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Last Updated : बुधवार, 7 अक्टूबर 2015 (11:12 IST)

तकाकी कजीता, ऑर्थर मैक्डोनाल्ड को 'भौतिकी का नोबेल'

तकाकी कजीता, ऑर्थर मैक्डोनाल्ड को 'भौतिकी का नोबेल' - Nobel Prize 2015
स्टॉकहोम (स्वीडन)। जापान के तकाकी कजीता और कनाडा के ऑर्थर मैक्डोनाल्ड को मंगलवार को फिजिक्स (भौतिकी शास्त्र) के लिए नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई। न्यूट्रीनो की गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली प्रकृति की खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। इस खोज से यह अहम नजरिया विकसित हो सका है कि सूक्ष्म कणों में भी द्रव्यमान होते हैं।
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि दोनों शोधकर्ताओं ने उन प्रयोगों में अहम योगदान किए जिनमें दिखाया गया कि न्यूट्रीनो ब्रह्मांड में जब गुजरते हैं तो लगभग प्रकाश की गति से अपनी पहचान बदलते हैं ।
 
न्यूट्रीनोज, परमाणु अभिक्रियाओं, जैसे - सूर्य, तारों या परमाणु उर्जा संयंत्रों, में पैदा होने वाले सूक्ष्म कण होते हैं। न्यूट्रीनोज तीन तरह के होते हैं और नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए वैज्ञानिकों ने दिखाया कि वे एक प्रकार से दूसरे प्रकार में दोलित होते हैं। इससे यह मान्यता कमजोर होती है कि वे द्रव्यमानविहीन होते हैं।
 
एकेडमी ने कहा, इस खोज ने पदार्थ की आंतरिक क्रियाओं को लेकर हमारी समझ को बदल दिया है और ब्रह्मांड को हम जिस तरह से देखते हैं, उसमें यह अहम साबित हो सकता है। 
 
56 साल के कजीता जापान की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ तोक्यो’ के प्रोफेसर और इंस्टीट्यूट फॉर कॉस्मिक रे रिसर्च के निदेशक हैं । 72 साल के मैक्डोनाल्ड कनाडा के किंग्सटन में क्वींस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमेरिटस हैं।
 
भौतिकी के नोबेल के लिए चुने गए दोनों वैज्ञानिक 80 लाख स्वीडिश क्रोनर (करीब 9 लाख 60 हजार अमेरिकी डॉलर) आपस में साझा करेंगे। 10 दिसंबर को आयोजित किए जाने वाले पुरस्कार समारोह में प्रत्येक विजेता को एक डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक से भी नवाजा जाएगा। 
 
कजीता और मैक्डोनाल्ड ने यह खोज तब की जब वे क्रमश: जापान के सुपर केमियोकेंडे डिटेक्टर और कनाडा के सडबरी न्यूट्रीनो ऑब्जर्वेटरी में काम करते थे।
एकेडमी ने कहा कि कजीता ने 1998 में दिखाया कि डिटेक्टर में इकट्ठा किए गए न्यूट्रीनोज वायुमंडल में कायांतरण की प्रक्रिया से गुजरे हैं। तीन साल बाद मैक्डोनाल्ड ने पाया कि सूर्य से आ रहे न्यूट्रीनोज ने भी अपनी पहचान बदली।
 
मैक्डोनाल्ड ने स्टॉकहोम में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में फोन के जरिए कहा कि ‘यूरेका’ वाला पल यानी खोज की उपलब्धि हासिल कर लेने का मौका वह था जब यह साफ हो गया कि उनके प्रयोग से यह साबित हो गया है कि न्यूट्रीनोज सूर्य से धरती की यात्रा के दौरान एक प्रकार से दूसरे प्रकार में बदलते रहते हैं।
 
यह पूछे जाने पर कि उन्हें उस वक्त कैसा महसूस हुआ जब पता चला कि अब उनके काम पर अचानक दुनिया भर का ध्यान आकर्षित होगा? इस पर मैक्डोनाल्ड ने कहा, यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण अनुभव है। मैक्डोनाल्ड ने कहा कि वैज्ञानिक फिर भी जानना चाहेंगे कि न्यूट्रीनो का असल द्रव्यमान क्या है। 
 
आगे पढ़े...एल्फ्रेड के अकेलेपन की उपज है 'नोबेल पुरस्कार'

नोबेल पुरस्कारों को दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि यह पुरस्कार एक ऐसे व्यक्ति के अकेलेपन की उपज थी, जिसने अपनी सारी उम्र विज्ञान की खोजों में लगा दी। यानी महान वैज्ञानिक एल्फ्रेड नोबेल। एल्फ्रेड नोबेल ने अपने पूरे जीवन में कुल 355 आविष्कार किए थे जिनमें वर्ष 1867 में डायनामाइट का आविष्कार भी है जो उसकी सबसे बड़ी खोज मानी जाती है।
 
