत्तारुढ़ कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को मात देकर देश के राष्ट्रपति बने थे। अब तक का यह एक मात्र चुनाव है जिसमें पहले दौर की मतगणना में कोई भी उम्मीदवार जीत के लिए जरुरी मत हासिल नहीं कर सका था तथा दूसरी वरीयता के मतों की गणना तथा निचले क्रम के उम्मीदवारों को एक एक करके बाहर किए जाने के बाद चुनाव परिणाम का फैसला हो सका था।
 
तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मई 1969 में मृत्यु हो जाने पर यह चुनाव कराना पड़ा था। देश के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी राष्ट्रपति की उसके कार्यकाल के मध्य में ही मृत्यु हो गई थी। तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे। उस समय तक उप राष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने की एक परंपरा सी थी जो 1969 के चुनाव में टूट गई। 
 
यह वह दौर था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा था तथा वह अपने को एक मजबूत नेता के रुप में स्थापित करने की जद्दोजहद में जुटी थीं। इंदिरा विरोधी सिंडीकेट नेताओं ने इस राष्ट्रपति चुनाव को इंदिरा गांधी को नीचा दिखाने के एक मौके रुप में इस्तेमाल करने का प्रयास किया।
 
उन्होंने वी वी गिरि को उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनाने की जगह संजीव रेड्डी को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव किया। इंदिरा गांधी ने उम्मीदवार के रुप में जगजीवन राम का नाम आगे किया। कांग्रेस संसदीय बोर्ड में बहुमत पक्ष में नहीं होने के कारण उनकी नहीं चली और मजबूरन उन्हें पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रुप में संजीव रेड्डी के नाम प्रस्ताव करना पड़ा।
 
इसी बीच वी वी गिरि ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। ऐसा माना गया कि वह इंदिरा गांधी के इशारे पर ही चुनाव मैदान में उतरे हैं। यह बात उस समय सही होती प्रतीत हुई जब कांग्रेस संसदीय दल के नेता के रुप में इंदिरा गांधी ने पार्टी व्हिप जारी करने से मना कर दिया तथा चुनाव में सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की।
 
सोलह अगस्त को हुए इस चुनाव की मतगणना 20 अगस्त को कराई गई जो उतार चढ़ाव से भरी रही। कुल 836637 वोट पड़े थे और चुनाव जीतने का कोटा 418469 का था। पहले दौर की मतगणना में गिरि को 401515 मत तथा रेड्डी को 313548 मत मिले। इसलिए दूसरी वरीयता के मतों की गणना कराई गई। इस चुनाव में कुल 15 उम्मीदवार मैदान में थे।
 
मतगणना के दौरान निचले क्रम के उम्मीदवारों को एक करके बाहर कर उनकी दूसरी वरीयता के मत पहले और दूसरे स्थान के उम्मीदवार को दिए गए। इस तरह गिरि 420077 मत हासिल कर विजयी घोषित किए गए। रेड्डी को 405427 मत मिले। विपक्षी जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार सी डी देशमुख 112769 मत ही हासिल कर सके। (वार्ता) 
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