रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. क्या पढ़े?
Written By ND

बिना शर्त के प्रेम का जादू

बिना शर्त के प्रेम का जादू -
ND
'चिकन सूप फॉर द सोल' जीवन को सकारात्मकता की ओर ले जाने वाले किस्सों की विश्वभर में लोकप्रिय श्रृंखला है। दिल को छूने वाले इन किस्सों का हिन्दी अनुवाद भी आया है। इसी कड़ी की एक किताब है 'आत्मा के लिए अमृत का दूसरा प्याला'। मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल के लिए इसका अनुवाद किया है डॉ. सुधीर दीक्षित, रजनी दीक्षित ने

कहानी-1.
मेरी माँ को अल्जाइमर्स रोग हो गया था। मेरे पिता भी बीमार रहने लगे थे, इसलिए वे उनकी देखभाल नहीं कर पाते थे। वे अलग-अलग कमरों में रहते थे, लेकिन इसके बावजूद वे ज्यादा से ज्यादा देर तक साथ रहते थे। वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। सफेद बालों वाले येदोनों प्रेमी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घूमते थे, दोस्तों से मिलते थे और प्यार बाँटते थे। वे बुढ़ापे में भी 'रोमांटिक युगल' थे।

जब मुझे लगा कि मेरी माँ की बीमारी बढ़ रही है, तो मैंने उन्हें एक पत्र लिखकर बताया कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ। मैंने बचपन की शरारतों के लिए उनसे माफी माँगी। मैंने उन्हें बताया कि वे बहुत अच्छी माँ हैं और मुझे उनका बेटा होने पर गर्व है

मैंने उन्हें वे सारी बातें बताईं, जो मैं लंबे समय से कहना चाहता था, लेकिन अपनी जिद के कारण उन्हें अब तक नहीं कह पाया था। अब मैं उन्हें यह इसलिए बता रहा था, क्योंकि मुझे यह एहसास हो चुका था कि शायद कुछ समय बाद वे इस स्थिति में ही न रहें कि शब्दों के पीछे प्रेम को समझ सकें

यह प्रेम से भरी लंबी चिट्ठी थी। मेरे डैडी ने मुझे बताया कि माँ अक्सर उस चिट्ठी को घंटों तक पढ़ती रहती थीं।

इसके कुछ दिनों बाद स्थिति यह हो गई थी कि मेरी माँ अब मुझे नहीं पहचानती थीं। वे अक्सर मुझसे पूछती थीं- 'तुम्हारा क्या नाम है?' इस पर मैं गर्व से जवाब देता था कि मेरा नाम लैरी है और मैं उनका बेटा हूँ। वे मुस्कुराकर मेरा हाथ पकड़ लेती थीं। काश मैं एक बार फिर उस खास स्पर्श को महसूस कर पाता!

एक दिन मैंने अपने मम्मी-डैडी के लिए एक-एक स्ट्रॉबेरी माल्ट खरीदा। मैं सबसे पहले माँ के कमरे में रुका, उन्हें दोबारा अपना परिचय दिया और कुछ मिनट तक बातें करने के बाद दूसरे स्ट्रॉबेरी माल्ट को लेकर अपने डैडी के कमरे में चला गया।

जब तक मैं लौटा, तब तक माँ अपना माल्ट लगभग खत्म कर चुकी थीं और आराम करने के लिए बिस्तर
  जब मुझे लगा कि मेरी माँ की बीमारी बढ़ रही है, तो मैंने उन्हें एक पत्र लिखकर बताया कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ। मैंने बचपन की शरारतों के लिए उनसे माफी माँगी। मैंने उन्हें बताया कि वे बहुत अच्छी माँ हैं और मुझे उनका बेटा होने पर गर्व है।      
पर लेट चुकी थीं। वे जाग रही थीं और मुझे कमरे में आते देखकर मुस्कुराने लगीं।

कुछ बोले बिना मैंने एक कुर्सी बिस्तर के पास खींच ली और उनका हाथ पकड़ लिया। यह एक दैवी स्पर्श था। मैंने खामोशी से उनके प्रति अपना प्यार जताया। उस शांति में मैं हमारे असीम प्रेम के जादू को महसूस कर सकता था

  उन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने का यह खास तरीका खोजा था। जब वे दोनों चर्च में साथ-साथ बैठते थे, तो वे मेरे डैडी का हाथ तीन बार दबाकर यह बताती थीं, 'मैं तुमसे प्यार करती हूँ!' डैडी उनके हाथ को दो बार हौले से दबाकर जवाब देते थे, 'मैं भी!'      
हालाँकि मैं जानता था कि उन्हें तो यह एहसास ही नहीं होगा कि उनका हाथ कौन थामे था। या फिर मैंने नहीं, बल्कि उन्होंने मेरा हाथ थाम रखा था? लगभग दस मिनट बाद मैंने महसूस किया कि वे मेरे हाथ को हौले-हौले दबा रही थीं... तीन बार। मैं तत्काल समझ गया कि वे क्या कहना चाह रही थीं, हालाँकि उन्होंने कुछ नहीं कहा था।

