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Last Updated : शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016 (19:17 IST)

कम नहीं हुआ सिन्धु जल संधि को तोड़ने का दबाव

कम नहीं हुआ सिन्धु जल संधि को तोड़ने का दबाव - Indus Waters Treaty
श्रीनगर। अब जबकि सीमाओं पर युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं तथा राज्य में पिछले 26 सालों से पाकिस्तान समर्थक आतंकवाद मौत का नंगा नाच खेल रहा है, ऐसे में जलसंधि को तोड़ने की मांग बढ़ी है। यही नहीं, सेना तो कहती है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी अगर भारत जलसंधि के ‘परमाणु बम’ को पाकिस्तानी जनता के ऊपर फोड़ देता है अर्थात अगर वह जलसंधि को तोड़कर पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोक लेता है तो पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा और बदले में भारत जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान को अपना हाथ पीछे खींचने के लिए मजबूर कर सकता है।
इस सच्चाई से पाकिस्तान भी वाकिफ है कि भारत का ऐसा कदम उसके लिए किसी परमाणु बम से कम नहीं होगा। यही कारण है कि वह इस जलसंधि के तीसरे गवाह कह लीजिए या फिर पक्ष, विश्व बैंक के सामने लगातार गुहार लगाता आ रहा है कि वह भारत को ऐसा करने से रोके।
 
हालांकि यही एक कड़वी सच्चाई है कि भारत के लिए ऐसा कर पाना अति कठिन होगा, विश्व समुदाय के दबाव के चलते। लेकिन आम नागरिकों का मानना है कि अगर देश को पाकिस्तानी आतंकवाद से बचाना है तो उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना स्वीकार नहीं करना होगा। नागरिकों के मुताबिक अगर भारत, पाकिस्तानी चालों के आगे झुक जाता है तो कश्मीर में फैला आतंकवाद कभी भी समाप्त नहीं होगा।
 
परिणामस्वरूप इस जलसंधि को लेकर अक्सर नई दिल्ली में होने वाली वार्षिक बैठकों से पहले यह स्वर उठता रहा है कि इसे समाप्त करने की पहल कर पाकिस्तान पर ‘परमाणु बम’ का धमाका कर देना चाहिए, जो अनेक परमाणु बमों से अधिक शक्तिशाली होगा और पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
 
सिन्धु जल संधि पर 1993 से 2011 तक पाकिस्तान के कमिश्नर रहे जमात अली शाह कहते हैं कि इस समझौते के नियमों के मुताबिक कोई भी एकतरफा तौर पर इस संधि को रद्द नहीं कर सकता है या बदल सकता है। दोनों देश मिलकर इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या एक नया समझौता बना सकते हैं। 
 
उधर पानी पर वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेल्लानी लिखते हैं कि भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है।
क्या है सिंधु जल समझौता... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 
 

क्या है सिन्धु जल समझौता? :  सिन्धु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफगानिस्तान (6 प्रतिशत) में है। सिन्ध नदी उत्तर में हिमालय की पहाड़ियों से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा होते हुए पाकिस्तानी पंजाब, सिन्ध, बलोचिस्तान को पार करते हुए अरब सागर में जाकर खत्म होती है। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिन्धु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं।
सिन्धु जल संधि के पीछे की कहानी : अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर इस समझौते के पीछे की कहानी है। ऐरान वोल्फ और जोशुआ न्यूटन अपनी केस स्टडी में बताते हैं कि ये झगड़ा 1947 भारत के बंटवारे के पहले से ही शुरू हो गया था, खासकर पंजाब और सिन्ध प्रांतों के बीच।
 
1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ आने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था। जमात अली शाह के अनुसार 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने 2 प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पर हालात खराब हो गए थे।
 
भारत के इस कदम के कई कारण बताए गए थे जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था। बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राजी हो गया था। स्टडी के मुताबिक 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और वापस अमेरिका लौटकर उन्होंने सिन्धु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा। ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया। 
 
और फिर शुरू हुआ दोनो पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला। ये बैठकें करीब एक दशक तक चलीं और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिन्धु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
 
 
सिन्धु जल संधि की प्रमुख बातें... 
 
