Parenting Tips: क्या आपके बच्चे भी स्कूल से आकर बुरी तरह थक जाते हैं तो ऐसे करें उनकी थकान छूमंतर
स्कूल से लौटने के बाद ये तरीके आजमाकर करिए बच्चों का Stress कम
Parenting Special Tips: हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा तंदुरुस्त, हंसता, खेलता रहे। लेकिन रोजाना घर से स्कूल और स्कूल से घर लौटने के दौरान बच्चे बहुत-सी एक्टिविटी करने से काफी ऊब जाते हैं। ऐसे में अधिकतर बच्चे परेशान हो जाते हैं और थका हुआ महसूस करते हैं। आप बच्चे की थकान को कम कर सकते हैं। आइए जानते हैं कुछ टिप्स के बारे में।
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बच्चे की थकान को करें कम
स्कूल से घर आने के बाद आप बच्चे को थोड़ी देर रेस्ट करने के लिए कहे और पंखा चालू कर उसे बेड पर लेटा दें। आधे से एक घंटे के बाद आप उसे फ्रूट जूस या कुछ फ्रूट्स खाने के लिए दे सकते हैं। आप बच्चे को ड्राई फ्रूट्स भी दे सकते हैं। 1 घंटे बाद आप अपने बच्चों को होमवर्क करने के लिए कहें।
ध्यान रहे जहां पर भी आपका बच्चा पढ़ाई करें, वहां का वातावरण शांत होना चाहिए और छोटे बच्चे को पढ़ाई के वक्त मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप जैसी चीजों से दूर रखना चाहिए। जैसे ही एक घंटे में बच्चे का होमवर्क कंप्लीट हो जाए। आप उसे कुछ एक्टिविटी के लिए बाहर दोस्तों के साथ भेज दें।
भरपूर मात्रा में पानी पिलाएं
इससे बच्चे का थोड़ा माइंड फ्रेश होगा और थकान भी कम होगी। ध्यान रहे आपके पूरे समय बच्चों को भरपूर मात्रा में पानी पिलाना होगा इससे बॉडी हाइड्रेट रहेगी और बच्चा थका हुआ महसूस नहीं करेगा। जब बच्चा बाहर अपने दोस्तों के साथ खेल कर वापस घर में आता है, तो आप उसकी पसंदीदा किताबें, टीवी शो, गिटार जैसी चीजें दे सकते हैं। जिसे कर वह अपना मूड फ्रेश कर सकता है और कुछ सीख सकता है।
बच्चे के साथ बैठकर करें बातें
इसके अलावा आप शाम के वक्त अपने बच्चे को अपने पास बैठकर कुछ समय उसके साथ बातें करें। अगर आपका बच्चा बहुत ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता है, तो आप उसे मोबाइल फोन देना कम कर दें। स्कूल से आते ही सबसे पहले आप उसे सुला दें और अगर उसके पास मोबाइल फोन है, तो आप अपने बच्चों से फोन वापस ले लें।
भरपूर नींद लेना जरूरी
ध्यान रहे हर बच्चे को पूरे 7 से 8 घंटे की नींद लेना जरूरी होता है। आप अपने बच्चों को सुबह जल्दी उठा कर व्यायाम करा सकते हैं। इससे तनाव कम होगा और थकान भी नहीं होगी। इसके अलावा हर पेरेंट्स को अपने बच्चों की सुनना चाहिए, क्योंकि कई बार पेरेंट्स अपनी बातें रख देते हैं और बच्चों की बातें नहीं सुन पाते हैं। इससे पेरेंट्स अपने बच्चों को अच्छे से नहीं समझ पाते हैं।