तप लो तुम सूर्य
काव्य-संसार
मनोहर बिल्लौरे तपना है जितना तुम्हेंतप लो उतनातुम सूर्य...।धर कर कंधे गैती, फावड़ालेकर हाथों में कुदालहमें तो खोदना हैनहरें -कुएँ -ताल...बनाना है मेड़ें, भरना है नीवेंतोड़ना पत्थरसिर पर तसला रखपहुँचाना है गाराआखिरी मंजिल तक। घड़ना है घर, मकान, भवनलगाना है कहकहे, जमीन परसोना है गहरी नींदआखिरी साँस तक जीना है जीवनरहना है टन्न...।तपना है जितना तुम्हेंतप लो उतनासूर्य...।तापते रहेंगे तुम्हें हम ऐसेजैसे ताप रहे हों शीत में अलावरिसाते रहेंगे पसीना, ऐसेजैसे रिसता है, पानी मिट्टी के घड़े से। झेलेंगे तुम्हें, निडर बेफिकरलगाए रहेंगे, छोड़ेंगे नहीं झड़ी लगने की आससूरज का ताप झेलसहकर हम काले हुएकोयले की तरह। भीतर का ताप-दाबसहकर पिघले-गलेतली में रहेतेल की तरह।भूतल पर चला हलउर्वर किया जननी कोअंदर हमारे आग है भरपूरजिएँगे धरती के संगडिगेंगे नहीं... अंत तक...रहेंगे डटे...।तुम्हें जितने तपना हैतप लो तुमउतना सूर्य...।