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Last Modified: बुधवार, 15 मार्च 2017 (00:12 IST)

चुनाव परिणाम के बाद EVM पर मचा घमासान जारी...

चुनाव परिणाम के बाद EVM पर मचा घमासान जारी... - EVM, Electronic Voting Machine,  Delhi Municipal Corporation Elections
नई दिल्ली। जब से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आए हैं, तब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)को लेकर जो घमासान मचा था, वो अब भी जारी है। उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत ने सभी विरोधी राजनीतिक दलों की रात की नींदें हराम करके रख दी हैं। मजेदार बात तो यह है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर ईवीएम को लेकर अपने-अपने तर्क दिए जा रहे हैं। चुनाव में EVM को लेकर चल रहा 'राजनीतिक दंगल' जारी है...
असल में EVM की काबिलियत पर सबसे पहला सवाल उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उछाला। जो मायावती चुनाव परिणाम के पहले 'हाथी' पर सवार होकर दोबारा सत्ता में काबिज होने का सपना देख रही थीं, वो तब हतप्रभ रह गईं, जब 403 सीटों के लिए हुए चुनाव में उनकी बहुजन समाज पार्टी केवल 19 सीटों पर ही सिमटकर रह गई, जबकि भाजपा ने 325 सीटों पर कब्जा जमाया। मायावती ने इस करारी हार का ठीकरा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के सिर फोड़ा।
 
मायावती ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ की गई है वरना भाजपा को इतनी ज्यादा सीटें नहीं मिलतीं, जो खुद उसने भी नहीं सोची थी। इसके बाद भाजपाई मायावती पर टूट पड़े और उनका यह कहकर मजाक उड़ाया कि 'खिसियानी बिल्ली खंबा' नोंचे। सोशल मीडिया पर भी मजे से 'खिसियानी बिल्ली' छाई रही और लोग अपने-अपने तरीके से तर्क देते रहे।
 
मायावती के आरोप के ठीक अगले दिन एक और शगूफा मय-प्रमाण के सामने आया। लालकृष्ण आडवाणी 'शाइनिंग इंडिया' का नारा लेकर 2009 के लोकसभा चुनाव में उतरे, लेकिन सत्ता पर काबिज होने में नाकाम रहे और 'पीएम इन वेटिंग' बनकर ही रह गए... 
 
2009 के आम चुनाव में भाजपा ने इस करारी हार के लिए मतदान के लिए उपयोग की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दोषी माना था। यही नहीं, उसके अग्रणी नेता किरीट सौमैया एक आईटी विशेषज्ञ के साथ देश के कई स्थानों पर गए और बाकायदा यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि किस तरह इस मशीन के सॉफ्टवेयर में हेराफेरी की जा सकती है।  
 
भाजपा के ही एक अन्य नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने दो कदम आगे निकलकर एक किताब तक लिख डाली थी, जिसका नाम था 'Democracy at Risk, Can We Trust Our Electronic Voting Machines?' यह किताब 2010 में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका और प्रस्तावना लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। जैसा कि शीर्षक ही बता रहा है भाजपा को EVM पर बिलकुल भरोसा नहीं था और पार्टी इन मशीनों को 'लोकतंत्र के लिए खतरे' के रूप में देख रही थी।
 
सब जानते हैं कि 2014 के आम चुनाव भाजपा ने जब लड़े तब हाईटेक तरीके से खुद नरेन्द्र मोदी के पास आईटी विशेषज्ञों की फौज थी। विशेषज्ञों की टीम क्या कुछ नहीं कर सकती है? आज जिस तरह से भाजपा को छोड़कर सारे राजनीतिक दल इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर जो सवाल खड़ें कर रहे हैं, क्या वह गलत है? उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तमाम चैनलों के ओपिनियन पोल धरे के धरे रह गए। खुद भाजपा भी हैरत में है कि उसे 403 सीटों में से 325 सीटें कैसे मिल गई? 
 
EVM को लेकर चल रहा 'दंगल' जारी है। इसी दंगल के बीच मंगलवार को कांग्रेस की अपील पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो निर्देश जारी किए हैं, वह भी चौंकाने वाले हैं। राजधानी दिल्ली में निगम चुनाव कराए जाने की घोषणा चुनाव आयोग ने मंगलवार को कर दी। घोषणा के मुताबिक, 22 अप्रैल को मतदान होगा, जबकि 25 अप्रैल को नतीजों की घोषणा की जाएगी। कांग्रेस ने केजरीवाल को मतपत्र के जरिए चुनाव कराने की सलाह दी है, वहीं केजरीवाल ने भी मुख्‍य सचिव को मतपत्र आधारित चुनाव कराने के निर्देश दे दिए। 
 
इसका यह मतलब हुआ कि अब न तो कांग्रेस को और न ही केजरीवाल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा है। मुख्य सचिव को मतपत्र के जरिए मतदान कराने के निर्देश देना कहीं न कहीं इसका प्रमाण है कि केजरीवाल को डर है कि कहीं फिर ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर के साथ छेड़खानी न कर दी जाए...
 
दिल्ली में फिलहाल तीनों नगर निगमों की 272 सीटों में से भाजपा के पास 139 हैं। उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगम पर दस साल से भाजपा का ही कब्जा है। भाजपा चाहेगी कि तीसरी बार यहां अपनी परिषद बनाए लेकिन मतपत्रों से होने वाली वोटिंग में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता। यह भी आशंका है कि आने वाले समय में कहीं ईवीएम मशीन पर सभी राजनीतिक दल एक होकर बंदिश लगाने की मांग न कर बैठें?
 
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