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Last Updated : मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016 (14:08 IST)

बांग्लादेश में 'रेप जिहाद' का सच...

बांग्लादेश में 'रेप जिहाद' का सच... - Truth of Bangladesh rape jehad
बांग्लादेश में अल्पसंख्‍यक हिन्दू लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं आम हैं साथ ही उनकी कहीं सुनवाई भी नहीं होती। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों लड़कियों पर जुल्म इस कदर बढ़ गए हैं कि इसे अब 'रेप जिहाद' का भी नाम भी दिया जाने लगा है। बलात्कार के बाद इन लड़कियों का धर्मपरिवर्तन भी करा दिया जाता है। 
 
भारत के बहुत पढ़े लिखे और अत्यधिक शिक्षित कथित धर्मनिरपेक्षवादी अभिव्यक्ति के नाम पर हम 
अभिव्यक्त की स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दुओं को कोसने वाले बुद्धिजीवियों को भारत में शरण लिए बांग्लादेश से निष्कासित लेखिका तसलीमा नसरीन के विचारों पर गौर करना चाहिए। कुछेक महीनों पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि 'भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम (जिन्हें आमतौर पर धार्मिक विचारों के कारण मुसलमान कहा जाता है) दंगे और बलात्कार कर सकते हैं किंतु बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदू ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते।'
 
तस्लीमा ने अपने ट्वीट में कहा है, ‘धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति झुकाव रखना धर्मनिरपेक्ष कहलाने का मानक नहीं है। आप धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हैं, इसका अर्थ होता है कि आपका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।’ लेकिन हमारे देश में 'धर्मनिरपेक्षता' का अर्थ है मुस्लिमों के वोट और इन वोटों को पाने की खातिर आप तुष्टिकरण की सारी सीमाएं लांघ सकते हैं। मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में भी अल्पसंख्यकों को 'धर्मनिरपेक्षता' का पाठ पढ़ाया जा रहा है लेकिन इसका तरीका पूरी तरह से मुस्लिम है, जैसा कि मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिमों के साथ होता है। वास्तव में, ऐसे देशों में हिंदुओं और उनकी लड़कियों, महिलाओं को बाजारू सामान से भी गया गुजरा समझा जाता है।    
 
इसके लिए मात्र एक उदाहरण ही काफी है। 21 जनवरी, 2016 को बांग्लादेश के चटगांव में एक 14 वर्षीय हिन्दू लड़की का अपहरण और बलात्कार किया गया। कक्षा नौवीं में पढ़ने वाली इस लड़की का अपहरण मोहम्मद सोहेल राणा नामक गुंडे ने किया था। परिवार ने पुलिस और सरकारी अधिकारियों के सामने अपना दुख बताया लेकिन इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत तक नहीं समझी गई। बलात्कार के बाद उसका धर्मपरिवर्तन भी करा दिया गया। पीड़िता के पिता ने पुलिस थाने में मामला दर्ज कराना चाहा लेकिन पुलिस अधिकारियों ने मामला दर्ज करने से मना कर दिया गया। बांग्लादेश माईनॉरिटी वॉच संगठन के अध्यक्ष अधिवक्ता रबींद्र घोष की सक्रियता से पुलिस को मामला को दर्ज करना पड़ा लेकिन इसके आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। 
 
पुलिस में मामला दर्ज कराने के कारण क्रोधित जिहादी अपराधी, मोहम्मद सोहेल राणा, पीड़िता के माता पिता पर मामला वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है और उन्हें धमकियां भी दे रहे हैं। इसके कारण पीड़िता की मां अपनी नौकरी पर नहीं जा पा रहीं हैं। इस हिन्दू परिवार को न्याय दिलाने के लिए अधिवक्ता रबींद्र घोष जी प्रयासरत हैं, लेकिन उनके प्रयास भी नगण्य हैं।
 