दिसंबर 1896 में जब उनकी मृत्यु हुई तो वे यूरोप के सबसे अमीर लोगों में से एक थे। पर वह फिर भी खुद को अकेला महसूस करते थे। युवा अवस्था में प्रेमिका की मौत का एल्फ्रेड को इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने तमाम उम्र शादी नहीं की। इतना धन होने के बावजूद वह उनके काम का नहीं था। मौत के बाद जनवरी 1897 में जब उनकी वसीयत सामने आई तो पता चला कि उन्होंने अपनी संपत्ति का सबसे ब़ड़ा हिस्सा एक ट्रस्ट बनाने के लिए अलग कर दिया है।
 
उनकी इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानवजाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। इस तरह 29 जून 1900 को नोबेल फाउंडेशन की स्थापना हुई और 1901 में पहला नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।
 
जीवन का संघर्ष : स्वीडन के रसायन शास्त्री, इंजीनियर एल्फ्रेड बर्नाहड नोबेल का जन्म 21 अक्तूबर 1833 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था। एल्फ्रेड 8 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ रूस चले गए, जहाँ उनके पिता एमैन्यूल नोबेल ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की वर्कशॉप खोली। उन्हें बचपन से ही रसायन विज्ञान में काफी रुचि थी।
 
सेंट पीटर्सबर्ग में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें एक लड़की से प्यार हुआ लेकिन उसकी मौत के बाद उन्हें इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने अपना सारा जीवन शक्तिशाली विस्फोटकों के निर्माण में लगा देने का फैसला किया। वर्ष 1863 में स्वीडन वापस आने के बाद उन्होंने अपने पिता की फैक्टरी में काम करना शुरू किया।
 
एल्फ्रेड के पिता कई वर्षों से विस्फोटकों के निर्माण पर कार्य कर रहे थे। वर्ष 1864 में उनकी फैक्टरी में हुए एक हादसे में एल्फ्रेड का छोटा भाई एमिल और 4 अन्य लोग मारे गए। इस हादसे से एल्फ्रेड और उसके पिता दोनों को गहरा सदमा लगा। इसी बीच एल्फ्रेड से विस्फोटकों पर काम करने का परमिट छीन लिया गया और फैक्टरी भी बंद हो गई। पर एल्फ्रेड दुनिया को दिखाना चाहते थे कि उनके विस्फोटकों का इस्तेमाल सिर्फ तबाही के लिए ही नहीं किया जा सकता है।
 
आखिरकार वह अपने प्रयोग में सफल हुए और सरकार ने नाइट्रोग्लिसरीन से बने विस्फोटक का इस्तेमाल स्टॉकहोम की रेलवे सुरंग को उ़ड़ाने के लिए किया। इसके बाद एल्फ्रेड ने 4 देशों में अपने प्लांट खोले। वर्ष 1867 में एल्फ्रेड ने नाइट्रोग्लिसरिन की विशेष किस्म डायनामाइट का पेटेंट करवाया। इसके बाद उन्होंने जेलेटिन डायनामाइट का इस्तेमाल करना शुरू किया। यह डायनामाइट से ज्यादा सुरक्षित था।
 
40 साल की उम्र तक एल्फ्रेड एक बहुत अमीर इंसान बन चुके थे, लेकिन उनकी जिंदगी में साथ देने के लिए कोई नहीं था। उस दौरान उन्होंने लेखन में भी हाथ आजमाया। उन्होंने दो उपन्यास भी लिखने शुरू किए थे, लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाए। कहा जाता है कि उन्होंने अकेलेपन के चलते ही नोबेल शांति पुरस्कार की स्थापना की थी। एल्फ्रेड अपने जीवन के अंतिम दिनों में इटली में रहते थे। इटली के शहर सेन रिमो में 10 दिसंबर 1896 को उनकी मौत हो गई। पहले नोबेल पुरस्कार एल्फ्रेड की मौत के 5 साल बाद 10 दिसंबर 1901 को दिए गए।
 
प्रेमिका की मौत का गहरा सदमा : अपनी प्रेमिका की मौत का एल्फ्रेड को इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने तमाम उम्र शादी नहीं की। मौत के बाद जनवरी 1897 में जब उनकी वसीयत सामने आई तो पता चला कि उन्होंने अपनी संपत्ति का सबसे बड़ा हिस्सा एक ट्रस्ट बनाने के लिए अलग कर दिया है।
 
एल्फ्रेड की इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानवजाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। इस तरह 29 जून 1900 को नोबेल फाउंडेशन की स्थापना हुई और 1901 में पहला नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।