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अकबर ने रूपमती के लिए मालवा-निमाड़ को खून में डुबो दिया था

History of akbar | अकबर ने रूपमती के लिए मालवा-निमाड़ को खून में डुबो दिया था
'रामसिंह शेखावत ने इतिहास एवं अन्य विषयों पर कई पुस्तकें लिखी हैं, उन्हीं में से इनकी एक पुस्तक है 'हत्यारा महान बन गया'। इस पुस्तक में शेखावत ने अकबर के जीवन से जुड़े स्याह पहलू को उजागर किया है। पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत है इसका पहला भाग...
'जहांपनाह रूपवती स्‍त्रियां तो हर प्रांत, हर नगर में मिल जाएंगी। मधुर गायिकाएं भी मिल जाएंगी, लावण्यवती नर्तकियां भी मिल जाएंगी। लेकिन औरत जो गजब की खूबसूरत हो, लाजवाब गायिका भी हो और बेमिसाल नाचने वाली भी हो। ऐसी औरत पूरे हिन्दुस्तान में केवल एक है और वह है मालवा की बेगम रानी रूपमती, बाज बहादुर की पत्नी।' अकबर के खुशामदी दरबारी कह रहे थे। 
 
अकबर को तो मनचाही मुराद मिल गई थी। वह तो ढूंढता फिरता था सुंदर औरतों को। मुसलमानों में हो या काफिरों में। सल्तनत में हो या पड़ोसी राज्यों में, उसे बस सुंदर औरत का पता भर चाहिए। उसे कैसे प्राप्त करना है, इस जुगाड़ में अकबर जुट जाता था। 
 
मालवा एक कमजोर राज्य था। हुमायूं के समय वह मुगलों के अधीन था। शेरशाह के समय वह विदेशी दासता से मुक्त हुआ और सूर वंश के एक भारतीय मुसलमान शुजात खां को वहां का शासक बना दिया गया। इसी शुजात खां का पुत्र था बाज बहादुर, जो अकबर के राज्यारोहण के वर्ष ही अपने पिता के मरने के बाद मालवा की गद्दी पर बैठा। 
 
बाज बहादुर एक अच्छा गायक था और गायकों की कद्र करता था। इसी गायकी पर रीझ उसने रूपमती को अपनी बेगम बनाया था। सैन्य शक्ति के मान से अपने चारों ओर के राज्यों गुजरात, खानदेश, मेवाड़, कालिंजर, गोंडवाना और दिल्ली से वह कमजोर था। गोंडवाना की रानी दुर्गावती उसे कई बार युद्ध में हरा चुकी थी। अत: राज्य विस्तार की आशा छोड़कर वह नाच-गानों में मस्त रहता था।
 
उसका हरम सुंदर नाचने-गाने वालियों से भरा पड़ा था। देश उपजाऊ था अत: धन-दौलत की कमी नहीं थी। अकबर यदि एक संदेशा भिजवा देता तो बाज बहादुर तुरंत दासता स्वीकार कर लेता, लेकिन ऐसी अधीनता में खिराज मांगा जा सकता था, हाथी-घोड़े मांगे जा सकते थे। हरम की सुंदर औरतें तो मांगी नहीं जा सकती थीं। काफिरों की औरतें तो किसी भी रूप में हलाल होती हैं, लेकिन एक मुसलमान की औरत बिना उसे मारे हलाल नहीं होती। अत: अकबर ने मुगल साम्राज्य का विस्तार करने के बहाने बिना किसी पूर्व सूचना के मालवा पर चढ़ाई कर दी।
 
सेना की कमान अपनी धाय मां माहम अनगा के बेटे आदम खां को सौंपी और अपने गुरु बैरम खां की हत्या में जिसने सहयोग दिया, उस मुल्ला पीर मोहम्मद शिरवानी को आदम खां का सहयोगी बनाकर रवाना कर दिया।
 
यह पीर मोहम्मद को गुरु हत्या का इनाम था। धड़धड़ाती मुगल फौजें जब सारंगपुर के उत्तर में पचोर तक आ गईं, तब बाज बहादुर की आंखें खुलीं। जल्दी-जल्दी में उसने सैनिक एकत्र दिए और मुगलों की विशाल सेना से जूझने चल पड़ा।
पड़ाना मऊ का वह निर्मम नरसंहार... पढ़ें अगले पेज पर...

