गाँव सलोने प्यारे-प्यारे प्रकृति के वरदान। बदल गए हैं अर्थ यहाँ के होते नव-निर्माण।। घास-पूस की नहीं झोपड़ी नहीं वो मिट्टी गारा। आधुनिक भारत वालों ने इसका रूप सँवारा।। बदल गए हैं तौर तरीके बदली है परिभाषा।। पिछड़े गाँवों के होंठों पर है विकास की भाषा।। गाँवों से बनता है भारत गाँव हमारे प्यारे। है विकास की दौड़ में शामिल ये शहरों से न्यारे।।
बड़े मजे का गाँव जी डॉ. प्रमोद 'पुष्प'
सोनू-मोनू खेल रचाते, बगिया की इक छाँव जी। केला-अमरूद, सेब-संतरे, लदे-भरे हर ठांव जी।। चहुँ ओर है मनभावन, रंग-बिरंगे फूल। नदी किनारे गैया चरती, सुध बुध अपना भूल।। आकर सुबह-शाम नित कौआ। करता काँव-काँव जी।। झर-झर, झर-झर झरने झरते, नदियाँ करती कल-कल हरे-भरे जहाँ पेड़ घनेरे, खुशियाँ बाँटे हरपल।। ऐसा सुंदर दृश्य देखकर, थम-थम जाते पाँव जी।। भोले-भाले, सीधे-सादे, अजब निराले लोग। मीठे-मीठे फल चुन-चुनकर, सदा लगाते भोग।। छोटी-छोटी इनकी बस्ती बड़े मजे का गाँव जी।।