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Last Updated : मंगलवार, 21 मार्च 2017 (20:08 IST)

'नोटबंदी' पर सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया यह सवाल...

'नोटबंदी' पर सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया यह सवाल... - Notbadi, Supreme Court, Central Government
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि उसने उन लोगों के लिए अलग श्रेणी बनाने का फैसला क्यों नहीं किया, जो चलन से बाहर हो चुके नोटों को 30 दिसंबर 2016 तक जमा नहीं करवा पाए थे, जबकि प्रवासी भारतीयों और विदेशों में मौजूद भारतीयों के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है।
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने आठ नवंबर के संबोधन में कहा था कि वैध कारणों वाले लोग 30 दिसंबर 2016 के बाद भी 31 मार्च 2017 तक चलन से बाहर हो चुके नोटों को जमा करवा सकते हैं।
 
पीठ ने कहा, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि वास्तविक मुश्किलों वाले लोग चलन से बाहर हो चुके नोटों को 30 दिसंबर 2016 के बाद भी भारतीय रिजर्व बैंक की शाखाओं में 31 मार्च 2017 तक जमा करवा सकते हैं। हमें इस बात की वजह बताइए कि कानून के तहत शक्तियां होने के बावजूद आपने उन लोगों के लिए एक श्रेणी क्यों नहीं बनाई, जो चलन से बाहर हो चुके नोटों को  30 दिसंबर 2016 से पहले जमा नहीं करवा पाए। 
 
न्यायालय की पीठ ने कहा कि प्रधानमंत्री के संबोधन ने यह उम्मीद जगाई थी कि मुश्किल में फंसे लोगों को वैध कारण दिए जाने की स्थिति में 31 मार्च 2017 तक एक मौका मिलेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार को 11 अप्रैल तक एक हलफनामा दायर करके यह बताना चाहिए कि उसने मुश्किल में फंसे लोगों के लिए खिड़की क्यों नहीं बनाई और क्यों यह मौका सिर्फ प्रवासी भारतीयों या उन्हीं नागरिकों को दिया गया, जो विदेश यात्रा पर थे।
 
न्‍यायालय ने केंद्र से यह भी पूछा कि वास्तविक वजहों के चलते अप्रचलित नोटों को जमा करवाने में विफल रहे लोगों को क्या वह एक मौका देना चाहता है? शीर्ष अदालत ने छह मार्च को केंद्र और आरबीआई से इस सवाल का जवाब मांगा था कि चलन से बाहर हो चुके नोटों को वादे के मुताबिक 31 मार्च तक स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा। उच्चतम न्यायालय ने चलन से बाहर हो चुकी मुद्रा को बदलने से जुड़े नियमों से छेड़छाड़ के खिलाफ दायर याचिका पर 10 मार्च को केंद्र और आरबीआई से जवाब मांगा था।
 
याचिकाकर्ता सुधा मिश्रा के वकील ने कहा था कि पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की ओर से देश के नाम दिए गए संबोधन और फिर संघीय बैंक की अधिसूचना में यह बात कही गई थी कि चलन से बाहर हो चुके नोटों को आरबीआई कार्यालयों में 31 मार्च 2017 तक बदला जा सकता है। ये दोनों ही वैध आश्वासन थे, लेकिन अध्यादेश के जरिए इनका उल्लंघन किया गया।
 
याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री और आरबीआई ने लोगों को मोटे तौर पर यह आश्वासन दिया था कि चलन से बाहर हो चुके नोटों को बैंकों, डाकघरों और आरबीआई शाखाओं में 30 दिसंबर 2016 तक बदला जा सकता है। यदि लोग उस दिन तक इन्हें जमा करवाने में विफल रहते हैं तो वे कुछ औपचारिकताओं को पूरा करके 31 मार्च 2017 तक ऐसा कर सकते हैं।
 
याचिकाकर्ता ने विशिष्ट बैंक नोटों की देनदारी की समाप्ति संबंधी अध्यादेश का हवाला दिया और कहा कि इसने आश्वासन का उल्लंघन किया है। अध्यादेश में कहा गया कि जो लोग विदेशों में थे, सुदूर इलाकों में तैनात सशस्त्र बलों के जवान हैं या वे अन्य लोग, जो अप्रचलित हो चुके नोटों को जमा न करा पाने की वैध वजहें बता सकते हैं, वे लोग चलन से बाहर हो चुके 500 रुपए या 1000 रुपए के नोटों को समय सीमा 30 दिसंबर 2016 के निकल जाने के बाद भी इस साल 31 मार्च तक जमा करवा सकते हैं।
 
केंद्र एक ऐसा अध्यादेश लेकर आया, जिसके जरिए बड़ी संख्या में अप्रचलित नोटों को अपने पास रखना दंडनीय अपराध बना दिया गया और इस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। कुल मुद्रा के 15.4 लाख करोड़ रुपए अप्रचलित कर दिए गए और लगभग 14 लाख करोड़ रुपए ही 28 दिसंबर तक बैंकों में जमा कराए गए या बदले गए। (भाषा) 
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