एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन चूहे दिखने में थे बड़े ही हसीन चूहे बनठन के निकले एक दिन तीनों घर से तीनों लाने चले थे दुल्हन शहर से पहले का मन एक चुहिया पर आ गया चूहा हसीन था चुहिया को भा गया पंडितजी ने दोनों का ब्याह कराया इस तरह पहले चूहे ने घर बसाया दूसरे को एक ऐसी चुहिया पसंद आई कि अपना चूहा बन बैठा घर जमाई पर मुश्किल तो तीसरे चूहे की थी भैया बहू का इंतजा कर रही थी उसकी मैया तीसरे चूहे ने तरकीबें तो खूब भिड़ाई पर फिर भी काबिल दुल्हन न मिल पाई अपने लिए इश्तेहार भी निकलाया पर कहीं से भी जवाब नहीं आया तीसरा चूहा अब तक है कँवारा बेचारा अपनी किस्मत का मारा चूहा बीएससी कंप्यूटर पास है बस दुल्हन न मिलने से उदास है अगर तुम्हारी नजर में चुहिया हो सयानी तो चल पड़े तीसरे चूहे की भी कहानी। - मोनिका मिश्रा, शामगढ़