हिरवानी का अनफिट होना बना वरदान
पूर्व लेग स्पिनर और मौजूदा राष्ट्रीय चयनकर्ता मध्यप्रदेश के नरेन्द्र हिरवानी का अनफिट होना लेग स्पिनर अनिल कुंबले के लिए वरदान बन गया था। हिरवानी के अचानक अनफिट होने और उनकी खराब फॉर्म से कुंबले के राष्ट्रीय टीम में वापसी का रास्ता खुल गया था, जिसके बाद से उन्होंने 18 वर्ष लगातार खेलते हुए दुनिया के शीर्ष गेंदबाजों में अपना नाम शुमार कराया और गत रविवार को फिरोजशाह कोटला में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरा टेस्ट ड्रॉ होने के बाद अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया।प्रसिद्ध क्रिकेट लेखक प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने अपनी किताब 'भारतीय स्पिन गेंदबाजी की परम्परा' में लिखा है कि दक्षिण क्षेत्र में लगातार तगड़ी प्रतिस्पर्धा करते रहने के बाद कुंबले ने भारतीय टीम में स्थान बनाया, लेकिन 1990 के इंग्लैंड दौरे के बाद उन्हे भुला दिया गया क्योंकि हिरवानी बतौर लेग स्पिनर भारतीय टीम में अपना स्थान बना चुके थे और अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे।प्रो. चतुर्वेदी ने अपनी किताब में कुंबले के ऊपर एक पूरे अध्याय में लिखा है...लेकिन अचानक हिरवानी का अनफिट हो जाना और उनका चयनकर्ताओं के हिसाब से प्रदर्शन न कर पाना कुंबले के लिए वरदान बन गया। वर्ष 1992-93 में दिल्ली में खेले गए ईरानी ट्रॉफी मैच में दिल्ली के खिलाफ शेष भारत के लिए पहली पारी में 64 रन पर सात और दूसरी पारी में 74 रन पर छह विकेट सहित मैच में 138 रन पर 13 विकेट लेने के बाद तो जैसे उनकी किस्मत का दरवाजा खुल गया। कुंबले ने अपना टेस्ट पदार्पण 9 अगस्त 1990 को मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ किया था, लेकिन इसके बाद उन्हें भुला दिया गया। इसके बाद अक्टूबर 1992 में उनकी जिम्बाब्बे दौरे के लिए टीम में वापसी हुई और फिर दक्षिण अफ्रीका दौरे में उन्होंने अपनी पहचान बनाई।प्रो. चतुर्वेदी ने अपनी किताब में लिखा है कि ईरानी ट्रॉफी के प्रदर्शन के बाद सभी का ध्यान कुंबले की तरफ गया और लोगों को लगा कि भारत को एक उम्दा स्पिनर की जो तलाश थी यह पूरी हो गई।भारतीय टीम से एक बार बाहर हो जाने के बाद वापसी करना आसान नहीं होता। दम गुर्देवाले ही वापसी कर पाते हैं। कुंबले 1990 के इंग्लैंड दौरे के बाद टीम से बाहर कर दिए गए, लेकिन इसके बाद वह लगातार कड़ी मेहनत और अभ्यास करते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और ईरानी ट्रॉफी के नायाब प्रदर्शन के बाद वह भारतीय टीम में लौट आए। दक्षिण अफ्रीका दौरे में जोहानसबर्ग में खेले गए दूसरे टेस्ट की दूसरी पारी में 53 रन पर छह विकेट लेकर उन्होंने धमाकेदार वापसी की।कुंबले ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चार टेस्टों की श्रृंखला में 25.94 के औसत से 18 विकेट लिए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रविवार को दिल्ली में अपने भाग्यशाली फिरोजशाह कोटला मैदान में जब कुंबले ने अपने संन्यास की घोषणा की तो उनके खाते में 132 टेस्टों में 29.25 के औसत से 619 विकेट थे और वह दुनिया के तीसरे सबसे सफल गेंदबाज थे।प्रो. चतुर्वेदी ने लिखा कि यह सच है कि भारत में कुम्बले से अधिक स्पिन कराने वाले गेंदबाज हुए हैं। सुभाष गुप्ते तो खैर अपने समय के विश्व के सर्वश्रेष्ठ लेग स्पिनर माने जाते थे। शिवारामाकृष्णन और हिरवानी भी कुंबले से ज्यादा स्पिनर करा लेते थे, पर कुंबले की शक्ति स्पिन न होकर रफ्तार और उछाल थी। उन्होंने लिखा कि कुंबले एक ऐसे गेंदबाज थे जो लेग ब्रेक एक्शन से गेंदबाजी तो करते थे लेकिन न तो उनकी गेंदों में स्पिन थी और न ही घातक फ्लाइट। इसके बावजूद उनकी गेंदबाजी की दिशा लम्बाई और सटीकता अतुलनीय थी। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि विकेट लेने की जो क्षमता तथा अपनी सीमाओं को पहचानने और सीमा में ही गेंदबाजी करने की जो खूबी कुंबले में थी वह उनके समकालीन और उनसे बेहतर गेंदबाजों में नहीं थी।