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Written By WD Feature Desk

जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर होली वाले प्राकृतिक रंग बनाने के प्रशिक्षण सप्ताह का रंगारंग समापन

इंदौर के कई कॉलेज, स्कूल व महिला समूह प्राकृतिक रंग बनाने की कार्यशाला में शामिल हुए

organic holi colors
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट, सनावदिया पर 17 से 22 मार्च  तक प्राकृतिक रंग बनाने के प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन  हुआ। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ एनर्जी व एनवायरनमेंट साइंस विभाग के पूर्व निदेशक प्रो. आर एल साहनी के मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। विशिष्ट अतिथि प्रो. जयश्री सिक्का और निशा संगल थे।
 
आज केंद्रीय विद्यालय और आई आई टी , इंदौर के विद्यार्थी अपनी प्राचार्य नीलम मालवीय चेतना खाम्बेते और स्टाफ के साथ आकर, जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निर्देशिका डॉ जनक पलटा मगिलिगन से होली  खेलने के लिए फूलों से प्राकृतिक रंग बनाने सीखने आए। 
 
कार्यक्रम की शुरुआत प्रार्थना से हुई और सबसे पहले निशा संगल ने बताया कि बाजार में सस्ते रासायनिक रंगों में कई हानिकारक पदार्थ होते हैं जो त्वचा और बालों को नुक़सान पहुंचाते हैं। जबकि पेड़ पौधों से  हम प्राकृतिक रंग आसानी से बना सकते हैं। आप सौभग्य शाली है कि आपको यह प्रशिक्ष्ण का अवसर मिला है। प्रो. जयश्री सिक्का ने  कहा कि 'वसंत आते ही प्रकृति में रंगों की बहार आने लगती है और फागुन मास में तो यह अपने पूरे श्ब्बाब पर होती है। चारों ओर रंग बिरंगे फूल और पत्तियों से पृथ्वी की चुनरी भर जाती है।
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इसलिए होली के प्राकृतिक रंग बना कर सुरक्षित और सुगंधित होली मना सकते हैं। पौधों की पत्तियों में क्लोरोफिल नमक रंगकणक पाया जाता है जो इन्हें हरा रंग देता है। इसी प्रकार रंगीन फूलों में लाल, नीले, पीले रंगकणक होते हैं। ये रंगकणक कोशिकाओं के भीतर विशेष प्रकार के अंगक, जिन्हें क्रोमेटोफोर कहते हैं इनके अंदर मिलते हैं। आज यहां प्राकृतिक रंग बनाना सीख कर असली होली का आनन्द ले और प्रकृति बचाए। 
 
प्रो. आर एल साहनी ने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी कि 'प्रकृति के सभी रंगो का मुख्स्त्रोत सूर्य है इसी इंद्रधनुष जैसे सात मुख्य रंगों की किरणें होती हैं जो वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद वायु के कणों से लगातार परावर्तित होती है।  सभी फूल या पत्तियों से जिस रंग की किरणें अधिक परावर्तित होती है उसका वही रंग हम देख पाते हैं।'
 
जनक पलटा मगिलिगन ने विद्यार्थीयों को साथ खड़ा करके पोई  टेसू/पलाश, गुलाब, बोगनविलिया नारंगी के छिलके के गीले और सूखे गुलाल प्राकृतिक रंग बनाने सीखे। उन्होंने बताया इस सप्ताह के दौरान, इंदौर शहर के स्कूलों, कॉलेजों, श्री गोविंदराम सेकसरिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, एक्रोप्लिस, केंद्रीय विद्यालय आईआईटी इंदौर, महिलाओं  के समूह देवी अहिल्या विश्वविद्यालय  के  पत्रकारिता विभाग, सनावादिया के शासकीय स्कूल , गांवों और और स्वयंसेवकों के समूह ने प्राकृतिक रंग बनाना सीखे और सभी ने उत्साह से संकल्प लिया वो प्राकृतिक होली 
मनाएंगे। केंद्रीय विद्यालय की  प्राचार्य नीलम मालवीय ने जनक दीदी को बहुत विनम्र धन्यवाद देते  हुए कहा 'आज प्रकृति दर्शन करने से अविभूत है। सभी विद्यार्थी भी बहुत प्रेरित हुए।
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