पड़ाना मऊ का हत्याकांड : बाज बहादुर युद्ध का परिणाम जानता था। विजय तो होनी नहीं है। यदि सम्मानजनक संधि का अवसर मिल जाए तो अच्छा है। यदि युद्ध हुआ तो पराजय की स्थिति में भारतीय परंपरा के अनुसार उसने अपने हरम की औरतों को समाप्त करने की व्यवस्था की और रवाना हो गया।
 
इस्लाम में जलकर मृत्यु होना नर्क के समान माना जाता है। अत: जौहर की अपेक्षा बेगमों को कत्ल कर देने के लिए सैनिक नियुक्त कर दिए गए। 
 
29 मार्च 1561 को सारंगपुर के उत्तर में पड़ाना मऊ ग्राम में दोनों फौजों का आमना-सामना हुआ। शेर-बकरी की लड़ाई थी। विशाल मुगल सेना के सैनिक प्रतिमाह कहीं न कहीं युद्धरत रहने के अभ्यस्त थे। इधर मालवा की फौजों को वर्षों से कहीं लड़ने का मौका नहीं मिला था। गोंडवाना से पराजय के बाद मालवा की फौजें नाच-रंग में व्यस्त रहती थीं। एक घंटे में युद्ध का फैसला हो गया। पराजित बाज बहादुर निमाड़ भाग गया। मालवा के सैनिक कुछ मारे गए, कुछ भाग गए और कुछ पकड़े गए। 
 
दनदनाती मुगल फौजें सारंगपुर पहुंचीं। हरम रक्षकों में भी भगदड़ मच गई। उन्हें बेगमों का कत्ल करने का मौका ही नहीं मिला। केवल रक्षकों के सरदार ने रानी रूपमती पर तलवार का एक वार किया और भाग गया। घायल रूपमती और हरम की बेगमें आदम खां के कब्जे में आ गईं। 
 
सारंगपुर में भगदड़ मची थी। लोग अपनी धन-दौलत, स्त्री-बच्चों को छोड़ प्राण बचाने भाग रहे थे। जो भाग सके, भाग गए। बाकी के पुरुष जिनमें हिन्दू-मुसलमान दोनों थे, पकड़कर पड़ाना ग्राम ले जाए गए। 
भेड़-बकरियों की तरह काटा गया लोगों को, खून की नदी बह निकली थी... पढ़ें अगले पेज पर...

झुंड के झुंड कैदी मुल्ला पीर मोहम्मद के सामने लाए जाते और भेड़-बकरियों की तरह काट दिए जाते। बदायूंनी इस हत्याकांड का प्रत्यक्ष दर्शक था। उसने लिखा है- 'एक ही स्थान पर इतने अधिक लोगों का कत्ल किया गया कि खून की नदी बह निकली।
 
सैयद (पैगम्बर के वंशज) और विद्वान शेख, जिन पर हाथ उठाना पाप समझा जाता है, मुल्ला पीर मोहम्मद के आदेश से मार दिए गए। (यदि इन्हें मारा नहीं जाता, तो इनकी औरतें हराम हो जातीं।)' कुछ मुगल ‍अधिकारियों ने प्रतिवाद किया, तो मुल्ला पीर मोहम्मद ने कहा, 'एक ही रात में इतने कैदी बनाए गए हैं, मैं इनका और क्या कर सकता हूं?' (स्मिथ पृष्ठ 46)
 
उधर मुल्ला पीर मोहम्मद सारंगपुर, पड़ाना और आसपास के ग्रामों से हिन्दू-मुसलमान नागरिकों को पकड़-पकड़कर कत्ल करवा रहा था। इधर आदम खां सारंगपुर के घर-घर से सुंदर औरतें इकट्ठी कर रहा था। वणिक, महाजन, संभ्रांत-कुलों की ललनाएं, घसीट-घसीटकर महल में इकट्ठा की जा रही थीं। 
 
