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Written By भाषा
Last Modified: भोपाल (भाषा) , बुधवार, 10 दिसंबर 2008 (16:40 IST)

भाजपा को रास आया गुजरात फार्मूला

भाजपा को रास आया गुजरात फार्मूला -
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी द्वारा स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई है कि गुजरात फार्मूला अपनाकर पार्टी ने कोई जोखिम नहीं लिया। भाजपा ने एक तिहाई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने के बाद भी प्रदेश में 143 सीटें प्राप्त कर अपना प्रभुत्व बनाए रखा है।

भाजपा ने जब अलग-अलग चरणों में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी तो साफ नजर आ रहा था कि गुजरात के मोदी फार्मूले को पूरी तरह से अमल में लाया गया है और कुछ पुराने चेहरों को बैठाकर नए चेहरों और सांसदों को मौका दिया गया है।

पार्टी ने उम्मीदवारों की पहली सूची में परिसीमन विधायकों की अलोकप्रियता और भ्रष्टाचार के आरोपों की आड़ में 28 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए थे। पहली सूची में राज्य के लोक निर्माण राज्यमंत्री नारायणसिंह, कबीरपंथी सागर पर भी भरोसा नहीं जताया गया था।

पार्टी ने तीन सूचियों में 217 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए थे और शेष 13 की जिम्मेदारी पार्टी अध्यक्ष राजनाथसिंह पर छोड़ दी थी।

पहली तीन सूचियों में घोषित 217 उम्मीदवारों में से 54 मौजूदा विधायकों को पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया गया। यानी कुल मिलाकर लगभग एक तिहाई मौजूदा विधायकों को मतदाताओं के बीच अलोकप्रिय छवि के कारण इस बार मौका नहीं दिया गया।

हालाँकि वर्तमान विधायकों के टिकट कटने से बगावत के स्वर भी तेज हो गए थे और कई बागी अन्य पार्टियों के टिकट पर खड़े हो गए थे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया था कि विद्रोह सहने के लिए पार्टी पूरी तरह तैयार है। प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय नेता अनंत कुमार ने विश्वास जताया था कि यह प्रयोग सफल होगा।

यही नहीं भाजपा ने इस बार के चुनावों में 19 नए चेहरों और कुछ भाजपा सांसदों को भी मौका दिया। गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जहाँ अलोकप्रियता के नाम पर मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं देकर लगातार तीसरी बार सत्ता पर कब्जा किया था, वहीं भाजपा ने एक ही कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री देकर भी अपनी लोकप्रियता को बनाए रखा और विधायकों के टिकट काटकर जोखिम लिया।

भाजपा के पक्ष में गए नतीजों से यह भी स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की व्यक्तिगत छवि और सरकार के विकास के दावे के आगे कांग्रेस और उमा भारती किसी की नहीं चली।

इस बार पार्टी की सीटों में कमी जरूर आई है। पिछले चुनावों में पार्टी ने 173 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार ये घटकर 143 ही रह गई। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पिछले चुनाव में जनता ने दिग्विजयसिंह को हटाने के लिए मतदान किया था और इस बार शिवराजसिंह को लाने के लिए किया है।

भाजपा के जीतने वाले कुछ नए चेहरों में रमेश मेंदोला, विश्वास सारंग, जीतू जिराती और सुदर्शन गुप्ता आदि हैं। इसके अलावा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी व युवा नेता ध्रुव नारायणसिंह भी जीतने में सफल रहे हैं।

दिवंगत भाजपा नेता और राज्य सरकार में मंत्री रहे लक्ष्मणसिंह गौड़ की परंपरागत सीट से उनकी पत्नी मालिनी गौड़ ने नए चेहरे के तौर पर विजय प्राप्त की तो धार से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा को केवल एक वोट से सफलता मिली।

इसके अलावा रामकृष्ण कुसुमारिया, गौरीशंकर बिसेन और नीता पटेरिया सांसद से विधायक बने हैं। हालाँकि पार्टी के सात मंत्रियों को इस बार हार का मुँह देखना पड़ा। इनमें हिम्मत कोठारी रूस्तमसिंह, अखंड प्रतापसिंह, गौरीशंकर शेजवार, रामपालसिंह, कुसुम मेहदेले, चंद्रभानसिंह और रमाकांत तिवारी हैं।