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Last Updated :नई दिल्ली , बुधवार, 27 जुलाई 2016 (14:55 IST)

विल्सन, टीएम कृष्णा को रमन मैग्सेसे पुरस्कार

विल्सन, टीएम कृष्णा को रमन मैग्सेसे पुरस्कार - Bezwada Wilson, TM Krishna win Ramon Magsaysay Award
मनीला। भारत में मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए एक प्रभावशाली मुहिम चलाने वाले एवं कर्नाटक में जन्मे बेजवाड़ा विल्सन और चेन्नई के गायक टी एम कृष्णा को वर्ष 2016 के लिए प्रतिष्ठित रेमन मैगसायसाय पुरस्कार के लिए आज चुना गया।
 
इस पुरस्कार के लिए दो भारतीयों के अलावा चार अन्य को चुना गया है जिनमें फिलीपीन के कोंचिता कार्पियो-मोरैल्स, इंडोनेशिया के डोंपेट डुआफा, जापान ओवरसीज कोऑपरेशन वालंटियर एवं लाओस के वियंतीएन रेसेक्यू शामिल हैं।
 
सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) के राष्ट्रीय संयोजक विल्सन को मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की दृढतापूर्वक बात करने के कारण पुरस्कार के लिए नामित किया गया है और कृष्णा को संस्कृति में सामाजिक समावेशिता लाने के लिए एमरजेंट लीडरशिप श्रेणी के तहत पुरस्कार के लिए चुना गया है।
 
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विल्सन के उद्धरण में कहा गया है कि मैला ढोना भारत में मानवीयता पर कलंक है। मैला ढोना शुष्क शौचालयों से मानव के मलमूत्र को हाथ से उठाने और उस मलमूत्र की टोकरियों को सिर पर रखकर निर्धारित निपटान स्थलों पर ले जाने का काम है जो भारत के अस्पृश्य, दलित उनके साथ होने वाली संरचनात्मक असमानता के मद्देनजर करते हैं।
 
50 वर्षीय विल्सन के प्रशंसात्मक उल्लेख में कहा गया है कि मैला ढोना एक वंशानुगत पेशा है और 1,80,000 दलित घर भारत भर में 7,90,000 सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शुष्क शौचालयों को साफ करते हैं, मैला ढोने वालों में 98 प्रतिशत महिलाओं एवं लड़कियों को बहुत मामूली वेतन दिया जाता है।
 
संविधान एवं अन्य कानून शुष्क शौचालयों और लोगों से मैला ढोने पर प्रतिबंध लगाते हैं लेकिन इन्हें लागू नहीं किया गया है क्योंकि सरकार ही इनकी सबसे बड़ी उल्लंघनकर्ता है।
 
विल्सन का जन्म एक ऐसे दलित परिवार में हुआ जो कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स कस्बे में मैला ढोने का काम करता था। वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य हैं।
 
विल्सन की प्रशंसा करते हुए उनके उल्लेख में कहा गया कि स्कूल में उनके साथ एक बहिष्कृत की तरह व्यवहार किया जाता था। अपने परिवार की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ बेजवाड़ा के मन में बहुत गुस्सा था लेकिन उन्होंने बाद में अपने इस गुस्से का इस्तेमाल मैला ढोने के उन्मूलन की मुहिम चलाने में किया।
 
विल्सन ने अपने कि इस आंदोलन के लिए 32 साल काम किया, उन्होंने केवल नैतिक आक्रोश की भावना का ही नेतृत्व नहीं किया बल्कि बड़े पैमाने पर आयोजन करने और भारत की जटिल कानूनी प्रणाली में काम करने की शानदार काबिलियत के साथ मुहिम का मार्गदर्शन किया। 
 
