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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 16 दिसंबर 2021 (19:03 IST)

1971 का युद्ध एक सप्ताह और चलता तो दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाता

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शामिल हुए एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया की जुबानी, युद्ध की पूरी कहानी

1971 का युद्ध एक सप्ताह और चलता तो दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाता - If the 1971 war had gone on for one more week, the name of Pakistan would have been erased from the world map: Aditya Vikram Pethia
भोपाल। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की ऐतिहासिक विजय के 50 साल पूरे होने पर आज देश में विजय दिवस के रूप में मना रहा है। भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के दम पर 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण किया था और बांग्लादेश को आज़ादी मिली। विजय दिवस पर ‘वेबदुनिया’ आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहा है जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को सबक सिखाया। वीर चक्र विजेता एयस वाइस मार्शल (रिटायर) आदित्य विक्रम पेठिया ने 1971 के युद्ध में अपने टारगेट को सफलतापूर्वक नष्ट किया। 'वेबदुनिया' पर पढ़िए आदित्य विक्रम पेठिया की जुबानी 1971 के युद्ध की कहानी।

'वेबदुनिया' से बातचीत में एयर मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया (रिटा) कहते हैं कि आज भी 5 दिसंबर 1971 का वह दिन अच्छी तरह याद है जब मैं फ्लाइंग लेफ्टिनेंट के रूप में पश्चिमी सेक्टर में तैनात थे। मुझे 4 दिसंबर को पाकिस्तान की चिश्तिया मंडी इलाके में दुश्मन के टारगेट को ध्वस्त करने का आदेश मिला। सुबह थोड़ी सी रोशनी होने पर मैं साथी पायलट के साथ उड़ान भरी तो देखा कि पाकिस्तान में बहावलपुर में टैंकों और गोला बारूद को लेकर एक ट्रेन गुजर रही है। मैंने दो बार उड़ान भरकर टारगेट सेट किया और ट्रेन के साथ ही वहां मौजूद गोला बारूद को उड़ा दिया।

इस दौरान में दुश्मन के एंटी एयरक्राफ्ट गन ने मेरे प्लेन को टारगेट कर लिया और उसमें आग लग हई। इसके बाद मैं वापस भारत की सीमा की ओर मुड़ा तब तक पूरा प्लेन आग के गोले में तब्दील हो गया था और मेरे कॉकपिट में धुंआ भर गया था। इसके बाद मैंने अपने आप को प्लेन से एग्जैक्ट किया औऱ पैराशूट से जहां उतरा वह पाकिस्तान की सीमा थी। उतरते ही स्थानीय लोंगों लाठी डंडों से मेरा स्वागत किया और थोड़ी देर में मुझे पाकिस्तानी सेना को युद्धबंदी के तौर पर सौंप दिया गया।
 
इसके बाद पाकिस्तान के जेल में मुझे तरह-तरह की यातना दी गई। युद्धबंदी के तौर पर मुझे रावलपिंडी जेल में रखा गया। पाकिस्तान की जेल नर्क से भी बदतर है। जहां ठंड में पत्थर के प्लेटफार्म पर नंगे बदन सोना पड़ता था, हाथ-पैर रस्सी से बंधे रहते थे खाने में एक दो रोटी मिल जाए तो बहुत ही जेल में कोई भी अक्षर या कर्मचारी कभी भी आकर सिगरेट देखता था तो कभी बंदूक के बट से या फिर लाठियों से लगातार पिटाई की जाती थी। इस दौरान मुझे काफी चोटें आई। करीब 5 महीने के बाद मुझे रेडक्रॉस के सुपुर्द कर दिया गया जिसके बाद मुझे दिल्ली लाया गया उस वक्त मुझे काफी अंदरूनी चोटें आई थी। 
 
वीर चक्र विजेता आदित्य विक्रम पेठिया कहते हैं कि समय के साथ शरीर के घाव तो भर गए लेकिन आज  दिल में एक टीस  रहती है कि काश जब फाइटर प्लेन में आग लगी थी तो वह गिर रहा था तब मुझे पैराशूट से एग्जैक्ट ना करके जलते हुए विमान के साथ टारगेट कर को ध्वस्त कर देना चाहिए शहीद होने के साथ ही अपने मकसद में सफल हो सकता था साथ ही पाकिस्तान में हुए ट्रॉचर से भी बच जाता। 
 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में एयर मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया कहते हैं कि अगर 1971 का भारत- पाकिस्तान का युद्ध एक सप्ताह और चल जाता तो आज पाकिस्तान का नामोनिशान नहीं होता। विजय दिवस पर वह पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि पाकिस्तान अब दोबारा आमने-सामने के युद्ध की हिमाकत नहीं कर पाएगा।