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Written By Author डॉ. प्रवीण तिवारी
Last Modified: शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016 (19:08 IST)

दाढ़ी बढ़ाना कट्टरपंथ नहीं लेकिन दाढ़ी के पीछे की जेहनियत कट्टरपंथ हो सकती है

दाढ़ी बढ़ाना कट्टरपंथ नहीं लेकिन दाढ़ी के पीछे की जेहनियत कट्टरपंथ हो सकती है - Junaid Jamshed, radical Muslim Pakistan
जुनैद जमशेद पर लिखी गई मेरी एक टिप्पणी पर कई मुस्लिम भाइयों के कमेंट आए। इन सभी का कहना था कि संगीत छोड़कर कोई खुदा की इबादत करे तो उसे कट्टरपंथी क्यूं कहा जाए? सचमुच जुनैद की कोई गलती नहीं थी असली गुनहगार तो वो हैं जो मजहब को गलत तरीके से पेश कर युवाओं का दिमाग खराब कर देते हैं।
मेरी टिप्पणी पर जो मुस्लिम भाई कुछ नाराज दिखाई पड़े उनके सवालों के भी मैंने जवाब दिए। वो जुनैद को सिर्फ दाढ़ी तक सीमित मानकर चल रहे थे। ऐसे में जुनैद जमशेद की कहानी को इन सवालों और उनके जवाबों में समझना बहुत जरूरी है। ये इसीलिए जरूरी है ताकि कट्टरपंथियों के हाथों की कठपुतली बनकर कोई और जुनैद संगीत को हराम कहकर उन्मादी बातें न करने लगे। दाढ़ी तो हर धर्म का हिस्सा है ऐसे में किसी के सिर्फ दाढ़ी भर रख लेने से कोई कट्टर नहीं हो जाता है। असली आफत है उस दाढ़ी को बढ़ाने के पीछे छिपी सोच।
 
पहले मेरी फेसबुक पर की गई टिप्पणी को जस का तस लिख रहा हूं। दरअसल पाकिस्तान में हुए प्लेन क्रेश के बाद जुनैद के बारे में जाना और फिर दिलचस्पी बढ़ गई। उसकी जिंदगी ठीक वैसी थी जैसी पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए में एक सिंगर की दिखाई गई थी, जो अपना संगीत छोड़कर एक तालिबान आतंकी बन जाता है। बांग्लादेश में हाल में हुए आतंकी हमले के एक आतंकवादी की भी ऐसी ही कहानी थी। मेरी टिप्पणी कुछ यूं थी...
 
पाकिस्तान के प्लेन क्रैश में मारे गए 47 लोगों में एक जुनैद जमशेद थे... अच्छा खासा सिंगर कट्टरपंथी हो गया था... अभी पढ़ा उसके बारे में तो जाना कि जिस जमाने में लोग पॉप समझ रहे थे वो स्टार बन गया था.. कट्टरपंथी सोच कैसे अच्छे खासे लोगों को खतरनाक बना देती है कि कहानी था जुनैद.. भारतीय श्रोताओं के लिए एक मजेदार चीज भी जानने को मिली... जुनैद ने अपने बैंड VitalSigns के जरिए एक गाना सांवली सलोनी सी महबूबा गाया था.. भारतीय श्रोताओं ने इसे.. 1994 की फिल्म हम सब चोर हैं.. में सुना.. इस गाने को भी चुरा के .. सांवली सलोनी तेरी झील सी आंखे .. बना दिया गया था.. जुनैद कलाकार था और हम कला प्रेमी हैं ..
 
जुनैद और अन्य 46 लोगों को श्रद्धांजलि के साथ 1991 का उसका ये गाना मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया था। इस पर कई मुस्लिम भाइयों की टिप्पणी आई कि सिर्फ दाढ़ी की वजह से जुनैद को कट्टर नहीं कहना चाहिए। और भी कई टिप्णियां आईं जिनमें मेरे एक भाई अफी कुरैशी ने लिखा- डॉ. साब आपने जो रिसर्च की उसे जानकर अच्छा लगा लेकिन आपको एक जानकारी दे दूं। भगवान, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु के लिए गलत बंदों को नेक राह पर लाना, अमन कायम करना, झगड़ों से, शराब से, जुआ से, चोरी से, डकैती से हर उस गलत काम से रोकना जिसे समाज में बुरा समझा जाता हो, उसे कट्टरपंथी नहीं कहते भाई.. उसे सदक-ए-जरिया कहते हैं। प्लीज रिसर्च सही करो और कट्टरपंथी और भलाई में फर्क ढूंढों...
 
