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Bhadrapad Bhaum pradosh vrat katha: भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत का महत्व और कथा

Bhadrapad Bhaum pradosh vrat katha: भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत का महत्व और कथा - Bhaum pradosh vrat 2023
Mangal Pradosh : आज, 12 सितंबर 2023, मंगलवार को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। जब किसी भी मंगलवार के दिन प्रदोष तिथि का योग बनता है, तब भौम प्रदोष व्रत रखा जाता है। 
 
महत्व: धार्मिक मान्यता के अनुसार मंगल ग्रह का ही एक अन्य नाम भौम होने के कारण ही मंगलवार को पड़ने वाले इस व्रत को मंगल या भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। वैसे तो वार के अनुसार प्रदोष व्रत का नाम भी अलग-अलग होता है, इसमें मंगलवार और शनिवार को आने वाले प्रदोष तिथि का विशेष महत्व माना गया है। 
 
इस दिन श्री हनुमान जी तथा मंगल ग्रह या मंगल देवता का पूजन किया जाता है। कर्ज से मुक्ति के लिए इस दिन सायंकाल के समय में भोलेनाथ जी का पूजन किया जाता है, क्योंकि प्रदोष तिथि भगवान शिव जी की मानी गई है। अत: इस दिन प्रदोष समय में शंकर जी का विधिपूर्वक पूजन करने से जीवन सुखमय बनता है तथा इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना लाभदायी होता है। 
 
मंगल ग्रह की शांति के लिए इस दिन व्रत रखकर शाम के समय हनुमान और भोलेनाथ की पूजा करने का विशेष महत्व है। भौम प्रदोष व्रत बहुत प्रभावशाली होने के कारण ही शिव जी प्रदोष व्रत करने वालों के सभी दुखों का अंत करते हैं, और मंगल देव अपने भक्तों की मदद करके उनके जीवन में चल रहे बुरे समयावधि से उन्हें बाहर निकलने में मदद करते हैं तथा हर तरह के कर्ज से छुटकारा दिलाते है। 
 
इस दिन निम्न मंत्रों का जाप करना फलदायी होता है। 
 
- ॐ नम: शिवाय।
- ॐ हं हनुमते नम:।
- ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ।
- ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:।
- ॐ अं अंगारकाय नम:।'
 
भौम प्रदोष व्रत कथा : Mangal Pradosh Katha 
 
व्रत की कथा के अनुसार एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमान जी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी। एक बार हनुमान जी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची। 
 
हनुमान जी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।
 
हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे। वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी। 
 
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।
 
वेशधारी साधु हनुमान जी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई। इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। 
 
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ। लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

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