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होलिका दहन से पूर्व कैसे करें पूजन, जानिए पारंपरिक विधि

होलिका दहन से पूर्व कैसे करें पूजन, जानिए पारंपरिक विधि - Pooja Vidhi on Holi
इस वर्ष होलिका दहन रविवार, 12 मार्च को होगा। पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें यह है कि वृक्ष काटकर लकड़ियां एकत्रित न करें, क्योंकि यह न तो विधान है और ना ही पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है। 


 
गोबर के बड़बुले( गोबर के विशेष खिलौने), उपले, घास-फूस इत्यादि होली के डंडे (जो अरंडी की लकड़ी का होता है) के आसपास इकट्ठे कर जमा दिया जाता है। होलिका दहन में स्थान का भी महत्व है। आजकल सड़क या चौराहे पर होलिका दहन किया जाता है, जो गलत है। होलिकाग्नि से सड़क का वह भाग जल जाता है तथा वहां गड्ढा पड़ जाता है जिससे वाहनों के दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है।
कब करें पूजन - प्रदोषकाल में होलिका दहन शास्त्रसम्मत है तभी पूजन करना चाहिए। प्राय: महिलाएं पूजन कर ही भोजन ग्रहण करती हैं। 
पूजन सामग्री- रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठें, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान्न, नारियल, बड़बुले आदि। 
 
विधि- यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें।
 
सबसे पहले गणेश व गौरी इत्यादि का पूजन करें। 'ॐ होलिकायै नम:' से होली का पूजन कर  'ॐ प्रहलादाय नम:' से प्रहलाद का पूजन करें। पश्चात 'ॐ नृसिंहाय नम:' से भगवान नृसिंह का पूजन करें, तत्पश्चात अपनी समस्त मनोकामनाएं कहें व गलतियों के लिए क्षमा मांगें। कच्चा सूत होलिका पर चारों तरफ लपेटकर 3 परिक्रमा कर लें। 
 
अंत में लोटे का जल चढ़ाकर कहें- 'ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु।' 
होली की भस्म का बड़ा महत्व है। इसे डिब्बी में भरकर घर में रखा जाता है। इसे लगाने से प्रेतबाधा, नजर लगने आदि के लिए उपयोग में लिया जाता है।
 
होली की रात्रि तांत्रिक सिद्धियां तथा मंत्रादि सिद्ध करने के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। जो भी मंत्र इत्यादि सिद्ध करना हो, उसे यथा‍शक्ति संकल्प लेकर आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर, किसी विद्वान व्यक्ति के मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करना चाहिए। कोई भी कार्य होलिका दहन के पश्चात रात्रि में ही किए जाएं।
 
यदि कोई उग्र प्रयोग हो तो एकांत आवश्यक है तथा अपने स्थान की रक्षा कर ही कार्य करें।  इति:।
 

 

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