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फिल्मी हीरोइन से कद्दावर नेता जयललिता

फिल्मी हीरोइन से कद्दावर नेता जयललिता - Jayalalithaa
जयललिता जयराम का सोमवार की रात को 68 साल की उम्र में निधन हो गया। जयललिता तमिलनाडु की ऐसी राजनेता और मुख्यमंत्री रहीं हैं,  जिन्हें जनता का अभूतपूर्व समर्थन हासिल था। अपने समर्थकों में 'अम्मा' के नाम से लो‍कप्रिय जयललिता के ऐसे समर्थक भी हैं, जो कि उन पर छोटे से छोटा संकट आने पर अपनी जान भी देने को तैयार रहते हैं, लिहाजा पूरे राज्य को अलर्ट पर रखा गया है।  तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास ऐसी बहुत सारी घटनाओं से भरा पड़ा है। हाल ही उनकी बीमारी के चलते न केवल आम जनजीवन वरन तमिलनाडु की समूची सरकार की उसी अस्पताल में शिफ्ट हो गई है, जहां उनका इलाज किया जा रहा था । 
जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को मैसूर शहर में हुआ था, जो कि कर्नाटक में है लेकिन बचपन के संघर्ष के चलते उन्हें अपनी मां के साथ मैसूर से चेन्नई आना पड़ा। जयललिता जयराम ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की महासचिव तथा तमिलनाडु राज्य की मुख्यमंत्री हैं। वे उन कुछ खास पूर्व प्रतिष्ठित सुपरस्टार्स में से हैं जिन्होंने न सिर्फ सिनेमा के क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित की बल्कि तमिलनाडु की राजनीति में भी अपनी अहम छाप छोड़ी। 
 
राजनीति में प्रवेश से पहले वे एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल, तेलुगु, कन्नड़ फिल्मों के साथ-साथ एक हिन्दी और एक अंग्रेजी फिल्म में भी काम किया है। उन्होंने अपने समय के सुपरस्टार और अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचन्द्रन के साथ दर्जनों फिल्मों में काम किया है। फिल्मों में काम करने के दौरान दोनों के अंतरंग संबंध भी रहे जिसके चलते एमजीआर (रामचन्द्रन) ने उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। 
 
सन् 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनने वाली वे प्रथम महिला थीं। वर्तमान समय में तमिलनाडु की मौजूदा राजनी‍ति में जयललिता का ठोस नियंत्रण है। सन् 1991 में वे पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। सन् 2011 में जनता ने 5 बार जयललिता को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री चुना। उन्होंने राज्य में कई कल्याणकारी परियोजनाएं शुरू कीं। अपने शुरुआती कार्यकाल में जयललिता ने जल संग्रहण परियोजना और औद्योगिक क्षेत्र के विकास की योजनाओं जैसे विकास के कार्य किए।
 
अभिनय की दुनिया में
 
अपने फिल्मी करियर में उन्होंने सन् 1965 से सन् 1972 के दौर में ज्यादातर फिल्में एमजी रामचन्द्रन के साथ की और सन् 1982 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भी एमजी रामचन्द्रन के साथ की। सन् 1984 में उन्हें तमिलनाडु से राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। सन् 1987 में रामचन्द्रन के निधन के बाद जयललिता ने खुद को एमजी रामचन्द्रन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अपने राजनीतिक जीवन में जयललिता भ्रष्टाचार के मामलों में विवादों में भी रहीं। भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें कोर्ट से सजा भी हो चुकी थीं।
 
जिन्हें हम जयललिता के नाम से भी जानते थे, उनका बचपन का नाम कोमलवल्ली था जिनका जन्म 24 फरवरी 1948 को मैसूर में वेदावल्ली और जयराम के घर हुआ था। उनके परिवार का संबंध मैसूर के राजसी खानदान से रहा है। उनके दादाजी मैसूर दरबार में शाही चिकित्सक थे और उन्होंने अपने परिवारजनों के नाम के प्रारंभ में ‘जय’ शब्द लगाना प्रचलित किया ताकि लोगों को यह ज्ञात हो कि उनका सामाजिक संबंध मैसूर के राजा जयचामराजेंद्र वाडेयार से है। जयललिता जब मात्र 2 वर्ष की थीं तब उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद वे अपनी माता और नाना-नानी के साथ रहने बेंगलुरु आ गईं। 
 
बेंगलुरु में जयललिता ने कुछ साल तक बिशप कॉटन गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की और फिर उनकी माताजी फिल्मों में अपना भाग्य आजमाने चेन्नई चली गईं। चेन्नई आने के बाद उन्होंने चर्च पार्क प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट और स्टेला मारिस कॉलेज के शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही जयललिता बहुत बुद्धिमान विद्यार्थी थी और वे कानून की पढ़ाई करना चाहती थी लेकिन उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। परिवार की आर्थिक परेशानियों के कारण उनकी माताजी ने उन्हें फिल्मों में काम करने का सुझाव दिया। महज 15 साल की आयु में जयललिता ने अपने आपको प्रमुख अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया।
 
