'संयम, ईश्वर प्राणिधान, अंग-संचालन, प्राणायाम, ध्यान।'
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भागदौड़ भरी जीवन शैली के चलते मनुष्य ने प्रकृति और स्वयं का सान्निध्य खो दिया है। इसी वजह से जीवन में कई तरह के रोग और शोक जन्म लेते हैं। यह असफलता का कारण भी है। हमारे पास नियमित रूप से योग करने या स्वस्थ रहने के अन्य कोई उपाय करने का समय भी नहीं है। यही सोचकर हम युवाओं के लिए लाए हैं योग के यम, नियम और आसन में से कुछ ऐसे उपाय, जिनके जरिए आप फटाफट योग कर शरीर और मन को सेहतमंद रख सकते हैं।
(1) संयम ही तप है : संयम एक ऐसा शब्द है, जिसके आगे पदार्थ या परमाणुओं की नहीं चलती। ठेठ भाषा में कहें तो ठान लेना, जिद करना या हठ करना। यदि तुम व्यसन करते हो और संयम नहीं है तो मरते दम तक उसे नहीं छोड़ पाओगे। इसी तरह गुस्सा करने या ज्यादा बोलने की आदत भी होती है। संयम से ही सब कुछ साधा जा सकता है।
संयम की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं वहीं करूँगा, जो मैं चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ खुश रहना, स्वस्थ रहना और सर्वाधिक योग्य होना। व्रत से भी संयम साधा जा सकता है। आहार-विहार, निंद्रा-जाग्रति और मौन तथा जरूरत से ज्यादा बोलने की स्थिति में संयम से ही स्वास्थ्य तथा मोक्ष घटित होता है। संयम नहीं है तो यम, नियम, आसन आदि सभी व्यर्थ सिद्ध होते हैं।
(2) ईश्वर प्राणिधान : एकेश्वरवादी (सिर्फ एक निराकार ईश्वर को मानने वाले) न भी हों तो भी जीवनपर्यंत किसी एक पर चित्त को लगाकर उसी के प्रति समर्पित रहने से चित्त संकल्पवान, धारणा सम्पन्न तथा निर्भिक होने लगता है। यह जीवन की सफलता हेतु अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे हमारी शक्ति एकत्रित होती है। जो व्यक्ति ग्रह-नक्षत्र, असंख्य देवी-देवता, तंत्र-मंत्र और तरह-तरह के अंधविश्वासों पर विश्वास करता है, उसका संपूर्ण जीवन भ्रम, भटकाव और विरोधाभासों में ही बीत जाता है। इससे निर्णयहीनता का जन्म होता है।
(3) अंग-संचालन : अंग-संचालन को सूक्ष्म व्यायाम भी कहते हैं। इसे आसनों की शुरुआत के पूर्व किया जाता है। इससे शरीर आसन करने लायक तैयार हो जाता है। सूक्ष्म व्यायाम के अंतर्गत नेत्र, गर्दन, कंधे, हाथ-पैरों की एड़ी-पंजे, घुटने, नितंब-कुल्हों आदि सभी की बेहतर वर्जिश होती है, जो हम थोड़े से समय में ही कर सकते है। इसके लिए किसी अतिरिक्त समय की आवश्यकता नहीं होती। आप किसी योग शिक्षक से अंग-संचालन सीखकर उसे घर या ऑफिस में कहीं भी कर सकते हैं।
(4) प्राणायाम : अंग-संचालन करते हुए यदि आप इसमें अनुलोम-विलोम प्राणायाम भी जोड़ देते हैं तो यह एक तरह से आपके भीतर के अंगों और सूक्ष्म नाड़ियों को शुद्ध-पुष्ट कर देगा। जब भी मौका मिले, प्राणायाम को अच्छे से सीखकर करें।
(5) ध्यान : ध्यान के बारे में भी आजकल सभी जानने लगे हैं। ध्यान हमारी ऊर्जा को फिर से संचित करने का कार्य करता है, इसलिए सिर्फ पाँच मिनट का ध्यान आप कहीं भी कर सकते हैं। खासकर सोते और उठते समय इसे बिस्तर पर ही किसी भी सुखासन में किया जा सकता है।
सलाह : उपरोक्त पाँच उपाय आपके जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते आप इन्हें ईमानदारी से नियमित करें।