इस्लामी देशों की तो बात छोड़िए, हिंदुस्तान में ही ऐसे अनेक राज्य और स्थान ऐसे हैं जहां हिन्दुओं पर अत्याचार होते हैं। उन्हें अपनी बेटी, बहुओं की इज्जत के साथ घर-परिवार भी छोड़ना पड़ता है लेकिन किसी भी दल का कोई भी ढोंगी धर्मनिरपेक्षतावादी इस विषय पर अपना मुंह नहीं खोलता। उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाकों, केरल, तमिलनाडु और बंगाल के एक बड़े हिस्से में ऐसा होता है, लेकिन वोटों के लालच में कोई दल या नेता इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाता है।   
 
कश्मीर घाटी से लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में विस्थापित, शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ा है तो इसके लिए भारत का कथित 'लोकतंत्र', 'धर्मनिरपेक्षता' और वह 'तुष्टिकरण' की नीतियां जिम्मेदार हैं जिस अमरबेल को 'महात्मा' गांधी और नेहरू ने अपने त्याग और बलिदान से सींचा। बांग्लादेश में तो स्थिति यह है कि अपनी बेटी की जान बचाने के लिए बलात्कारियों से गुहार लगानी पड़ी कि वे उनकी बेटी से एक-एक कर बलात्कार करें अन्यथा वह मर जाएगी। 
 
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले का पुराना है इतिहास... पढ़ें अगले पेज पर....
 

बांग्लादेश में इस्लामी जेहादियों के हमले में हिंदू पुजारियों की हत्याओं के अपने ही आंकड़े हैं। 65 वर्षीय आनंद अपने घर से देवी मंदिर में पूजा करने के लिए निकले थे, लेकिन हत्यारे ने उनकी मांस काटने वाले कुल्हाड़े से उनकी हत्या कर दी। इसी तरह से रविवार को ईसाई लोगों की हत्या की जाती है और अल्पसंख्यकों की हत्या के मामलों की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी की पत्नी को भी मार दिया गया।
 
टंगाइल जिले के गोपालपुर उपजिला स्थित दुबैल गांव के रहने वाले निखिल चन्द्र की गला काट हत्या कर दी गई। निखिल एक टेलर थे। उससे पहले ब्लॉगर अनंत राय की बेरहमी से हत्या की गई। आंकड़ों की मानें तो इसी साल जनवरी से अब तक 40 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। जेहादी आतंकवादियों का कहना है कि इन सभी ने इस्लाम का अपमान किया और इन हत्यारों का शिकार हो रहे लोगो में अधिकतर लोग हिंदू या ईसाई समुदाय से आते हैं। 
 
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमलों का इतिहास काफी पुराना है और स्वतंत्रता के बाद 1951 के बाद से हर दशक में हिन्दुओं की आबादी लगातार घट रही है। विभाजन के बाद दस वर्षों में ही हिन्दुओं की आबादी 28 फीसदी से घटकर 22 प्रतिशत हो गई थी।
 
1961 की जनगणना अनुसार हिन्दुओं की संख्या 18.5  फीसदी थी जोकि 1974 में घटकर 13.5 प्रतिशत रह गई। लेकिन पाकिस्तान से बांग्लादेश स्वतंत्र होने के बाबजूद भी यह सिलसिला जारी रहा क्योंकि बांग्लादेश में बहुसंख्यक तो मुस्लिम ही हैं। 1981 में यह संख्या 12.1 प्रतिशत रह गई और लेकिन 2011 के आंकड़ों के मुताबिक हिन्दुओं की आबादी मात्र 8.5 प्रतिशत रह गई है और बची खुची हिंदू आबादी भी भारत में ही आकर बसना चाहती है। 
 
सांप्रदायिक नफरत की आग में जल रहे बांग्लादेशी कट्टरपंथियों, हिंसक मानसिकता वाले और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के समर्थकों ने हिन्दुओं के विरुद्ध जिहाद छेड़ दिया है और इसकी शिकार मासूम हिन्दू बालिकाएं, लड़कियां और महिलाएं भी हो रही हैं। पिछले तीन-चार वर्षों से किस प्रकार इन बालिकाओं पर मजहबी उन्मादियों, बलात्कारियों के अत्याचार बढ़ गए हैं, इसका तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
 