घायल रूपमती का इलाज करवाया गया, लेकिन जैसे ही उसे हरम की दासियों और अन्य औरतों से पता लगा कि ठीक होते ही उसे आदम खां या अकबर की रखैल बनना पड़ेगा, उसने अपनी हीरे की अंगूठी खा प्राणांत कर लिया। 
अकबर द्वारा हत्यारों को पुरस्कार : अब सारंगपुर में आदम खां और पड़ाना में पीर मोहम्मद के पड़ाव पड़ गए थे। आदम खां ने लूट का माल हाथी, घोड़े अकबर के पास आगरा रवाना कर दिए किंतु बाज बहादुर के हरम की व नगर की चुनिंदा सुंदर औरतें स्वयं के लिए रख लीं।
 
मुल्ला पीर मोहम्मद ने यह बात एक घुड़सवार द्वारा आगरा में अकबर के पास पहुंचा दी। खबर मिलते ही सुंदर स्‍त्रियों का भूखा अकबर 28 अप्रैल 1561 को आगरा से रवाना हुआ और 23 मई को सारंगपुर जा पहुंचा। 
 
आदम खां की मां माहम अनगा को अकबर के मालवा रवाना होने की खबर लगी। उसे अपने पुत्र के ‍अनिष्ट की चिंता हुई अत: वह भी अकबर के पीछे-पीछे लगी मालवा आ गई।
लूट की औरतों के लिए आगरा से सारंगपुर आ धमका अकबर... पढ़ें अगले पेज पर...
 

आदम खां को विश्वास ही नहीं हुआ कि बादशाह इतनी जल्दी बिना सूचना दिए सारंगपुर आ सकता है। वह नगर से बाहर निकला। उसने घुड़सवारों के एक दस्ते के साथ अकबर के पैर चूमे, लेकिन क्रोध से तमतमाया अकबर शांत नहीं हुआ। अकबर ने लूट में मिली औरतों के बारे में पूछा। आदम खां ने रानी रूपमती के आत्महत्या करने व अन्य औरतों को आगरा भेज देने की बात बताई। अकबर संतुष्ट नहीं हुआ, उसने स्वयं सारंगपुर में तलाशी लेने की बात कही।
 
जब अकबर सारंगपुर में आदम खां द्वारा छिपाई गई औरतें तलाश रहा था, माहम अनगा ने जनानखाने की औरतों को इकट्ठा किया। इनमें से दो रूपसी महिलाएं जो रूपमती के साथ बाजबहादुर की खास बेगमें थीं, को छांटकर अलग कर लिया। बाज बहादुर की ये बेगमें आदम खां द्वारा उन्हें भोगे जाने की बात अकबर को बता सकती थीं। इस आशंका से माहम अनगा ने दोनों के सिर कटवा दिए। बाकी की औरतों को कहा कि किसी ने जुबान खोलने की जुर्रत की तो उनका भी यही हाल होगा। 
 
भयभीत औरतों के मुंह बंद हो गए। औरतों को एक कतार में खड़ा कर अकबर को बुलाया गया व औरतें उसे भेंट कर दी गईं। माहम अनगा की प्रार्थना पर आदम खां को क्षमा मिल गई। निर्दोषों के खून से हाथ रंगने वाले पीर मोहम्मद को अकबर ने घोड़े और खिलअत देकर सम्मानित किया। अकबर 4 जून 1561 को आगरा लौट गया। 
 
अकबर ने चुनिंदा औरतें अपने हरम में शामिल कर लीं तथा बाकी गुलाम बना ली गईं। यहां आदम खां की बात छिपी न रह सकी। मालवा की औरतों से प्रथम मिलन की रात ही अकबर को आदम खां की करतूतों का पता चल गया, किंतु यह कोई बड़ा अपराध नहीं था। विजित देश में प्रत्येक मुसलमान सैनिक पराजित की महिलाओं से बलात्कार करते ही थे।
 
अत: अकबर किसी बड़े अपराध के इंतजार में चुप बैठ गया। मालवा में शासन के सारे अधिकार पीर मोहम्मद को देकर आदम खां को आगरा बुला लिया गया। पीर मोहम्मद को बाकी मालवा तथा निमाड़ विजय के आदेश भेज दिए गए। 
 
आदेश पाते ही पीर मोहम्मद नर्मदा के दक्षिणी तट पर जहां, बाज बहादुर भाग गया था, टूट पड़ा। असीरगढ़, बुरहानपुर, बीजागढ़ और निमाड़ के नगर, कस्बों, ग्रामों से औरतों को छोड़ सारे नागरिक कत्ल कर दिए गए। सारा निमाड़ बुहारकर साफ कर दिया गया। (स्मिथ पृष्ठ 52)
नृशंस हत्यारे की मौत पर दुखी हुआ था अकबर... पढ़ें अगले पेज पर...

