रविवार, 28 अप्रैल 2024
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चाचा हड़ताली ने छोड़ा हुर्रियत का अध्यक्ष पद

चाचा हड़ताली ने छोड़ा हुर्रियत का अध्यक्ष पद - Hurriyat Conference, Syed Ali Shah Geelani, Terrorism
श्रीनगर। चाचा हड़ताली के नाम से जाने जाने वाले सईद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया है। कश्मीरी आतंकवादियों को फंडिंग के मामले में फंसे अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी ने सोमवार को तहरीक-ए-हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। वे पिछले 18 साल से इस पद पर बने हुए थे। उनकी जगह वरिष्ठ हुर्रियत नेता मुहम्मद अशरफ सेहराई को संगठन का नया अध्यक्ष बनाया गया है।


गिलानी ने वर्ष 2001 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी और तभी से वे इसके अध्यक्ष थे। माना जा रहा है कि टेरर फंडिंग मामले में घेरे में आए गिलानी ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी की कार्रवाई के बाद मजबूर होकर यह कदम उठाया है। इससे पहले गिलानी ने शुक्रवार को दावा किया था कि उन्हें भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी के एक अधिकारी की ओर से वार्ता का ऑफर मिला था, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया था। बता दें, एनआईए ने पिछले दिनों जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद से जुड़ी आतंकवाद फंडिंग जांच के मामले में पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के बेटों से पूछताछ की थी।

एनआईए के निशाने पर गिलानी और उनके परिवार की 150 करोड़ रुपए की 14 प्रॉपर्टी हैं। गिलानी के बड़े पुत्र नईम पेशे से सर्जन हैं और छोटे बेटे नसीम जम्मू-कश्मीर सरकार के कर्मचारी थे। नईम अपने पिता के बाद पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी समूहों के अलगाववादी संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत के स्वाभाविक उत्तराधिकारी माने जाते थे। सूत्रों ने बताया कि आतंकवाद फंडिंग मामले में यहां भाइयों से पूछताछ हुई। मामले में पाकिस्तान स्थित जमात-उद-दावा और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के नेता सईद का नाम आरोपी के तौर पर दर्ज है।

एनआईए ने गत वर्ष 30 मई को मामला दर्ज करते हुए आतंकवादी संगठनों के साथ अलगाववादी नेताओं की मिलीभगत का आरोप लगाया था। राज्य में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों की फंडिंग के लिए हवाला चैनलों सहित विभिन्न अवैध जरियों से कोष जुटाने, प्राप्त करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया। स्कूल जलाने, सुरक्षाबलों पर पथराव करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारत के खिलाफ जंग छेड़कर घाटी में तबाही मचाने का भी मामला है। जांच एजेंसी ने राज्य के साथ ही हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी में कई जगहों पर तलाशी की। करोड़ों रुपए के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और कीमती वस्तुएं जब्त की गईं थीं।

सईद अली शाह गिलानी का जीवन परिचय : जानकारी के लिए कश्मीरी जनता का एकमात्र सच्चा प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले अलगाववादी संगठन ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस में अगर कोई सबसे कट्टरपंथी शक्तिशाली और विवादित नेता है तो वह सईद अली शाह गिलानी ही हैं। कश्मीरी अवाम के अलावा इस्लामी कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों में उनकी लोकप्रयिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लश्कर-ए-तैयबा जैसा खूंखार आतंकी संगठन भी उन्हें हरदिल अजीज नेता कहता है।

गिलानी शुरू से ही कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की मांग करते हुए इस मसले को जेहाद से हल करने की वकालत करते रहे हैं। उनके इस रवैए से न सिर्फ ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस में विवाद पैदा हो गया है, बल्कि जमात-ए-इस्‍लामी के कई सदस्य भी गिलानी के इन बयानों से खासे नाराज हैं। गिलानी जमात-ए-इस्‍लामी के शूरा-ए-मजलिस के भी सदस्य भी हैं। गिलानी की जगह जमात के किसी अन्य नेता को हुर्रियत की बैठक में अपना पक्ष रखने कभी नहीं भेजा।

सूत्रों का मानना है कि गिलानी के मजबूत जनाधार और लोकप्रियता के कारण ही जमात कश्मीर में अपनी पकड़ बनाए हुए है, इसलिए उन्हें नजरअंदाज करना आसान नहीं हैं। हुर्रियत में जिन दिनों गिलानी को लेकर तीव्र विवाद था, उन दिनों बारामुल्ला में एक जनसभा में लोगों ने गिलानी के समर्थन में जोरदार नारेबाजी करते हुए कहा था कि गिलानी के बगैर न जमात चलेगी और न हुर्रियत।

उनकी लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि वह कश्मीर मसले पर शुरू से एक ही स्टैंड पर कायम हैं। इसके अलावा वे घाटी के हर उस गांव में हर उस घर में जरूर जाते हैं, जिसका कोई सदस्य कश्मीर की आतंकवादी हिंसा में मारा गया हो। हुर्रियत सहित कश्मीर के अन्य अलगाववादी नेताओं में इस बात का सर्वथा अभाव है।

आतंकवादियों के कट्टर समर्थक गिलानी ने पिछले दिनों एक बयान जारी करके केंद्र से जम्मू कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र स्वीकार करने को भी कहा था। इसके साथ ही उन्होंने यकीन दिलाया कि अगर नई दिल्ली उनकी बात पर अमल करती है तो वे आतंकवादियों को भी संघर्ष विराम के लिए मना लेंगे।

कश्मीर में सबसे कट्टर और दुर्दांत आतंकवादी देने वाले सोपोर कस्बे के निवासी गिलानी ने 1930 में बांडीपोरा के पास स्थित एक छोटे से गांव के एक साधारण परिवार में जन्म लिया था। लाहौर से फाजिल और अदीब की डिग्री लेने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया। 1950 में वे जमात में शामिल हुए और उसके विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कुशलता का परिचय दिया।

गिलानी के करीबियों का कहना है कि राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने संबंधी जमात-ए-इस्लामी के निर्णय से वे खुश नहीं थे, लेकिन जब जमात राजनीति में उतरी तो वह चुनाव लड़कर विधानसभा में पहुंचने वाले जमात-ए-इस्लामी के पहले नेता बने।

उन्होंने जमात की टिकट पर सोपोर विधानसभा का तीन बार चुनाव लड़ा और तीन बार ही जीत हासिल की। उन्होंने संसदीय चुनाव भी लड़ा, लेकिन पराजित हो गए। कश्मीर में जब आतंकवादी हिंसा शुरू हुई तो वे जमात की शूरा-ए-मजलिस के पहले सदस्य थे, जिसने आतंकवादियों का खुलकर समर्थन किया था।