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Written By Author नवीन जैन

बहुत बहुत याद आओगे शरद जी

बहुत बहुत याद आओगे शरद जी - Sharad ji will be missed a lot
पूर्व केंद्रीय मंत्री, प्रखर समाजवादी नेता और विचारक स्व. शरद यादव मेरे लिए एक वरिष्ठ मित्र की तरह थे। इस बात का मुझे हरदम मलाल रहेगा कि वे लंबे समय से बीमार थे और मैं फोन पर भी उनके  हालचाल नहीं पूछ पाया। वैसे, दिल्ली में उनके संपर्क में रहने वाले कुछ Common Friend पत्रकारों ने बताया था कि फिलहाल डॉक्टरों ने उन्हें फोन पर बात न करने की सख्त हिदायत दे रखी है। खैर।
 
वे कितने विशाल हृदय के धनी थे, इसका एक उदाहरण। हुआ यूं था कि उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर अपनी अतिमहत्वाकांक्षी भारत पैदल यात्रा पर मध्य प्रदेश के निमाड़ और मालवा अंचलों से होकर गुजर रहे थे। साथ में शरद यादव जी, मैग्सेसे पुरुस्कार विजेता वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी और अन्य कई बड़े लोग चल रहे थे। ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी तेज धूप पड़ रही थी। ठीकरी नामक एक कस्बे में शरद जी के साथ मैं भी करीब तीन घंटे पहले आ गया।
 
तब मैं एक मामूली सा रिपोर्टर होने के नाते उक्त यात्रा को कवर कर रहा था। ठीकरी कस्बे में कहीं छांह देखकर शरद जी और मैं बैठकर गप्पें मारने लगे। थोड़ी देर बाद शरद जी ने कहा दोस्त भूख लग रही है। कुछ करो। मैंने कहा, साहेब यह निमाड़ है। होटलों में कुछ खा लिया, तो यात्रा तो एक तरफ रह जाएगी और दूसरे काम शुरू हो जाएंगे। अब शरद जी भूख से परेशान हो उठे। बोले, चलो कुछ और बंदोबस्त करते हैं। एक युवक सामने से आ रहा था। तब शरद जी का व्यक्तित्व पूरे शबाब पर था। कद ठिगना, लेकिन गौर वर्ण में वे ऐसे सुदर्शन लगते थे कि उनके आस पास एक दिव्य आभा मंडल घिर आता था। ऊपर से सफेद झक कसी हुई धोती और कुर्ता। आंखों में बुद्धिमत्ता के साथ ज्ञान का का जो तेज था, उसकी पकड़ में कोई भी आ सकता था। ऊपर से जुल्म ढाती दाढ़ी।
 
शरद जी ने उस बंदे को रोका। फिर, थोड़ी नकली कड़क में पूछा- क्यों जानते हो हमें। वो युवक ऐसा सिटपिटाया कि बिना सोचे ही दो तीन बार हां बोल गया। उसने जोड़ा आप तो बहुत बड़े नेता हैं। आपको कौन नहीं जानता? शरद जी का दांव चल गया। उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, देखो बेटा हमें जोर से भूख लग रही है। कुछ कर सकते हो? हां हां उस युवक ने झट से कह दिया। मेरे घर ही चलिए आप दोनों। वहीं खा लीजिएगा। लड़के आगे आगे। हम दोनों पीछे पीछे। मैंने शरद जी से कहा एक सीधे से लड़के के माथे आ गए आप भी। बोले, भूख के आगे सब व्यर्थ है बाबू।
 
वो युवक दो मंजिल ऊपर स्थित अपने घर ले गया। पानी पिलाया। फिर बोला आप लोगों के लिए थोड़ी सी देर में भोजन तैयार हो जाएगा। कुछ देर में दो अलग अलग थालियां हमारे सामने थीं। दोनों ने नाक में पानी बहते हुए खाना खाया। जब उठे, तो शरद जी फिर शुरू। बोले, यार अभी यात्रा को यहां आने में बहुत देर लग सकती है। हम दोनों कुछ देर सो जाएं? मैं ईमानदारी से कहूं, तो मैं भी झपकी मारने के मूड में था। मुझे पलंग पर सुलाकर शरद जी चटाई पर सो गए।
 
उस युवक ने ही समय पर हमें उठा लिया। अच्छी नींद हुई हमारी। पानी पिया हम दोनों ने। नीचे उतरने को हुए तो शरद जी ने मुझसे कहा- कुछ पैसे दो। मैंने वायलेट उनके हवाले कर दिया। उन्होंने पूरी लरजिश और अधिकार से आवाज लगाई- बहू, बढ़िया भोजन कराया आपने। याद रखेंगे हम। जरा बाहर आओ। उक्त युवक को तो जैसे पीसने छूट गए। डरते हुए बोला- साहब यह तो माहवारी से है। मैं पास की होटल से खाने का टिफिन ले आया था।
 
सोचिए, शरद जी और मेरी हालत कैसी हुई होगी। उस युवक के बच्चे भी नहीं थे और उसने भी पैसे लेने से साफ इनकार ही नहीं कर दिया, बल्कि नीचे तक छोड़ने भी आया। शरद जी और मेरी आपस में देर तक कोई बात नहीं हुई। दोनो के बीच एक अबूझ सन्नाटा गूंजता रहा। किसी तरह अपने को सम्हाला हम दोनों ने। बाद में  दैनिक देशबंधु के लिए मैंने उनका इंटरव्यू भी किया था, तो बहुत बहुत याद आओगे शरद जी। आपकी स्मृतियों को नमन। ईश्वर से आपकी आत्मा को शान्ति प्रदान करने गुजारिश।
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