शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By WD

मनमानी का यह कैसा जन-गण-मन!

मनमानी का यह कैसा जन-गण-मन! - Independence day
आजादी के 68 वर्ष बाद यदि हम अपनी स्वतंत्रता की समीक्षा करते हैं तो पता चलता है कि इस स्वतंत्रता का हमने कितना दुरुपयोग किया है। वर्तमान दौर में आम जनता यही सोचती है कि स्वतंत्र हैं नेता, गुंडे, नौकरशाह, धर्म के ठेकेदार, पुलिस और तमाम रसूखदार लोग, लेकिन स्वतंत्र नहीं हैं आम जनता। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों की सड़कों पर अब रात में स्वतंत्र तफरी करने में डर लगता है। शहर और कस्बों में पुलिस, गुंडों और छुटभैये नेताओं की ही चलती है।

आजादी के आंदोलन के दौरान देश के लोगों में धर्म, भाषा या प्रांत को लेकर किसी भी प्रकार का अलगाववादी भाव नहीं था। वर्तमान दौर में बेशक हमने कई क्षेत्रों में उन्नति की है, लेकिन हमने विश्वास के आपसी रिश्तों और सामाजिक ताने-बाने को खो दिया है। खो दिया है आधी रात को स्वतंत्र घूमने के आनंद को। खो दिया है नकली भोज्य पदार्थों और नकली दवाइयों के युग में स्वस्थ रहने के अपने अधिकार को। अब तो आजादी के नाम पर आने वाले समय में समलिं‍गी लोगों को मान्यता देने के चलते सभ्य समाज आसपास के सभ्य वातावरण को भी खो देगा।

बिगाड़ दिया भूगोल : सबसे ज्यादा दुःख तो इस बात का है कि जिस भारत भूमि के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना सर्वस्व स्वाहा कर दिया था उस भूमि से हमने उसका हरापन छीन लिया। छीन लिया उसके साफ और स्वच्छ आसमान से ताजा पवन के झोंके को। हमने हमारे ही पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियों को मारकर उन्हें लुप्त प्राय बना दिया। गौरय्या तो अब नजर नहीं आती। जिस भूमि की सीमा की रक्षा के लिए लाखों शहीद हो गए, हमारी संसद देखती रही उसे दुश्मन देशों के द्वारा हड़पते हुए।

नदियों पर कई डेम बनाकर हमने उनके स्वाभाविक बहाव को रोककर उसकी प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट कर दिया है। अब दौड़ती नहीं नर्मदा, गंगा भी अब पूजा-पाठ और श्राद्धकर्म के नाम पर दम तोड़ने लगी है। यमुना के तट पर वंशीवट बेहाल हैं। विकास के नाम पर पहाड़ों को भी मैदान बना दिए जाने का दुष्चक्र जारी है। पिघलते हिमालय पर अब कोई साधु तपस्या के लिए नहीं जाता। जंगलों को बगीचे जैसा व्यवस्थित बनाकर लाभ का जंगल बनाए जाने का प्रस्ताव अभी विचाराधीन है। 

कब मिलेगी इनसे आजादी : अंग्रेज जो कानून, नियम, स्मारक या व्यवस्थाएँ निर्मित कर गए थे उनमें आज भी किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। आज भी भारतीय सेना को जाति और प्रांत के नाम पर बाँटकर रखा हुआ है। पुलिस तंत्र भी अंग्रेजों के काल का ही है। अंग्रेजों द्वारा थोपी गई प्रशासकीय प्रणाली भी बनी हुई है। मैकाले की शिक्षा से कब मिलेगा छुटकारा। 68  वर्ष बाद हम पूछना चाहते हैं कि ब्रिटेन और भारत की संसद में क्या फर्क है? क्यों नहीं मुक्ति मिल सकती भाषा के आधार पर बांटे गए प्रां‍तों से?

यह कैसी आजादी : चक्काजाम, बाजार बंद, रेल और ट्रेनें बंद, समूचा भारत आज बंद है। दंगों के कारण स्कूल, कॉलेज और सारे ऑफिस बंद। देशभर के डॉक्टरों की हड़ताल शुरू। बैंककर्मी अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे। जमाखोरों की वजह से महँगाई हुई बेकाबू। भूख से पिछले साल हजारों लोगों की मौत हो गई। पहाड़ों और जंगलों को कटने से नहीं रोक रही सरकार। हर तरफ हिंसक आंदोलन। नहीं खुलने देंगे कोई संस्थान-प्रतिष्ठान। तोड़फोड़, बसों में आग, फैक्टरी पर ताला। और तो और संसद में हंगामा.... 

आजादी के दुश्मन : आप कहते हैं कि कितने गंदे लोग हैं, कहीं भी कचरा फेंक देते हैं। कहीं भी पेशाब कर देते हैं और कहीं भी वाहन खड़ा कर देते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आपने यातायात के नियमों का कितना पालन किया। आप यह भी कहते हैं कि भाषा, प्रांत, जाति की सोच में जीने से देश का विखंडन हो जाएगा लेकिन आप कितना पालन करते हैं इस सोच का? धर्म, सेवा और राजनीति के नाम पर देश में लूट मची हुई है परंतु इस लूट के खिलाफ कोई आवाज बुलंद क्यों नहीं करता।

 
ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि देश ने हमारे लिए क्या किया? बहुत कम ही लोग यह सोचते हैं कि हमने देश के लिए क्या किया? देश तो लोगों से ही मिलकर बनता है फिर लोगों का यह सोचना कि देश ने हमारे लिए क्या किया, गलत ही होगा।
 
जातिवादी और साम्प्रदायिक सोच, अलगाववाद, भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, अपराध, नेता और पुलिस की मनमानी, सूदखोर, जमाखोर, पूंजीवादी और जनवादी सोच की चालाकी से भरी राजनीति यह सब देश की आजादी के दुश्मन हैं। क्या आप नहीं चाहेंगे कि आजादी के इन दुश्मनों के खिलाफ पुन: नया 'आजादी बचाओ आंदोलन छेड़ा जाए?'