बाज बहादुर अपने थोड़े से साथियों के साथ निमाड़ में भागता फिर रहा था। मु्ल्ला पीर मोहम्मद लगातार उसका पीछा कर रहा था। बरसात के दिन थे, नर्मदा उफान पर थी। नर्मदा के किनारे अपने 200 साथियों के साथ बाज बहादुर घेर लिया गया। दोनों ओर मौत थी। एक तरफ थे हजारों मुगल घुड़सवार, दूसरी ओर हर-हर करती पूर जा रही नर्मदा।
 
बाज बहादुर ने शीघ्रता से निर्णय लिया और अपने साथियों के साथ उफनती नर्मदा में कूद गया। पीछे लगे मुगल सैनिक भी नर्मदा में कूद गए। पीछा करने के जोश में पीर मोहम्मद बाज बहादुर के तैरते घोड़ों-खच्चरों के मध्य जा पहुंचा। इनके सवार मारे जा चुके थे और नर्मदा में बह गए थे। मुल्ला पीर मोहम्मद जैसे-तैसे बाज बहादुर के निकट पहुंचा और अपनी तलवार से भरपूर वार करने के प्रयत्न में रकाब पर पैर जमाकर खड़ा हो गया। तभी एक खच्चर की जोरदार टक्कर उसके घोड़े को लगी और पीर मोहम्मद अपना संतुलन खो नर्मदा में जा गिरा और डूब मरा।
 
हत्यारे की मौत पर अकबर दुखी : पूरे निमाड़ में एक-एक हिन्दू का कत्ल कर देने वाले हत्यारे पीर मोहम्मद की मौत पर अकबर बहुत दुखी हुआ। अकबर का इतिहास लेखक अबुल फजल लिखता है कि विधि के विधान से ऐसे योग्य, निष्ठावान और वीर व्यक्ति को ऐसा भाग्य भुगतना पड़ा। (स्मिथ पृष्ठ 52)
 
मालवा विजय और पड़ाना के कत्लेआम के इनाम में अकबर ने मु्ल्ला पीर मोहम्मद शिरवानी को घोड़े और खिलअत देकर सम्मा‍नित किया। यह प्रमाण है कि अकबर की आज्ञा से ही पड़ाना ग्राम में भयंकर कत्लेआम हुआ था। नहीं तो अकबर पीर मोहम्मद को दंडित करता, इनाम नहीं देता। 
 
क्या ऐसा व्यक्ति महान कहलाने योग्य है, जो अपनी ही निर्दोष प्रजा को भेड़-बकरियों की तरह एक जगह इकट्ठा करके कत्ल करवा देता है? शत्रु के सैनिकों को युद्ध भूमि में मारना अलग बात है। कैदी सैनिकों को भी मारना मानवता नहीं है। फिर निर्दोष निहत्थे नागरिकों का कत्लेआम तो जंगली जातियां भी नहीं करतीं।
 
मालवा और निमाड़ इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड में बदायूंनी जैसा कट्टर मुसलमान लेखक भी विचलित हो गया था। अकबर ने अपने इतिहासकार द्वारा जिस पीर मोहम्मद की प्रशंसा की है, उस हत्यारे को बदायूंनी ने नर्क में चला गया, लिखा है।
 
निमाड़-मालवा में अकबर की परिपाटी के अनुसार मृतक भारतीयों के कटे सिरों से मीनार तामीर किए गए। इन मीनारों की ऊंचाई से ही मृतकों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता था। हिन्दू तो कीड़े-मकौड़े थे। उनके मृत शरीरों की गिनती करने की झंझट कौन उठाए।
 
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