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Written By भाषा

दिग्गज कर्जदाता भी बने कर्जदार

दिग्गज कर्जदाता भी बने कर्जदार -
यह साल वैश्विक बैंकों के ढहने के लिए जाना जाएगा। न्यूयॉर्क से लेकर टोक्यो तक विश्व के कई दिग्गज बैंकर कर्जदाता से कर्जदार बन गए और अपनी-अपनी सरकारों से राहत (बेलआउट) की गुहार लगाते रहे।

सौ साल से भी ज्यादा पुराने लेहमैन ब्रदर्स के ढहने से शुरू हुआ सिलसिला जारी रहा और अमेरिका में दो दर्जन से भी ज्यादा बैंक धराशायी हो गए। हालाँकि अलग-अलग देशों की सरकारों ने संकटग्रस्त बैंकों को बचाने के लिए राहत पैकेज पेश किए।

विश्वभर में सरकारों ने 10000 अरब डॉलर से ज्यादा राशि राहत पैकेज के जरिये खर्च की। अब कहा जाने लगा है कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी 1930 के दशक की महामंदी से भी विकराल रूप ले रही है।

यही वजह है कि अमेरिका में नियामक से लेकर नियमन और जटिल इंस्ट्रूमेंट सभी की भारी आलोचना की जा रही है, लेकिन जब तक आरोप-प्रत्यारोप का दौर खत्म होता यह संकट पूरे विश्व में फैल गया, जिससे कई देशों के वित्तीय संस्थान ढह गए।

जहाँ अमेरिका ने लेहमैन ब्रदर्स और वॉशिंगटन म्यूचुअल (वामू) को ढहते देखा, वहीं ब्रिटेन ने एचबीओएस स्टैनचार्ट और बार्कलेज को धराशायी होते देखा। इस साल अभी तक अमेरिका में 25 बैंक दिवालिया हो चुके हैं।

अमेरिकी सरकार ने 700 अरब डॉलर का भारी-भरकम राहत पैकेज पेश किया, जिसमें से 250 अरब डॉलर संकटग्रस्त बैंकों में हिस्सेदारी लेने के लिए अलग रखे गये हैं।

उधर ब्रिटेन को छोड़कर यूरोप में कापथिंग ग्लिटनिर और लैंड्सबैंकी जैसे बड़े बैंकों के ढहने के बाद आइसलैंड एक तरह से दिवालियापन के कगार पर पहुँच गया।