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कविता : बाल गंगाधर तिलक

कविता : बाल गंगाधर तिलक - Bal Gangadhar Tilak
- डॉ. विनोद चन्द्र पाण्डेय 'विनोद'
 

 
तिलक बाल गंगाधर! तुमको,
शत-शत बार प्रणाम हमारा।
 
पराधीनता के बंधन में,
बंदी थी जब भारतमाता।
तुमने तन-मन-धन अर्पित कर,
देश-प्रेम से जोड़ा नाता।।
 
स्वतंत्रता अधिकार जन्म से,
दिया यही जन-जन को नारा।
तिलक बाल गंगाधर! तुमको,
शत-शत बार प्रणाम हमारा।।
 
आजादी के घोर युद्ध में,
बने एक अविचल सेनानी।
लड़े अनय अत्याचारों से,
हार नहीं जीवन में मानी।।
 
सुन सन्देश क्रांति का तुमसे,
जाग उठा था भारत सारा।
तिलक बाल गंगाधर! तुमको,
शत-शत बार प्रणाम हमारा।। 
 
तुमने गीता का रहस्य भी,
बड़ी सरलता से समझाया।
मिटा अविद्या-अंधकार को, 
नवल ज्ञान का दीप जलाया।। 
 
युग-युग तक सारी दुनिया में,
अमर रहेगा नाम तुम्हारा।
तिलक बाल गंगाधर! तुमको,
शत-शत बार प्रणाम हमारा।। 
साभार- देवपुत्र 
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