जयललिता ने अपने अभिनय की शुरुआत शंकर वी गिरि की एक अंग्रेजी 'एपिस्टल' फिल्म से की थी, पर इस फिल्म से उन्हें कोई पहचान नहीं मिली। सन् 1964 में जयललिता की पहली कन्नड़ फिल्म ‘चिन्नाडा गोम्बे’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म को आलोचकों ने काफी सराहा और जनता ने भी इसे बेहद पसंद किया। 1 साल के बाद उन्होंने तमिल फिल्म ‘वेंनिरा अडाई’ में काम किया और उसके तुरंत बाद उन्होंने तेलुगु सिनेमा में भी प्रवेश किया। अगले कुछ सालों में तमिल फिल्मों में अपने प्रभावशाली अभिनय के कारण वे एक प्रतिष्ठित कलाकार बन गईं। सिनेमा के परदे पर एमजी रामचन्द्रन के साथ उनकी जोड़ी काफी सफल रही और दर्शकों ने भी इस जोड़ी को बेहद पसंद किया।
 
अपने फिल्मी सफर के आखिरी वर्षों में उन्होंने जयशंकर, रविचन्द्रन और शिवाजी गणेशन जैसे नामी अभिनेताओं के साथ भी काम किया। सन् 1968 में उन्होंने एकमात्र हिन्दी फिल्म ‘इज्जत’ में काम किया जिसमें धर्मेन्द्र मुख्य अभिनेता थे। 1980 के दशक में उनका फिल्मी करियर थोड़ा धीमा हो गया। उनकी आखिरी फिल्म थी ‘नाधियाई ठेडी वन्धा कदल’ जिसके बाद उन्होंने राजनीति से जुड़ने का फैसला किया।
 
राजनीतिक जीवन की सफलताएं 
 
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके या अन्नाद्रमुक) के संस्थापक एमजी रामचन्द्रन ने उन्हें पार्टी प्रचार सचिव नियुक्त किया और 4 वर्ष बाद सन् 1984 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया। कुछ ही समय में वे एआईएडीएमके की एक सक्रिय सदस्य बन गईं। उन्हें एमजीआर का करीबी राजनीतिक साथी माना जाने लगा और प्रसार माध्यमों में भी उन्हें एमजीआर के उत्तराधिकारी के रूप में माना गया। जब एमजी रामचन्द्रन मुख्यमंत्री बने तो जयललिता को पार्टी के महासचिव पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। 
 
उनकी मृत्यु के बाद पार्टी के कुछ सदस्यों ने एमजीआर की पत्नी जानकी रामचन्द्रन को अन्नाद्रमुक की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी बनाना चाहा और इस कारण से पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। एक गुट जयललिता को समर्थन दे रहा था और दूसरा गुट जानकी रामचन्द्रन का समर्थक था। सन् 1988 में पार्टी की भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत मान्यता खत्म कर दी गई, लेकिन सन् 1989 में एआईएडीएमके फिर से संगठित हो गई और जयललिता को पार्टी का प्रमुख बनाया गया। उसके पश्चात भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों और विवादों के बावजूद जयललिता ने 1991, 2002 और 2011 में विधानसभा चुनाव जीते।
 
राजनीतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैरकानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे हैं। उन्हें ‘आय से अधिक संपत्ति’ के एक मामले में 27 सितंबर 2014 को सजा भी हुई और मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 11 मई 2015 को उन्हें आरोपों से बरी कर दिया जिसके बाद वे पुन: तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं। फिल्म और राजनीतिक जीवन में उन्हें बहुत से पुरस्कार व सम्मान हासिल हुआ। 
 
उनकी तमिल फिल्म ‘पत्तिकादा पत्तानमा’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ तमिल अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया था। फिल्म ‘श्री कृष्णा सत्या’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ तेलुगु अभिनेत्री का पुरस्कार उन्होंने जीता था। एक अन्य फिल्म ‘सुर्यकंथी’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ तमिल अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था और तमिलनाडु सरकार की ओर से कलैममानी पुरस्कार दिया गया।
 
उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय की ओर से साहित्य में मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी गई तो डॉ. एमजीआर मेडिकल विश्वविद्यालय, तमिलनाडु ने उन्हें विज्ञान में मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। उन्हें तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने भी विज्ञान में मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। उन्हें भारतीदासन् विश्वविद्यालय ने भी साहित्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी और डॉ. आम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय ने उन्हें कानून में मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी। 
 
तमिलनाडु में 6ठी बार मुख्यमंत्री का पदभार संभालने वाली अन्नाद्रमुक की मुखिया जे. जयललिता ने 3 दशक के अपने उतार-चढ़ाव वाले राजनीतिक करियर में फिर से नया अध्याय शुरू किया। बीते 19 मई को हुए चुनाव के नतीजों से जयललिता ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे तमिलनाडु की राजनीति की एक सशक्त धुरी हैं।
 
इस बार तो उन्होंने लंबे समय से चली आ रही बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन की परिपाटी को ध्वस्त करते हुए अपनी पार्टी को लगातार दूसरी बार जीत दिलाई। तमिलनाडु में 1984 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता बरकरार रखने में सफल रही।
 
‘पुरची तलैवी’ (क्रांतिकारी नेता) के तौर पर पहचानी जाने वालीं 68 वर्षीय अन्नाद्रमुक सुप्रीमो ने चुनौतियों के बावजूद मजबूती के साथ खड़े रहने की अपनी एक छवि बनाई है, हालांकि भ्रष्टाचार के आरोप के कारण उनको दो बार पद छोड़ना पड़ा। बाद में उन्होंने वापसी भी की। सिर पर एमजी रामचन्द्रन जैसे दिग्गज का हाथ होने के बावजूद जयललिता को सियासत के शुरुआती दिनों में संघर्ष करना पड़ा।  
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