विल्सन के उल्लेख में कहा गया कि न्यासियों के बोर्ड ने 2016 रेमन मैगसायसाय पुरस्कार के लिए बेजवाड़ा विल्सन का चयन करके दलितों को मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का जन्म सिद्ध अधिकार दिलाने और भारत में मैला ढोने की अपमानजनक दासता के उन्मूलन के लिए जमीनी स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व करने में विल्सन की असाधारण दक्षता एवं नैतिक उर्जा को सम्मानित किया है।
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पुरस्कार के लिए चुने गए एक अन्य भारतीय 40 वर्षीय कृष्णा की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि उन्होंने दिखाया कि संगीत निजी जीवन एवं समाज में गहरा परिवर्तनकारी बल हो सकता है।
 
चेन्नई के ब्राह्मण परिवार में जन्मे कृष्णा ने कर्नाटक संगीत के गुरूओं के सानिध्य में छह साल की आयु से ही इस विधा का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। उनके उल्लेख में कहा गया है कि हालांकि कृष्णा ने अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त की, उन्होंने कलाकार बनना चुना और जल्द ही कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के एक बेहतरीन कलाकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली।
 
इसमें कहा गया है कि प्राचीन गायन एवं वादन संगीत प्रणाली कर्नाटक संगीत का आरंभ सदियों पहले मंदिरों एवं दरबारों में हुआ था लेकिन बाद में यह मुख्य रूप से ब्राह्मण जाति के सांस्कृतिक संरक्षण वाली विधा बन गई जिसे केवल अभिजात्य वर्ग के वे लोग ही प्रदर्शित या आयोजित करते हंै या उसका आनंद लेते हैं जिनकी इस तक पहुंच है।
 
उल्लेख में कहा गया है कि कृष्णा इस बात के लिए आभारी हैं कि कर्नाटक संगीत ने उनकी कलात्मकता को आकार दिया लेकिन उन्होंने इस कला के सामाजिक आधार पर सवाल खड़े किए। उन्होंने देखा कि उनकी कला पर एक जाति विशेष का वर्चस्व है और यह कला भारत की सांस्कृतिक विरासत के एक अहम हिस्से में भागीदारी से निचले वर्गों को प्रभावशाली तरीके से बाहर करके अन्यायपूर्ण व्यवस्था को बढ़ावा देती है। वह 1990 के दशक में शास्त्रीय संगीत युवा संघ के अध्यक्ष बने जिसने कर्नाटक संगीत को युवाओं एवं सरकारी स्कूलों तक पहुंचाया।
 
कृष्णा 2011 से 2013 के बीच अपने जुनून एवं कलात्मकता को युद्ध पीड़ित उत्तरी श्रीलंका में लेकर गए। वह पिछले तीन दशकों में इस क्षेत्र में जाने वाले पहले कर्नाटक संगीतज्ञ हैं और उन्होंने उस देश में सांस्कृतिक पुनरुद्धार को प्रोत्साहित करने के लिए दो उत्सव आयोजित किए।
 
कृष्णा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि हालांकि कृष्णा को अब भी बहुत काम करना है लेकिन वह एक महत्वपूर्ण मार्ग पर चल रहे हैं। कृष्णा संगीत का लोकतंत्रीकरण करके और लोगों को विभाजित करने के बजाए उन्हें एकजुट करने वाले विचारों एवं संवेदनाओं को बढ़ावा देकर जाति, वर्ग या वर्ण के अवरोधकों को तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
 
इसमें कहा गया है कि वर्ष 2016 के रेमन मैगसायसाय पुरस्कार के लिए कृष्णा को चुनकर न्यासियों के बोर्ड ने कलाकार के तौर पर उनकी दमदार प्रतिबद्धता को सम्मानित किया है तथा संगीत को केवल कुछ ही नहीं बल्कि सभी के लिए उपलब्ध कराकर जाति एवं वर्ग के अवरोधकों को तोड़ने और भारत में गहराई तक विद्यमान सामाजिक विभाजनों को दूर करने में कला की ताकत की वकालत की है। रेमन मैगसायसाय पुरस्कार की शुरुआत 1957 में की गई थी और इसे एशिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार समझा जाता है। (भाषा)