बुंदेलखंड इलाके में होली के रहते है अनूठे रंग
हमीरपुर। उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में 'फाग' की अनोखी महफिलें जमती हैं जिनमें रंगों की बौछार के बीच गुलाल-अबीर से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है।फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं। फाग-सी मस्ती का नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता है। सुबह हो या शाम गांव की चौपालों में सजने वाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों बुंदेलखंडी होली गीत (फाग) गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने, नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।फाग सुनकर उनकी दिनभर की थकावट एक झटके में दूर हो जाती है और व मस्ती से भर उठते हैं। फाग के जानकार रामशंकर गुप्ता बताते हैं कि फाग के बोल किसानों के दिल की आवाज है। फाग किसानों के दिल दिमाग में छा जाती है।
बुंदेलखंड इलाके के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, बांदा, महोबा और हमीरपुर जिलों में फागुन के महीनों में ऋतुराज बसंत के आते ही जब टेसू के पेड़ लाल सुर्ख फूलों से लद जाते हैं, तब वातावरण में मादकता छा जाती है और पूरा महौल रोमांच से भर जाता है तब शुरू होती है फाग की महफिलें। गांव-गांव की चौपालों में बुंदेलखंड के मशहूर लोक कवि ईसुरी के बोल फाग की शक्ल में फिजा में गूंजकर किसानों को मदमस्त कर देते हैं।वरिष्ठ नागरिक जयप्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि लोक कवि ईसुरी के फागों में जादू है। दिनभर की मेहनत-मजदूरी करके शाम को जब थका-हारा किसान वापस आता है, तब फाग की महफिलों की मस्ती उसकी पूरी थकान दूर कर उसे तरो-ताजा कर देती है।बुंदेलखंड में फागुन को महोत्सव के तौर पर मनाने की पुरानी रवायत है। बसंत से लेकर होली तक इस इलाके के हर गांव की चौपालों में फागों की धूम मची रहती है जिससे हर जगह मस्ती छाई रहती है।