बारहवीं पास कराकर जैसे-तैसे उसको एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश दिलवाया गया। दो साल से एक ही सेमेस्टर में अपनी किस्मत आजमा रहा बेटा जब परीक्षा देने जाने लगा तो माँ उसको दही खिलाती हुई बोली-
'ठहर, किसी अच्छे का मुँह देखकर निकलना। अंदर बैठी दो बहनें, एक एमसीए करके किसी प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत थी दूसरी एमबीए की होनहार छात्रा थी, आपस में कहने लगीं-
'सालभर यदि किताबों का मुँह देख लेता तो इसे किसी 'अच्छे' का मुँह देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती।'