अक्टूबर 2001 को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात ए इस्लामी के गुंडों ने रीता रानी के गांव अन्नदा प्रसाद के हिन्दू परिवारों पर आक्रमण कर दिया। पुरुषों को बुरी तरह पीटा, घरों को लूटा और महिलाओं से बलात्कार किया। यह देख डरी सहमी रीता अपनी मां के साथ कहीं छुपने की जगह ढूंढने लगी। जैसे ही गुंडे रीता के घर में घुसे, अन्य सभी बच्चे और महिलाएं वहां से भाग खड़े हुए लेकिन रीता और उसकी मां तेजी से भाग नहीं पाईं। 
 
सलीम नाम के लड़के ने रीता को उसकी मां की गोद से छीन लिया और दोनों को अलग-अलग स्थानों पर ले जाया गया। वहीं धान के खेत में सलीम ने मासूम आठ वर्षीय रीता के साथ वह सब कुछ किया, जो मासूम बच्ची के लिए असहनीय था। तीन घंटे बाद जब उसे होश आया और आंखें खुलीं तो खून देखकर घबरा गई। उसे यह नहीं पता कि उसके साथ बलात्कार हुआ था लेकिन उसने इतना कहा कि सलीम और उसके साथियों ने उसके साथ बहुत बुरा किया।
मां मासूम बच्ची के लिए वहशी से भीख मांगती रही, लेकिन... पढ़ें अगले पेज पर...

इसके ठीक दो साल बाद अक्टूबर 2003 को गांव की दो और बच्चियां इन बलात्कारी जेहादियों की शिकार हुईं 12 वर्षीया कनिका दास और 13 वर्षीया शिखा बालादास अपने एक रिश्तेदार के घर आई हुई थीं। 2 अक्टूबर को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात ए इस्लामी के गुंडों ने उनके रिश्तेदार के घर पर हमला बोल दिया। बचने के लिए दोनों बच्चियां पास की अंधेरी झाड़ियों में छुप गईं।  फिर भी गुंडों ने उन्हें पकड़ लिया और पास ही धान के खेतों में ले गए और शिखा व कनिका से बार-बार बलात्कार किया। बाद में बेहोशी की हालत में दोनों अलग-अलग खेतों से बरामद हुई थीं। 
 
अक्टूबर, 2001 की वह रात याद कर पूर्णिमा रानी अब भी कांप उठती है, जब करीब 30 लोगों ने पर्बी देलुआ गांव में स्थित उसके घर पर हमला किया। बांग्लादेश के सिराजगंज में अनिल चन्द्र, उनकी पत्नी और 14 वर्षीय पूर्णिमा रहते थे। अनिल चन्द्र का कुछ लोगों से जमीन को लेकर झगड़ा चल रहा था। 8 अक्टूबर के दिन अनिल के घर पर कुछ ने धावा बोल दिया। इन लोगों ने अनिल और उनकी पत्नी को रस्सी से बांधकर बुरी तरह पीटा।
 
इसके बाद उन्होंने अपना गुस्सा एक मासूम बच्ची पर बच्ची पर निकाला। 24-25 वर्षीय हमलावरों ने माता पिता के सामने उनकी मासूम बच्ची का बलात्कार शुरू किया। पूर्णिमा इसे बर्दास्त नहीं कर पा रही थी और बार-बार बेहोश हो रही थी। लेकिन हमलावर उसके मुंह पर पानी की छींटों से उसे होश में ला रहे थे।
 
बेटी की इस हालत को देख एक मां को भी उनसे कहना पड़ा, 'अब्दुल, अली, मैं तुमसे रहम की भीख मांगती हूं, प्लीज मेरी बच्ची को छोड़ दो। जैसा तुमने कहा मै मुसलमान न होने की वजह से अपवित्र हूं लेकिन मेरी बच्ची पर रहम करो। मै तुम्हारे पांव पडती हूं, वह अभी 14 साल की है, बहुत कमजोर है। अपने अल्लाह के लिए कम से कम एक-एक कर बलात्कार करो। वह इस तरह सहन नहीं कर पाएगी। बेचारी खून में सनी हुई है।'
 