1. समझौते के अंतर्गत सिन्धु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलुज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिन्धु को पश्चिमी नदी बताया गया।
 
2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भारत बिना रोक-टोक के इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी। अनुबंध में बैठक, साइट इंस्पेक्शन आदि का प्रावधान है।
 
3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिन्धु आयोग की स्थापना की गई। इसमें दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था। ये कमिश्नर हर कुछ वक्त में एक-दूसरे से मिलेंगे और किसी भी परेशानी पर बात करेंगे।
 
4. अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिजाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ पाता है तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी।
 
5. इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है।
 
संधि पर राजनीति : भारत में एक वर्ग का मानना रहा है कि इस समझौते से भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा है। जम्मू-कश्मीर सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल करोड़ों का आर्थिक नुकसान हो रहा है। संधि पर पुनर्विचार के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया था जबकि भारत सरकार की सोच ये भी है पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए कर रहा है।
 
विश्लेषक ब्रह्म चेल्लानी अखबार में लिखते हैं कि भारत ने 1960 में ये सोचकर पाकिस्तान से संधि पर हस्ताक्षर किए कि उसे जल के बदले शांति मिलेगी लेकिन संधि के अमल में आने के 5 साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया था और अब चीन पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में बड़े डैम बना रहा है, पाकिस्तान भारत की छोटी परियोजनाओं पर आपत्तियां उठा रहा है।
 
क्या है सिंध दरिया की कहानी... पढ़ें अगले पेज पर....

सिन्ध दरिया की कहानी : जिस सिन्धु या सिन्ध दरिया के किनारे इतना बड़ा आयोजन होने जा रहा है उसकी कथा भी कम रोचक नहीं है। कहा यह जाता है कि वेदों में पवित्र दरिया गंगा का उल्लेख मात्र दो बार हुआ है जबकि जिस दरिया का उल्लेख 30 बार हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि सिन्धु दरिया ही है, जो पूरे हिमालय में बहता है।
 
कहा जाता है कि रामायण में इसे 'महानदी' के रूप में चित्रित किया गया है तो ग्रीक तथा रोम के शासनकाल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यों में भी इसे स्थान मिला है जबकि महाभारत में भी गंगा तथा सरस्वती नदियों के साथ-साथ सिन्धु दरिया का उल्लेख कई बार आता है।
 
यह याद रखने योग्य तथ्य है कि सिन्धु दरिया ने ही सिन्ध तथा हिन्द नाम दिए हैं। इतना ही नहीं, सिन्ध दरिया 5,000 पुरानी एक सभ्यता से भी परिचय करवाता है। सनद रहे कि हड़प्पा तथा मोहन-जो-दड़ो सभ्यताओं के साथ-साथ सिन्धु सभ्यता का नाम भी याद रखने योग्य है, जो भारत के गौरव को बढ़ाता है।
 
सिन्धु दरिया विश्व के सबसे लंबे गिने जाने वाले दरियाओं में एक माना जाता है। इसकी लंबाई 2,900 किमी है। दक्षिण-पश्चिम तिब्बत से इसका उद्गम होता है, जो 16,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह लद्दाख में लेह के पास से भारत में प्रवेश करता है। 2,900 किमी लंबी अपनी यात्रा के दौरान कुल 4.50 लाख वर्गमील क्षेत्रफल को घेरता है जिसमें 1.75 लाख वर्ग मील तो हिमालय के पहाड़ों में ही समा जाता है।
 
लेह में प्रवेश के उपरांत 11 किमी की दूरी तय करने के पश्चात इसमें पहला मिलन जंस्कार का होता है। दरिया जंस्कार इसमें मिलता है, जो जंस्कार घाटी को हरा-भरा रखने में मदद करता है। यह दरिया जंस्कार घाटी को पार करने के बाद बटालिक के रास्ते से होता हुआ पाकिस्तान में जा मिलता है जबकि पूरे पाकिस्तान में घूमता हुआ यह सागर में गिरता है।
 
पाकिस्तान की यात्रा आधी कर लेने के उपरांत इसमें उन दरियाओं का मिलन आरंभ हो जाता है, जो भारत से पाकिस्तान की ओर बहते हैं। यह हैं झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज। सिन्धु दरिया का उल्लेख ऋगवेद में भी मिलता है तथा आर्य जाति के लोकगीतों में भी। भारतवर्ष का पुराना नाम भी 'सिन्धु प्रदेश' ही है। कहा तो यह भी जाता है कि जब भगवान शिव पार्वती के मृत शरीर को लेकर पर्वत-पर्वत घूम रहे थे तो पार्वती का माथा सिन्दूर के साथ इन्हीं पर्वतों पर गिर पड़ा था, जो आज कराची के पास सिन्ध-बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित है।
 
कहा जाता है कि इस स्थान का दौरा भगवान राम, सीता तथा लक्षमण ने भी किया था जबकि कवि-संत शाह अब्दुल लतीफ के काव्य में भी सिन्धु अपना उल्लेख अवश्य देता है और आज यह दरिया, जो पुरानी सभ्यता का द्योतक है, नया पर्यटन स्थल बन गया है।