जया केस में सरकारी वकील की नियुक्ति गलत
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा है कि जे. जयललिता से जुड़े आय से अधिक संपत्ति के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय में पेश होने के लिए वकील भवानी सिंह को विशेष सरकारी वकील के रूप में नियुक्त करने का कोई अधिकार तमिलनाडु सरकार के पास नहीं है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने कहा कि विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति कानूनन अनुचित है, वह अन्नाद्रमुक प्रमुख समेत अन्य दोषियों की अपीलों की नए सिरे से सुनवाई का समर्थन नहीं करती।
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु को कोई अधिकार नहीं है कि वह प्रतिवादी संख्या चार (सिंह) को विशेष सरकारी वकील के रूप में नियुक्त करे। न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायामूर्ति प्रफुल्ल सी. पंत की सदस्यता वाली इस पीठ ने यह भी कहा कि यह न्यायामूर्ति मदन बी. लोकुर के उन निष्कर्षों का समर्थन नहीं करती कि उच्च न्यायालय के समक्ष अपील पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए।
पीठ ने द्रमुक नेता के. अंबझगन और कर्नाटक को भी अनुमति दी कि वे मंगलवार तक उच्च न्यायालय के समक्ष अपने लिखित हलफनामा दाखिल कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय इस मामले में अंबझगन और राज्य के निवेदनों पर गौर करने के बाद फैसला सुना सकता है।
विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति के कानूनी प्रावधानों के बारे में पीठ ने कहा कि सिंह की नियुक्ति सिर्फ निचली अदालत में सुनवाई के लिए थी।
शीर्ष अदालत ने विशेष सरकारी वकील के रूप में सिंह की नियुक्ति के मुद्दे पर अपना फैसला 22 अप्रैल को सुरक्षित रख लिया था और कहा था कि यह नियुक्ति प्रथम दृष्ट्या अनियमितताओं से घिरी लगती है लेकिन वह उच्च न्यायालय के समक्ष नए सिरे से सुनवाई की अनुमति नहीं देगी।
द्रमुक नेता ने इस मामले में विशेष सरकारी वकील के रूप में नियुक्त सिंह को हटाने की याचिका दायर की थी। पीठ ने द्रमुक नेता को भी यह अनुमति दी कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष अपना निवेदन दायर करें ताकि वह जयललिता और अन्य द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाने से पहले इस निवेदन पर गौर कर ले।
न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर और न्यायमूर्ति आर. भानुमति के खंडित निर्णय के बाद यह मामला 15 अप्रैल को वृहद पीठ के पास भेज दिया गया था। (भाषा)