पूर्णिमा कहती है, 'मैं उनमें से ज्यादातर को पहचानती हूं, वे हमारे पड़ोसी मुस्लिम परिवारों के युवक थे। उन्होंने मेरी मां को बुरी तरह पीटा। वे उन्हें तब तक पीटते रहे, जब तक वह बेहोश नहीं हो गई। मैं उन्हें रोकती रही कि मेरी मां को मत मारो लेकिन वे मां को पीटते रहे और फिर मुझे घसीटते हुए बाहर ले गए। मैंने बचाव के लिए काफी हाथ-पैर मारे, लेकिन उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया।
 
मैंने अपनी बहन को भी जोर-जोर से आवाज लगाई लेकिन उन्होंने उसे भी पीटा। उसके बाद मेरे साथ क्या हुआ है, मैं बता नहीं सकती।' तीन घंटे बाद घर से एक मील दूर एक खेत में पूर्णिमा बेहोशी की हालत में मिली। बीएनपी और जमात ए इस्लामी के चार लोग इस अपराध में गिरफ्तार किए गए। लेकिन बाद में उन्हें बिना किसी पूछताछ के छोड़ दिया गया। 
 
पूर्णिमा के परिवार की त्रासदी यहीं समाप्त नहीं हुई। जमात ए इस्लामी और बीएनपी के गुंडों ने दो बार उनकी दुकान लूटी। उसके बड़े भाई को इतनी बुरी तरह से पीटा कि उसकी आंखों की रोशनी ही चली गई। जान से मारे जाने की धमकी के चलते पूर्णिमा का परिवार गांव छोड़कर चला गया। इस मामले में मात्र 6 लोगों को उम्रकैद की सजा हुई है लेकिन 5 आज तक फरार हैं। (यह विवरण 21 जुलाई, 2003को 'द ‍गार्जियन' में प्रकाशित हुआ था और इसे जॉन विडाल ने लिखा था)
अगले पेज पर पढ़ें.... बांग्लादेशी लड़की विभा की दर्दनाक दास्तान...

बांग्लादेश में हिंदू लड़कियों की हालत को लेकर और भी कहानियां हैं। 22 अप्रैल, 2003 को किशोरी विभा सिंह सुबह-सुबह कॉलेज जाने के लिए घर से निकली थी। कुछ दूर ही पहुंची थी कि बंदूक की नोक पर गुंडों ने उसका अपहरण कर लिया और अगले छह दिन तक खुलना शहर में उसे तीन अलग-अलग घरों में रखा गया जहां बड़ी निर्ममता से उसको शारीरिक यातनाएं दी गईं। इतना ही नहीं, गुंडों ने बर्बरता की सभी सीमाएं लांघीं और उसके शरीर के विभिन्न अंगों पर ब्लेड और चाकू से चीरा लगाया। 
 
उसके अंगों को सिगरेट से जलाया। उसके सिर को बार-बार दीवार से दे मारा। 29 अप्रैल को आखिर उसके पिता ने उसे ढूंढ निकाला। उसी दिन से विभा और उसका परिवार भयावह दु:स्वप्न की तरह जीवन जी रहा है। असुरक्षा की भावना से ग्रस्त विभा को लगता है कि उसका जीवन ही समाप्त हो गया है। बलात्कारी खुलेआम घूम रहे हैं और विभा व उसके परिवार वालों को धमका रहे हैं।
 
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर बसे चटगांव में 19 नवम्बर को तेजेन्द्र लाल शील के दो-मंजिला घर पर हथियारों से सुसज्जित आतंकवादी जेहादियों ने हमला कर दिया। सशस्त्र गुंडों ने भूतल को घेर लिया तो परिवार के सदस्यों ने ऊपरी मंजिल पर शरण ले ली। इसके बाद गुंडों ने ज्वलनशील पदार्थ सीढ़ियों पर छिड़का और इमारत को आग लगा दी। इस कांड में 3 महिलाएं और 5 बच्चे जिंदा जल गए। इनमें सबसे छोटी बच्ची ने तो अभी दुनिया में आंखें ही खोली थीं। वह चार दिन की बच्ची दुनिया में कुछ देखने से पहले ही जिंदा जला दी गई। 15 वर्षीया एनी शील और 11 वर्षीया रूमी शील ने भी धधकती लपटों के बीच दम तोड़ दिया। 
 
