विरासत में मिले संस्कारों ने बनाया समाजसेवी
मूलत: गांव दुलिया (हरदा) के रहने वाले डॉ. अंकुर पारे विभिन्न राज्यों में समाज के वंचित तबके लिए लंबे समय से सेवा कार्यों में जुटे हैं। विरासत में मिली सेवा भावना ने उन्हें समाज के प्रति संवेदनशील बनाया। यही कारण है कि वे और निरंतर समाजसेवा के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। वे कहते हैं कि रामचरित मानस ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया है।
अंकुर विस्थापितों के अधिकार एवं उत्थान के लिए कई वर्षों से मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों में कार्य कर रहे हैं और सामाजिक वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। वे 19 राष्ट्रीय शोध परियोजनाओं पर काम कर चुके हैं। उनकी हाल में ही ‘विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन’ पुस्तक प्रकाशित हुई है।
डॉ. पारे ग्रामीण विकास के लिए जागरूकता अभियान एवं शिविरों का आयोजन करते हैं। उन्नत कृषि, जैविक खाद्य आदि के लिए निःशुल्क शिविर लगाते हैं। धारणीय विकास के लिए जलसंरक्षण, सोख्ता पीठ आदि के लिए कार्य करते हैं।
वे महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम एवं युवाओं को स्वरोजगार प्रशिक्षण आदि के निःशुल्क शिविरों का आयोजन करते हैं। वृद्धों की सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं के निवारण के लिए भी शिविरों का आयोजन करते हैं। सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल-विवाह, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या आदि के खिलाफ भी जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
अंकुर पारे को भारत सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार एवं मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य स्तरीय राष्ट्रीय सेवा योजना पुरस्कार दिया जा चुका है। इसके साथ ही राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं।