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Last Modified: सोमवार, 3 जून 2019 (14:43 IST)

हिन्दी पर विवाद, सरकार को करना पड़ा मसौदे में संशोधन

हिन्दी पर विवाद, सरकार को करना पड़ा मसौदे में संशोधन - Prakash Javadekar's statement on Hindi language controversy
नई दिल्ली। मोदी सरकार के सत्ता संभालते ही हिन्दी भाषा को दक्षिण के राज्यों में कथित रूप से थोपे जाने को लेकर इतना विवाद खड़ा हो गया कि नई शिक्षा नीति के प्रारूप में संशोधन करना पड़ा है।
 
नई शिक्षा नीति का मसौदा जब 31 मई को सरकार को सौंपा गया तो दक्षिण भारत में हिन्दी को थोपे जाने का विरोध शुरू हो गया। वामदलों ने भी हिन्दी को थोपे जाने का कड़ा विरोध किया।
 
तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शाम को एक स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा, जिसमें कहा गया कि सरकार किसी पर कोई भाषा नहीं थोपेगी। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी स्पष्टीकरण जारी किया कि सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले को अभी लागू नहीं किया गया है और सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है और यह केवल नई शिक्षा नीति का मसौदा है, इस पर लोगों की राय आने के बाद ही इसे लागू किया जाएगा। 
 
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप जावड़ेकर के कार्यकाल में तैयार हुआ था, जब वह पूर्व सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे। लेकिन उनके स्पष्टीकरण के बाद भी यह विवाद थमा नहीं और दक्षिण के नेता इससे संतुष्ट नहीं हुए।
 
तब रविवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने भी ट्वीट करके कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्री को जो नई शिक्षा नीति पेश की गई है वह एक प्रारूप रिपोर्ट है। इस पर लोगों से राय ली जाएगी और सरकार से इस पर विचार विमर्श किया जाएगा और इसके बाद ही प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा। सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है, इसलिए कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
 
नई शिक्षा नीति के मसौदे में भारत में बहु-भाषिकता की अनिवार्यता की बात कही गई है और अंग्रेजी की जगह मातृभाषा पर जोर दिया गया है तथा स्कूलों में त्रिभाषा को अनिवार्य माना गया है तथा निरंतरता की बात कही गई है। मसौदे के अनुसार इसे 1968 के बाद से नई शिक्षा नीति में अपनाया गया है। 1992 में भी इसे लागू किया गया और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के फ्रेमवर्क में भी इस पर जोर दिया गया। सूत्रों के अनुसार अब मसौदे से अनिवार्यता शब्द को हटा दिया है और भाषा के चयन में लचीलेपन की बात कही गई है।
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