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Written By उमेश चतुर्वेदी
Last Modified: सोमवार, 10 अप्रैल 2017 (14:08 IST)

अंदर मुख्य सचिवों से बात, बाहर विरोध की आशंका

कांट्रैक्ट खेती पर 12 अप्रैल को नीति आयोग की बैठक

अंदर मुख्य सचिवों से बात, बाहर विरोध की आशंका - Contract Farming
किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट प्रस्तावों को लेकर नीति आयोग ने काम शुरू कर दिया है। इस सिलसिले में राज्यों के प्रमुख सचिवों के साथ नीति आयोग की बैठक 12 अप्रैल को दिल्ली में होने जा रही है। इस बैठक में संविदा खेती यानी कांट्रैक्ट फॉर्मिंग का मुद्दा भी विचार के लिए रखा गया है। जिस पर विवाद होने की आशंका है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय किसान संघ के महामंत्री अतुल अन्जान ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया है। कांट्रैक्ट फॉर्मिंग यानी ठेका खेती के विरोध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा भारतीय किसान संघ भी रहा है। 
 
वेबदुनिया के पास नीति आयोग की बैठक के एजेंडे की कॉपी है। जिसमें ठेका खेती को विषय नंबर एक में चौथे स्थान पर रखा गया है। चुनाव अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आमदनी बढ़ाने का वादा किया था। उसी वादे को पूरा करने की दिशा में कृषि मार्केटिंग को लेकर नीतियां बनाने की दिशा में जुट गया है। इसी विषय पर 12 अप्रैल को यह बैठक होने जा रही है। इस बैठक के एजेंडे का पहला ही विषय है, कृषि विपणन सुधार की स्वीकार्यता की प्रगति है, जिसमें चौथे नंबर पर कांट्रैक्ट खेती को रखा गया है। दूसरा विषय आदर्श भूमि पट्टा कानून भी है। जिसे कांट्रैक्ट खेती की योजना की स्वीकार्यता को लेकर अगला कदम माना जा सकता है। 
 
नीति आयोग की कोशिश उसके नीति पत्र पर राज्यों की सहमति को हासिल करना है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय के विशेषज्ञों ने कांट्रैक्ट खेती को स्वीकार करने पर विरोध जताया है। इस विशेषज्ञ पैनल में संघ परिवार की पृष्ठभूमि वाले विशेषज्ञ भी हैं।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2013 में कांट्रैक्ट खेती व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की थी, तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ ने विरोध का ऐलान किया था। अखिलेश सरकार ने पांच मई 2013 को ठेका खेती के प्रस्ताव को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दी थी। जिसके खिलाफ भारतीय किसान संघ के तत्कालीन महामंत्री प्रभाकर पालेकर ने किसानों से धोखा बताया था। पालेकर का तब तर्क था कि यदि समाजवादी सरकार ने प्रस्ताव को लागू कर दिया तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसानों के खेतों को दस से 15 साल के लिए ठेके पर लेकर उनका रासायनिक खादों के दम पर इतना ज्यादा दोहन करेंगी कि जमीन अनुपजाऊ हो जाएगी। तब किसान संघ ने चेतावनी दी थी कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों उत्तर पप्रदेश से खदेड़ने के लिए आंदोलन करेगी। ऐसे में यह देखना होगा कि मोदी सरकार के कांट्रैक्ट खेती के प्रस्ताव पर भारतीय किसान संघ का क्या रुख होगा।
 
हालांकि अतुल अंजाद ने वेबदुनिया से साफ कहा कि कांट्रैक्ट खेती के खिलाफ उनका संगठन बड़ा आंदोलन करेगा और इसे लागू ना करने देने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेगा। अतुल का विरोध इस बात से है कि कांट्रैक्ट खेती व्यवस्था लागू करने से हजारों साल से अपनी भूमि का मालिक रहा किसान मजदूर बनकर रह जाएगा। उनकी बात का समर्थन जैविक खेती अभियान के संयोजक क्रांति प्रकाश भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कांट्रैक्ट खेती व्यवस्था लागू होने के बाद निजी कंपनियां ना सिर्फ किसानों से उनकी उपज खरीदने के लिए खुद दाम तय करेंगी, बल्कि किसानों को अपना मजदूर बना लेंगी।
 
क्रांति को आशंका है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां गांवों में ठीक उसी तरह मजदूरी की दर तय करेंगी, जिस तरह वे मनमाने तरीके से किसी को कम तो किसी को ज्यादा तनख्वाह अपनी कंपनियों में देती हैं। क्रांति प्रकाश केंद्र की सत्ता में शामिल राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। इसलिए उन्होंने सरकार को सुझाव दिया है कि कांट्रैक्ट खेती व्यवस्था लागू करने के लिए सरकार को रेग्युलेटर भी बनाना होगा। 
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