• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. राष्ट्रीय
  4. Hanumnthppa, Indian Army
Written By
Last Modified: नई दिल्ली , गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016 (22:48 IST)

कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर थे हनुमंथप्पा कोपड़

कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर थे हनुमंथप्पा कोपड़ - Hanumnthppa, Indian Army
नई दिल्ली। भारतीय सेना के लिए आज का दिन कभी न भूलने वाला दिन रहेगा क्योंकि उनका एक जांबाज लांस नायक जिंदगी की जंग हार गया..सियाचिन में 6 दिनों तक 35 फुट बर्फ के नीचे से जिंदा हालत में निकले हनुमंथप्पा कोमा की हालत में इस दुनिया से दूसरी दुनिया कूच कर गए, वो भी बगैर कुछ कहे.. 
दिल्ली स्थित सेना के सर्वसुविधायुक्त अस्पताल में गुरुवार को हनुमंथप्पा ने 11.45 पर आखिरी सांस ली और डॉक्टरों ने उनके शरीर को सफेद चादर में ढंक दिया। कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर रहने वाला यह 'शहीद' मौत के आगोश में चला गया था। 
 
बुधवार की देर शाम से ही उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों को इस बात का अहसास हो गया था कि ईश्वर के जिस चमत्कार ने उन्हें माइनस 40 डिग्री तापमान वाले सियाचिन इलाके में 35 फुट बर्फ के भीतर से निकालकर दिल्ली के सेना के अस्पताल तक ले आया था, वह अधिक घंटों का मेहमान नहीं है, लेकिन वे आखिरी दम तक अपनी कोशिश करते रहे। 
 
दोनों जहान के मालिक को कुछ और ही मंजूर था और आस दिलाकर उसने न केवल हनुमंथप्पा के परिजनों को निराश किया, बल्कि पूरे देश को नाउम्‍मीद कर डाला। लाखों-करोड़ों दुआएं भी हनुमंथप्पा को नवजीवन देने में कम पड़ गई। सेना के अस्पताल में कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर हनुमंथप्पा की पार्थिव देह सफेद चादर में लिपटी पड़ी थी और अस्पताल का पूरा स्टाफ गमगीन था। 
 
सेना में हनुमंथप्पा की सेवा कुल 13 साल रही, जिसमें से उन्होंने 10 साल कठिन क्षेत्रों में पूरी बहादुरी के साथ बिताए। बचपन से ही उन्हें चुनौतियों का सामना करने का शौक रहा और सेना में आने के बाद भी उन्होंने इसे जारी रखा। आसान जगह पोस्टिंग लेने के बजाए उन्होंने कठिन और चुनौतीपूर्ण जगहों पर देश की रक्षा की। भारतीय सेना का यह जांबाज सिपाही सियाचिन में बर्फीले तूफान के आने के पहले भी अपने साथियों के साथ देश की सीमा की रक्षा कर रहा था।
 
हनुमंथप्पा भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे हर भारतीय के दिलों में हमेशा बसे रहेंगे। जब भी सियाचिन पर भारतीय सीमा की रक्षा करने का जिक्र आएगा, उनका चेहरा आंखों के सामने घूम जाएगा। हनुमंथप्पा 13 बरस पहले देश की रक्षा करने के हौसलों के साथ भारतीय सेना में शामिल हुए थे। 
 
हनुमंथप्पा की पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर के महोर में हुई। यहां पर 2003 से लेकर 2006 तक उन्होंने आतंकवाद निरोधी अभियान में सक्रिय रूप से अपनी सेवाएं दीं। 2008 से 2010 के बीच स्वेच्छा से 54वीं राष्ट्रीय राइफल्स में सेवा देने की बात कही, जहां उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में अदम्य साहस और वीरता दिखाई।
 
पूर्वोत्तर जब काफी अशांत माना जाता था, तब हनुमंथप्पा ने 2010 से 2012 के बीच पूर्वोत्तर में स्वेच्छा से सेवाएं दीं, जहां उन्‍होंने नेशनल डेमोक्रेटिक फंट्र ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के खिलाफ सफल अभियानों में सक्रियता से हिस्सा लिया। 
 
देश की रक्षा करना और चुनौतियों का सामना करने का जज्बा उनमें इस कदर कूट-कूटकर भरा था कि वे अपने साथियों के बीच लोहा लेने वाले जवान के रूप में चर्चित हो गए थे। हनुमंथप्पा ने दिसंबर 2015 से 19600 फुट की ऊंचाई पर सर्वाधिक ऊंची चौकियों में से एक पर अपनी तैनाती को चुना। 
 
यहां पर तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है। यहां पर वे अपने 9 साथियों के साथ सीमा की रक्षा कर रहे थे लेकिन बर्फीले तूफान की वजह से सभी जवानों के सिर के ऊपर 35 फुट मोटी चादर बिछ गई। 9 जवान तो शहीद हो गए, लेकिन 6 दिन बाद ईश्वरीय चमत्कार के कारण हनुमंथप्पा जिंदा बच गए। 
 
उन्हें तत्काल सेना के हेलीकॉप्टर से दिल्ली लाया गया। जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी को यह खबर लगी, वे फौरन सेना के अस्पताल पहुंचे और उन्होंने हनुमंथप्पा के लिए प्रार्थना की। आज जब हनुमंथप्पा हमारे बीच नहीं रहे, तब भी प्रधानमंत्री ने अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दी। इतना तो पूरा भरोसा है कि पूरा देश हनुमंथप्पा को कभी नहीं भूल पाएगा...