बिना शर्त के प्रेम का जादू दैवी शक्ति और हमारी कल्पना शक्ति से फलता-फूलता है।

मुझे इस पर यकीन नहीं हुआ! हालाँकि वे अपने दिल के विचारों को पहले की तरह शब्दों में नहीं बता सकती थीं, लेकिन शब्दों की जरूरत भी नहीं थी। ऐसा लग रहा था, जैसे एक पल के लिए वे अपने पुराने रूप में लौट आई हों।

बहुत साल पहले जब मेरे डैडी और माँ डेटिंग कर रहे थे, तो उन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने का यह खास तरीका खोजा था। जब वे दोनों चर्च में साथ-साथ बैठते थे, तो वे मेरे डैडी का हाथ तीन बार दबाकर यह बताती थीं, 'मैं तुमसे प्यार करती हूँ!' डैडी उनके हाथ को दो बार हौले से दबाकर जवाब देते थे, 'मैं भी!' मैंने उनके हाथ को दो बार हौले से दबाया। उन्होंने अपना सिर घुमाया और मुस्कराकर मुझे इतने प्यार से देखा कि मैं उसे कभी नहीं भूल पाऊँगा। उनके चेहरे पर प्रेम की चमक थी।

मुझे अच्छी तरह याद था कि वे मेरे पिता, हमारे परिवार और अपने अनगिनत मित्रों से निःस्वार्थ प्रेम करती थीं। उनका प्रेम मेरे जीवन को अब भी गहराई से प्रभावित कर रहा है।

आठ-दस मिनट और बीत गए, लेकिन एक भी शब्द नहीं बोला गया। अचानक वे मेरी तरफ मुड़ीं और धीरे से बोलीं : 'किसी ऐसे व्यक्ति का होना महत्वपूर्ण है, जो आपसे प्यार करता हो।' मैं रो दिया। ये खुशी के आँसू थे

मैंने उन्हें गर्मजोशी से गले लगा लिया और उन्हें बताया कि मैं उनसे बहुत प्यार करता हूँ। फिर मैं वहाँ से चला आया। मेरी माँ इस घटना के कुछ समय बाद ही गुजर गईं। उस दिन बहुत कम शब्द कहे गए थे। जो शब्द उन्होंने कहे थे, वे सोने जितने बेशकीमती थे। मैं हमेशा उन खास पलों को सँजोकर रखूँगा।
- लैरी जेम्स
  दोनों भाई बरसों तक हैरान होते रहे कि उनके अनाज के बोरे कभी खत्म या कम क्यों नहीं हुए। फिर एक अँधेरी रात को दोनों भाई आपस में टकरा गए। उन्हें सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने अपने बोरे पटककर एक-दूसरे को गले लगा लिया।      
कहानी-2. दो भा
दो भाई अपने खेत में एक साथ काम करते थे। उनमें से एक शादीशुदा था और उसके बच्चे भी थे। दूसरा कुँआरा था। हर शाम को दोनों भाई फसल और मुनाफे को बराबर-बराबर बाँट लेते थे।

फिर एक दिन छोटे भाई ने सोचा 'यह ठीक नहीं है, हम दोनों भाई फसल और मुनाफे में से बराबरी का हिस्सा लें। मैं अकेला हूँ और मेरी जरूरतें कम हैं इसलिए मेरे भाई को ज्यादा मिलना चाहिए।' इसलिए हर रात को वह अपने खलिहान में से अनाज का एक बोरा उठाता था और दोनों के मकानों के बीच की खाली जगह से होता हुआ अपने भाई के खलिहान में रख आता था।

इस दौरान शादीशुदा भाई ने सोचा 'यह ठीक नहीं है कि हम दोनों भाई फसल और मुनाफे में से बराबरी का हिस्सा लें। आखिर, मैं शादीशुदा हूँ और आने वाले सालों में मेरी पत्नी और मेरे बच्चे मेरी देखभाल करेंगे। मेरे भाई की न तो पत्नी है, न ही बच्चे, इसलिए भविष्य में उसकी देखभाल कौन करेगा? उसे ज्यादा मिलना चाहिए।' इसलिए हर रात को वह अनाज का एक बोरा उठाकर अपने कुँआरे भाई के खलिहान में रख आता था।