इस बात में मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा और आमतौर पर मैं रिसर्च पूरी करके ही लिखता हूं। इस मामले में भी मैंने काफी पढ़ा था, लेकिन ज्यादा लिखने का मन नहीं किया। मैंने जवाब में लिखा भी कि मैं एक मृतात्मा और वो भी अच्छे कलाकार के बारे में कोई गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहता। सच तो ये था कि जितने लोग मुझ से इस मसले पर बहस कर रहे थे वो खुद ही जुनैद की कहानी नहीं जानते थे। मैंने ऐसी कई खबरों के लिंक पेस्ट किए जहां जुनैद के खिलाफ पाकिस्तान में ही मामला दर्ज किया गया था लेकिन जुनैद के बारे में उनके एक पुराने जानकार और साथी की टिप्पणी सबसे अहम है। दरअसल इसमें अच्छे खासे युवाओं के ब्रेन वॉश का दर्द छिपा हुआ है। ये टिप्पणी पाकिस्तान के मशहूर फिल्मकार और संगीतकार शोएब मंसूर की थी। हिंदी में ये टिप्पणी कुछ इस तरह होगी...
 
“शोएब मंसूर, 2007- आम सुबह की तरह मैं अखबार पढ़ रहा था इसमें मैंने अपने दोस्त जुनैद जमशेद का इंटरव्यू देखा। उसकी वेशभूषा और तस्वीर देखने के बाद मैं इस इंटरव्यू को पढ़ने से खुद को नहीं रोक पाया। जैसे-जैसे मैं पढ़ता गया वैसे-वैसे और दुखी होता गया। उसने कहा था कि वो म्यूजिक इसीलिए छोड़ चुका है क्यूंकि ये हराम है। मैं भौंचक्का रह गया। कोई ये कैसे विश्वास कर सकता है कि खुदा की इंसानों को दी गईं दो बड़ी नैमतें.. संगीत और पेंटिंग कभी भी हराम हो सकती हैं। मुझे अहसास हुआ कि जुनैद जैसे भटके हुए लोगों को कोई हक नहीं है कि वो ऐसे ही भटके हुए हजारों युवाओं को दिशा दिखाने का काम करें। मैंने उसे अपने जीवन के अहम 16 साल उसे दिए थे। मुझे आश्चर्य था कि वो ऐसे कैसे इन 16 सालों के साथ को एक तरफ फेंक सकता है वो भी मुझसे बिना सलाह मशविरा किए? मुझे लगा कि ये मेरी जिम्मेदारी है कि समाज को ऐसे कट्टरपंथियों के जरिए हो रहे नुकसान से बचाया जाए।”
 
शोएब की कही हुई बातें कई जागरूक मुस्लिम विचारक कहते रहे हैं इसके बावजूद वो समाज में आने वाले इस खतरनाक बदलाव को नहीं रोक पाते हैं। जुनैद के प्रति उसे न जानने वालों की अंधभक्ति ये बताती है कि ये बात इस्लाम की नहीं है बल्कि इस्लाम के नाम पर भटके हुए युवाओं में और भटकाव पैदा करने की है। मेरे मुस्लिम मित्र ने फिर पूछा कि मैंने भी दाढ़ी रख ली है तो क्या मुझे भी कट्टरपंथी कहेंगे। मेरा जवाब था बिलकुल नहीं इस मुद्दे का दाढ़ी से कोई लेना देना है ही नहीं। असली वजह है जेहनियत। हमें जेहनियत पर बहस करनी चाहिए दाढ़ी या चोगे पर नहीं। 
ये बात सिर्फ जुनैद जमशेद की नहीं है ये बात हर उस युवा की है जो मजहब के नाम पर भटकाव की राह पकड़ रहा है। कट्टरपंथियों का मकसद ही होता है ऐसे लोगों को भ्रमित करना जिन्हें दूसरे युवा अपना रोल मॉडल मानते हैं। फिर इनके प्रभाव में आकर कई और युवा भी दाढ़ी बढ़ा लेते हैं। पाकिस्तान के कई क्रिकेटर्स आपको इसी रूप में मिलेंगे। इंजमाम वर्ल्ड कप के दौरान एक सीरिज में कई दिनों तक मेरे साथ एक्सपर्ट के रूप में बैठे। मेरी उनसे अच्छी मित्रता हो गई थी लेकिन मुझे एहसास हुआ कि कई मुद्दों पर उनका एक जकड़ा हुआ रूप भी है। यही वजह है कि वो अपने लोगों के लिए या अपने देश के उन युवाओं के लिए जो उन्हें अपना रोल मॉडल मानते हैं, के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
 
युवा जाकिर नाइक जैसे भड़काऊ भाषण देने वालों पर ज्यादा भरोसा करते हैं जबकि इस्लाम के कई जानकार खुद ही ऐसे लोगों को खतरनाक करार देते रहे हैं। जब जुनैद की कहानी लिख रहा था तो नुसरत साहब की कव्वालियां भी सुन रहा था। आम तौर पर लिखते हुए उन्हें सुनना बहुत सुकून देता है। उन्हें सुनते हुए ये ख्याल भी आ रहा था कि किसी जेहनियत के चक्कर में फंसकर वो भी दाढ़ी बड़ा लेते तो ये खूबसूरत यादें कभी न मिल पातीं।
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