बारीशाल जिले के दुर्गापुर गांव में दान की जमीन पर अवैध कब्जा करने और लीज लेने के  खिलाफ दर्ज मामले के कारण 10 दिसम्बर 1988 को अब्दुल सुबहान और गुलाम हुसैन ने हथियारबंद लोगों के साथ राजेन्द्रनाथ के घर पर हमला किया। उन्होंने राजेन्द्रनाथ को बुरी तरह पीटा और घर में आग लगा दी। वे अष्टधातु की बनी राधाकृष्ण की मूर्ति ही ले गए जिसे राजेन्द्र नहीं देना चाहते थे। हमलावरों ने राजेन्द्रनाथ को सपरिवार देश छोड़ने की आदेश सुना दिया। 
क्या हुआ था कोटलीपाड़ा में.... पढ़ें अगले पेज पर....

गोपालगंज के कोटलीपाड़ा मकसूदपुर सहित पुरे गोपालपुर जिले में हिन्दुओ के घरों में डकैती, लूटमार, बलात्कार, मंदिरों को लूटा गया, अपवित्र किया गया है। हिन्दुओं के साथ पुलिस ने भी  भारी अत्याचार किया। 
 
कोटलीपाड़ा लाखिरपाड़ा गांव में दिनदहाड़े हिन्दुओं पर हमला हुआ। मादारबाड़ी लाखिरपाड़ा, घाघर बाजार, खेजुरीबाड़ी आदि इलाकों में हिन्दुओं से जबरन पैसा बसूला गया। स्टाम्प पेपर में उनके हस्ताक्षर करवाए गए। मंटू काजी ने कोटलीपाड़ा में सोनाली बैंक की मिसेज भौमिक के साथ बलात्कार किया। कान्द्री गांव की ममता, मधु सहित कई लड़कियों को नौकरी देने के नाम पर उपजिला कार्यालय में बंद कर बलात्कार किया गया। 
 
अगस्त, 1988 में पुलिस ने सशस्त्र युवकों के साथ बागेरहाटा जिले में चितलमारी उपजिला में गरीबपुर गांव पर हमला किया। यहां मंदिरों को तोडा गया। लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया।  चारबालीयाडी गांव में भी ऐसा ही मामले सामने आए। सातक्षीरा के ताला उपजिला में पारकुमिरा गांव में रविन्द्रघोष की लडकी छन्दा, जो तीसरी कक्षा में पढ़ती थी, उसके साथ गांव के ही शिक्षक ने बलात्कार किया। यह घटना 16 मई 1979 की है। छन्दा अपने परिवार के सदस्यों के साथ बरामदे में सोई हुई थी। आधी रात को उसका स्कूल मास्टर अपने कुछ साथियों के साथ उठाकर ले गया। अगली सुबह छन्दा एक बगीचे में खून से लथपथ बेहोशी की हालात में मिली। थाने में शिकायत दर्ज करने के बाबजूद भी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई।
 
बांग्लादेश में ऐसी कई कहानियों से इतिहास भरा हुआ है। इस्लामी कट्‍टरपंथियों के अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं, अत्याचार बढ़ रहे हैं और धार्मिक अल्पसंख्यकों, महिलाओं पर दमन, हिंसा और अपराधों को बताने वाले 18 माह की अवधि का एक डॉजियर जब ब्रिटिश सरकार को सौंपा गया तो ब्रिटेन ने बांग्लादेश को 'आमतौर पर सुरक्षित' देश करार दिया। यह जानकारी इंटरनेशनल एम्नेस्टी को दी गई तो संस्था ने इन घटनाओं को 'बकवास' बताया। बांग्लादेश के कई हजारों गांवों में हिंदू पलायन कर गए हैं और कई घटनाओं में तो हिंदू परिवारों को जिंदा जला दिया गया लेकिन पश्चिमी  और यूरोपीय देशों को ये घटनाएं 'बकवास' लगती हैं।   
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