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Last Modified: शनिवार, 9 दिसंबर 2017 (11:38 IST)

नोबेल पुरस्कारों की दुनिया भी मर्दों की है

नोबेल पुरस्कारों की दुनिया भी मर्दों की है | Nobel Prize
नोबेल पुरस्कार की कहानी भी दुनिया की औरतों के लिए एक दुखद तस्वीर करती है क्योंकि हर 20 नोबेल पुरस्कारों में सिर्फ एक ही महिलाओं के पास जाता है।
 
चिकित्सा, भौतिकी, रसायन, साहित्य और अर्थशास्त्र का पुरस्कार स्वीडन में दिया जाएगा जबकि शांति का नोबेल नॉर्वे में दिया जाएगा। ये दोनों देश महिलाओं के हक के लिए काम करने वालों में काफी आगे हैं और बड़े गर्व के साथ अपने देश की राजनीति में महिलाओं की बराबरी को प्रमुखता देते हैं।
 
इस दशक में महिला नोबेल विजेताओं की संख्या बढ़ी है। 1901 में पुरस्कार की शुरुआत से लेकर 1920 तक केवल 4 महिलाओं को यह पुरस्कार मिला जबकि 2001 से लेकर 2017 के बीच 19 नोबेल विजेता महिलाएं हैं। इसके साथ ही यह भी सच है कि अब तक केवल 48 महिलाओं को नोबेल पुरस्कार मिला है। इस तरह अगर संस्थाओं को अलग कर दें तो कुल पुरस्कारों का पांच फीसदी हिस्सा ही महिलाओं के हिस्से आया है।
 
पुरस्कारों के वर्ग के आधार पर भी इसे इस तरह से देखा जा सकता है कि अब तक अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार किसी महिला के लिए जीतना सबसे मुश्किल रहा है। साहित्य का पुरस्कार भी मुख्य रूप से पुरुषों को ही मिलता रहा है, हालांकि शांति के मामले में यह रिकॉर्ड थोड़ा सा महिलाओं के लिए बेहतर है।
 
1895 में जब स्वीडन के उद्योगपति, वैज्ञानिक और मानवतावादी अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के मुताबिक इन पुरस्कारों की रचना हुई तो सिर्फ पांच श्रेणियों में ही पुरस्कार थे। बाद में 1968 में स्वीडन के राष्ट्रीय बैंक की 300वीं सालगिरह पर अर्थशास्त्र का नोबेल देने की शुरुआत हुई। अब तक सिर्फ एक महिला को अर्थशास्त्र के लिए नोबेल विजेता चुना गया है।
 
इसी तरह रसायन और भौतिकी का नोबेल पुरस्कार भी महिलाओं के लिए दुर्लभ ही है। अब तक सिर्फ चार महिलाओं को भौतिकी और दो महिलाओं को रसायन के लिए यह पुरस्कार मिला है। वास्तव में इन दोनों श्रेणियों में दो पुरस्कार तो मैडम क्यूरी को ही मिले, पहली बार भौतिकी के लिए 1903 में और दूसरी बार रसायन के लिए 1911 में। 
 
भौतिकी, रसायन और अर्थशास्त्र के लिए विजेताओं का चुनाव करने वाली रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के स्थायी सचिव गोरान हैनसन कहते हैं, "हम दुखी हैं, बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो ज्यादा महिलाएं नहीं हैं जिन्हें पुरस्कार मिला हो। यहां कमेटियों में कोई पुरुष प्रधानतावादी पूर्वाग्रह नहीं है।" विजेताओं का चयन करने वाली कमेटियों में चार का नेतृत्व फिलहाल महिलाओं के हाथ में है। हैनसन का कहना है कि महिलाओं के कम विजेता होने की वजह यह है कि लैबोरेट्री का दरवाजा लंबे समय तक महिलाओँ के लिए बंद रहा है।
 
स्वीडिश रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज की सदस्य एन्ने ले हुइलियर नोबेल की भौतिकी कमेटी में शामिल रही हैं। वह भी यह स्वीकार करती हैं कि बहुत कम ही महिलाएं प्रयोगशालाओं में जाती हैं और उनमें से भी बहुत कम अपने क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचती हैं। उन्होंने कहा, "यह बिल्कुल स्वाभाविक है, खासतौर से कठिन विज्ञान के लिए, शायद जीव विज्ञान के लिए यह थोड़ा कम कठिन है।" जीव विज्ञान के लिए विजेताओं का चुनाव प्रतिष्ठित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट करता है। अब तक 12 महिलाओँ को इस वर्ग में पुरस्कार के लिए चुना गया है जो बाकियों की तुलना में थोड़ी बेहतर तस्वीर पेश करता है।
 
साहित्य के क्षेत्र में जरूर स्थिति बेहतर हुई है। अब तक 14 महिलाओँ को इस वर्ग में पुरस्कार मिला है जो कुल मिलाकर 12.3 फीसदी है। 2007 के बाद से विजेताओं को देखें तो यह आंकड़ा 36 फीसदी तक चला जाता है। महिलाओँ के लिए सबसे अच्छा रिकॉर्ड है जहां 16 महिलाओं को अब तक यह पुरस्कार मिला है। यह और बात है कि कुल पुरस्कारों का यह भी महज 15.4 फीसदी ही है। बीते 15 सालों में छह बार नोबेल विजेता महिलाएं रही हैं।
 
एनआर/एके (एएफपी)
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