दोनों भाई बरसों तक हैरान होते रहे कि उनके अनाज के बोरे कभी खत्म या कम क्यों नहीं हुए। फिर एक अँधेरी रात को दोनों भाई आपस में टकरा गए। उन्हें सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने अपने बोरे पटककर एक-दूसरे को गले लगा लिया।
  छः महीने बाद उनका ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन से पहले वाली रात को उन्होंने अपना सब कुछ दान में दे दिया। उन्होंने एक 'वसीयत' में लिखा कि उनकी मौत होने पर उनके शरीर के सभी हिस्से जरूरतमंद लोगों को लगा दिए जाएँ।      
कहानी-3. जिसे देखा ही नहीं!
लिंडा ब्रिटिश ने सचमुच खुद को झोंक दिया। लिंडा एक उत्कृष्ट टीचर थीं, जो महसूस करती थीं कि अगर उनके पास समय होता, तो वे महान चित्र और कविता की रचना कर सकती थीं। बहरहाल, 28 साल की उम्र में उन्हें भयंकर सिरदर्द होने लगा। डॉक्टर ने जाँच करने के बाद उन्हें बताया कि उनके सिर में एक बड़ा ट्यूमर था। उन्होंने लिंडा को बताया कि ऑपरेशन के बाद भी उनके बचने की संभावना लगभग 2 प्रतिशत है। इसलिए तत्काल ऑपरेशन करने के बजाय उन्होंने छः महीने इंतजार करने का फैसला किया।

लिंडा जानती थीं कि उनमें चित्रकला की प्रतिभा है। इसलिए उन छः महीनों में उन्होंने बहुत से चित्र बनाए और बहुत-सी कविताएँ लिखीं। एक कविता को छोड़कर उनकी सभी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपीं। एक चित्र को छोड़कर उनके सभी चित्र कला प्रदर्शनियों में रखे गए और बिक गए।

छः महीने बाद उनका ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन से पहले वाली रात को उन्होंने अपना सब कुछ दान में दे दिया। उन्होंने एक 'वसीयत' में लिखा कि उनकी मौत होने पर उनके शरीर के सभी हिस्से जरूरतमंद लोगों को लगा दिए जाएँ।

दुर्भाग्य से लिंडा का ऑपरेशन सफल नहीं हो पाया। उनके मरने के बाद उनकी आँखें बेथेस्डा, मैरीलैंड के आई बैंक में पहुँच गईं, जहाँ उन्हें साउथ कैरोलिना के एक आदमी को लगा दिया गया। 28 साल के एक नवयुवक को आँखों की रोशनी मिल गई। वह युवक इतना ज्यादा कृतज्ञ हुआ कि उसने आई बैंक वालों को धन्यवाद दिया। आई बैंक को 'धन्यवाद' की यह सिर्फ दूसरी चिट्ठी मिली थी, हालाँकि वे 30,000 से ज्यादा आँखें दान में दे चुके थे।

इसके अलावा, वह युवक दानदाता के परिवार को भी धन्यवाद देना चाहता था। उसने सोचा, वे लोग बहुत अच्छे होंगे, जिनकी बेटी ने उसे अपनी आँखें दी हैं। उसने ब्रिटिश परिवार का पता मालूम किया और स्टेटन आईलैंड जाकर उनसे मिलने का फैसला किया। वह बिना बताए पहुँचा और उसने दरवाजे की घंटी बजाई। जब उसने अपना परिचय दिया, तो मिसेज ब्रिटिश ने उसे गले लगा लिया। उन्होंने कहा- 'बेटा, अगर तुम्हें कहीं नहीं जाना हो, तो मेरे पति और मैं चाहेंगे कि तुम वीकएंड हमारे साथ ही गुजारो।'

वह तैयार हो गया। जब वह लिंडा के कमरे में गया, तो उसने देखा कि लिंडा प्लेटो की पुस्तकें पढ़ती थी। उसने भी ब्रेल में प्लेटो की पुस्तकें पढ़ी थीं। वह हीगल की पुस्तकें पढ़ती थी। उसने भी ब्रेल में हीगल की पुस्तकें पढ़ी थीं।

अगली सुबह मिसेज ब्रिटीश उसे गौर से देखते हुए बोलीं, 'मुझे लगता है कि मैंने तुम्हें पहले कहीं देखा है, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैंने तुम्हें कहाँ देखा है।' अचानक उन्हें याद आ गया। वे भागकर ऊपर की मंजिल पर गईं और लिंडा की पेंट की हुई आखिरीतस्वीर निकाली। यह लिंडा के आदर्श व्यक्ति की तस्वीर थी।

वह तस्वीर हूबहू इसी युवक जैसी थी, जिससे लिंडा की आँखें मिली थीं। फिर लिंडा की माँ ने वह आखिरी कविता पढ़ी, जो लिंडा ने अपनी मृत्युशैया पर लिखी थी। इसमें लिखा थाः
रात को गुजरते हुए
दो दिल प्रेम में पड़े, लेकिन
कभी एक-दूसरे को देख नहीं पाए।