मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. harmonium player vivek bansod died of heart attack

22 श्रुतियों के हारमोनियम को चाहने वाला, चला गया 22 तारीख़ को

vivek bansod
‘जब हाथ मिलाकर बड़े आत्मविश्वास से कहो/ फिर मिलेंगे/ तब रो भी लो/ एक-दूसरे के नाम पर/ जैसे मरघट में रोते हैं/ क्योंकि/ उसी आदमी से/ फिर/ वैसी ही मुलाकात संभव नहीं होगी’। अपनी ही कविता की ये पंक्तियां याद आने की वजह विवेक बंसोड का जाना है।

ऐसे कैसे कोई जा सकता है, हर कोई यही कह रहा है। हर किसी के शब्दों में एक खालीपन है, सब ब्लैंक हो गए हैं। केवल साठ साल की उम्र, तीव्र हृदयाघात और सब ख़त्म।

इंदौर में 20 नवंबर को आख़िरी कार्यक्रम देने के बाद वे उज्जैन लौटे लेकिन किसे पता था वे फिर कभी इंदौर नहीं लौटेंगे, अब इस जहां में नहीं लौटेंगे और उनसे वैसी ही सरल, सौम्य, ख़ुशमिज़ाज मुलाकात फिर कभी संभव नहीं होगी। महाकाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टैक्नौलॉजी के डायरेक्टर, एमआईटी ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स उज्जैन के एमआईटी ऐंड प्लेसमेंट सेल के डायरेक्टर ये उनके ओहदे थे। एसजीएसआईटीएस (SGSITS), इंदौर से इंडस्ट्रीयल इंजीनियरंग में एम.ई. और पीएचडी ये उनकी शैक्षणिक योग्यता थी। पर इससे भी ज़्यादा वे याद किए जाते रहेंगे अपनी संवादिनी के लिए, अपने सरल, सौम्य स्वभाव और अपनी बातों के लिए।

ख़्यात युवा तबला वादक हितेंद्र दीक्षित की फेसबुक वॉल पर उनके जाने की ख़बर इस तरह से थी कि ‘दादा ये क्या किया, ये साथ ऐसा इतनी जल्दी छोड़कर चले गए, विनम्र श्रद्धांजलि दद्दु, क्या किया आपने’ इस ख़बर की पुष्टि के लिए जब दीक्षित को फ़ोन किया तो वे इतना ही कह पाए कि ब्लैंक हो गया हूं। पुष्टि होती या नहीं भी होती पर जिस ख़बर को सच न होना था, वह ख़बर सच्ची थी। संस्था पंचम निषाद की वरिष्ठ गायिका शोभा चौधरी ने भी कहा कि “विवेक बंसोड के असामयिक निधन ने गहरा दुःख पहुंचाया है। उनकी संवादिनी की साथ-संगत व मिलनसार स्वभाव की शालीनता हमेशा याद आती रहेगी”।

नान्दी कार्यक्रम में संगीतज्ञ डॉ. विवेक बंसोड ने अंतिम बार श्रोताओं को अपना मंगलवाद्य सुनाया था। यह वाद्य शहनाई के समान है। जिसमें कुछ परिवर्तन करके इस नए वाद्य का अविष्कार हुआ है। शहनाई जैसे सुख में हुलसाती है, वैसे दुःख में रूला भी देती है, वैसा ही कुछ विवेक बंसोड के जाने से हुआ। उस दिन किसे पता था कि यह उनकी अंतिम प्रस्तुति है, सब उनके वादन को सुनकर आनंदित हो रहे थे, आज उदास थे। बंसोड संवादिनी बजाते थे तो तबला भी। वे हरफ़नमौला व्यक्तित्व के धनी थे।

जिसने उनके साथ जिस कार्यक्रम में बजाया या सुना वह उसकी याद कर रहा था। सबको प्रोत्साहित करना, सबके सुर से सुर मिलाकर बजा लेना उनकी ख़ासियत थी। उनके जाने से हर किसी को लग रहा था जैसे यह उनकी निजी क्षति हुई हो। ख़्यात शास्त्रीय गायक भुवनेश कोमकली ने इस तरह याद किया… “आपने 22 श्रुतियों के हार्मोनियम को बहुत दिल से चाहा और हार्मोनियम की ट्यूनिंग को लेकर आप हमेशा खुद को अपडेट करते रहे। जो कुछ ट्यूनिंग के क्षेत्र में नया आता आप उसे हमेशा सीखते समझते और उपयोग में लाने के लिए प्रयत्नशील रहे। और आज तारीख भी 22 है। ये क्या हुआ विवेक दादा, इतनी भी क्या जल्दी की आपने, अभी तो बहुत कुछ करने का इरादा था हमारा, आगामी साल की योजनाएं थीं, और ये ऐसे !! अचानक !! दिल्ली प्रवास पर विमान में आपकी गप्पें और हंसी मज़ाक था, और कार्यक्रम के तुरंत बाद आप निकल पड़े, कितनी यात्राएं कीं हमने साथ में ! अनगिनत, लेकिन उनका भी गिनती में हिसाब आपके पास रहता था”।

आज कोई हिसाब नहीं… लोगों की उदासी का, लोग उन्हें याद कर रहे हैं और वे निकल पड़े हैं अकेले ही ऐसी यात्रा पर… लोग लौट रहे हैं मुक्तिधाम से, रोते हुए मरघट पर (फिर याद आई अपनी वही कविता…) और याद आए अहमद फ़राज़ भी कि, ‘जब भी दिल खोल के रोए होंगे, लोग आराम से सोए होंगे’… लेकिन आज सोया है कोई और, रोया है कोई और….
Edited: By Navin Rangiyal
ये भी पढ़ें
सीताफल के 7 फायदे सेहत के, जान लिए तो जरूर खाएंगे