Last Modified: नई दिल्ली ,
गुरुवार, 19 नवंबर 2009 (17:37 IST)
संसद की 100 बैठकें अनिवार्य हो-माकपा
संसद की बैठकें कम होने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए माकपा ने गुरुवार को माँग की कि संसद की एक वर्ष में कम से कम 100 बैठकें अनिवार्य करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए।
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माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि सरकार अपने वायदे से पलट रही है। चुनाव के बाद सर्वदलीय बैठक में उसने आश्वासन दिया था कि संसद की कम से कम 100 बैठकें सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने कहा कि चुनावों से पहले पिछले साल संसद की कार्यवाही केवल 46 दिन चली, जो काफी चिंताजनक बात है।
येचुरी ने कहा कि संसद की एक कैलेंडर वर्ष में 100 बैठकें सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन आवश्यक है क्योंकि इसके बिना हर सरकार संसद के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से बचती रहेगी। उन्होंने कहा कि वाम दल यह मुद्दा संसद के दोनों सदनों में उठाएँगे।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में एक साल में 160 दिन बैठक होती है और औसतन वे 200 बैठकें सालाना करते हैं।
माकपा के एक अन्य नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि केन्द्र सरकार भारतीय संविधान की गंभीर अवहेलना कर रही है। कार्यपालिका विधायिका के प्रति और विधायिका जनता के प्रति जवाबदेह है लेकिन मौजूदा सरकार इससे बचना चाह रही है।
येचुरी ने कहा कि संसद का काम कानून बनाने के अलावा, कार्यपालिका की जवाबदेही की निगरानी करना और जनहित के मुद्दे उठाना है। इन तीनों ही कार्यों के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है लेकिन आश्वासनों के बावजूद सरकार ने 100 दिन की बैठक की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। हमने कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में भी यह मुद्दा उठाया है।
उन्होंने कहा कि माकपा चाहती है कि सदन में हर सप्ताह कम से कम एक अल्पकालिक चर्चा हो और कम से कम दो ध्यानाकषर्ण प्रस्ताव आएँ।
आचार्य ने कहा कि पिछले सत्र के दौरान लोकसभा में सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने एक सर्वदलीय बैठक में कहा था कि संसद का शीतकालीन सत्र नौ नवंबर से शुरू होकर 18 नवंबर तक चलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार चूँकि गन्ना मूल्य तय करने के लिए अध्यादेश लाना चाहती थी इसलिए उसने सदन की बैठक बुलाने में देरी की। (भाषा)