• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. मुलाकात
  6. देहात की दुर्दशा ने बनाया कथाकार-सत्यनारायण पटेल
Written By WD

देहात की दुर्दशा ने बनाया कथाकार-सत्यनारायण पटेल

-माहीमीत

Satya Narayan Patel : Interview | देहात की दुर्दशा ने बनाया कथाकार-सत्यनारायण पटेल
देहात की दुर्दशा और कठिनाइयों को बेहद नजदीक से देखा है। इसी ने मुझे कहानीकार बनने को विवश कर दिया था। सच कहूं तो आधुनिकता के बावजूद देहात अब भी दुर्भाग्य की बस्तियां मानी जाती है और यहां पैदा हुए इंसान को दुर्भाग्य की संतान। यह कहना है देश के चर्चित कथाकार सत्यनारायण पटेल का।

WD


पटेल का कहानी संग्रह 'काफ़िर बिजू़का उर्फ इब्लीस का विमोचन 20 फरवरी को दिल्ली में होना है। उनके अभी तक तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके है। 2007 में उनके पहले कहानी संग्रह 'भेम का भेरू मांगता कुल्हाड़ी ईमान' को वागीश्वरी सम्मान और 2011 में प्रकाशित हुए दूसरे संग्रह 'लाल छींट वाली लूगड़ी का सपना' के लिए प्रेमचन्द स्मृति कथा सम्मान मिला था। उन्होंने पाठकों के लिए वेबदुनिया से कहानीकार बनने की कहानी साझा की।

माहीमीत-2011 के बाद आपका तीसरा कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। पहला संग्रह आपका 2007 में आया था। पिछले सात सालों में आपने बहुत बेजोड़ काम किया है। आगे क्या तैयारी है।

सत्यनारायण पटेल- सच कहूं तो अब पाठकों का भार दिमाग पर बैठ गया है। इसके बावजूद आपको अपनी रचनात्मकता का ख्याल रखना होता है। ऐसा नहीं ‍कि कुछ भी लिख दिया। इस सबके बावजूद मैं अब कहानियां लिखना एक तरह से इंजाय कर रहा हूं

माहीमीत-आपका कहना है कि देहात की दुर्दांत दुर्दशा और कठिनाइयों ने आपकों को कहानीकार बना दिया। देहात की किस कठिनाईयों की बात आप करते हैं।

सत्यनारायण पटेल- देखिए आज भले राष्ट्र आधुनिकता और विकास के सौपानों पर दौड़ रहा हो इसके बावजूद देहात आज भी महज दुर्भाग्य की बस्तियां मानी जाती है। आज भी गांव में महिलाएं प्रसव पीड़ा से तड़पती है। आज भी आम आदमी का शोषण चरम पर है। चारों और अन्याय ही अन्याय पसरा हुआ है। ऐसे समय यदि मैं कलम नहीं उठाता तो कायर कहलाता।

माहीमीत-बचपन में कभी कहानीकार बनने का सोचा था? आपकी कहानियों में ज्यादातर भारतीय जनमानस को उकेरा गया है।

सत्यनारायण पटेल- बचपन में कहानीकार बनने का नहीं सोचा था लेकिन भैंस चराते हुए अपने से बड़े चरवाहों से कहानियां खूब सूनी। इसके बाद फिर खुद भी उन्हें कहानियां सुनाया करता था। हालांकि तब मैंने कहानीकार बनने का कोई सपना नहीं था।

माहीमीत-बदलते परिवेश में आपकी कहानियां कितनी प्रासांगिक है।

सत्यनारायण पटेल- असल मायनों में मेरा यही मानना है सार्थक रचना वहीं होती है जो अपने समय तो भिड़े ही और आने वाले समय में भी मानवीय सभ्यता की रहनुमाई करती रहे।

माहीमीत-आपके पसंदीदा कहानीकार जिनसे अब बेहद ज्यादा प्रभावित हो।

सत्यनारायण पटेल- भारतीय लेखकों में प्रेमचन्द, मंटो, शैलेश मटियानी और मोहन राकेश पसंदीदा रचनाकार है। विदेशी कहानीकारों में मुझे चेखव, गोर्की, टॉलस्ताय, जैक लण्डन और चीनी लेखक लू शून को पढ़ना बहुत पसंद है।

माहीमीत-पहला कहानी संग्रह भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान वागीश्वरी सम्मान और दूसरे संग्रह लाल छींट वाली लूगड़ी का सपना को प्रेमचन्द स्मृति कथा सम्मान मिला। एक रचनाकार के जीवन में सम्मान का क्या महत्व है।

सत्यनारायण पटेल- देखिए एक रचनाकार के पहला बड़ा सम्मान उनके पाठकों की सराहना होती है। इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं हो सकता है। असली पुरस्कार तो यही है। ऐसे में यदि आपकी रचना को पाठक के साथ आलोचकों की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिले तो उस रचना के एक तरह से न्याय है। मुझे कुछ बड़े सम्मान मिले हैं जो कम चुनौती नहीं है। देखा जाए तो मेरे ऊपर अब और भार बढ़ गया है।

माहीमीत- आप अपने ज्यादतर पात्र ग्रामीण परिवेश से लेते है, कोई ऐसी कहानी जिसमें आधुनिक पात्र आपने गढ़ा हो।

सत्यनारायण पटेल- ग्रामीण परिवेश की कहानियां हमेशा ही प्रासंगिक रही है। मेरे लिए इन पात्रों को गढऩा गौरव की बात रही है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि मैं आधुनिक बदलाव से बेखबर हूं। मैंने सपनों के ठूँठ पर कोंपल, रंगरूट, 'काफ़िर बिजू़का उर्फ इब्लीस और न्याय अनेक कहानियों में आधुनिक पात्रों के जीवन वृतांत को रचा है।

माहीमीत- हाल में दिल्ली में हुए राजनीतिक बदलाव को एक रचनाकार के तौर किस तरह देखते हैं।

सत्यनारायण पटेल- दिल्ली में हुए बदलाव को मैं बेहद पॉजिटिव ढंग से देखता हूं। मेरा मानना है कि लोकतंत्र की जीत के इस तरह की लड़ाई लड़ा जाना चाहिए। जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है उसमें अनुभव की कमी है लेकिन अपने मुद्दों पर लडऩे का जज्बा है। साफ साफ कहूं तो वह जनता को उल्लू बनाने की कला में वह निपुण नहीं है।

माहीमीत- वर्तमान समय में युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुझान कम होता जा रहा है। ऐसे समय साहित्य लिखना किसी चुनौती कम नही है।

सत्यनारायण पटेल- साहित्य के प्रति युवा पीढ़ी में रूझान इतना भी कम नहीं हुआ की इसका अफसोस किया जाए। या फिर रोना रोया जाए। आधुनिकता के साथ साथ विज्ञान ने बहुत उन्नति की है। यही कारण है कि युवाओं को अब साहित्य के साथ अन्य चीजों में भी ध्यान बंट गया है। परंतु इसका मतलब यह कतई नहीं है कि युवाओं के साहित्य गुजरे जमाने की बातें हो। अब आप ही देख लीजिए यदि पुस्तक प्रेमी नहीं है तो फिर पहले कि तुलना में ज्यादा क्यों लिखा जा रहा है। किताबें पहले से ज्यादा क्यों बिक रही है और विश्व पुस्तक मेला आवश्यकता ही क्यों होती।

माहीमीत- विजय दान देथा की कहानियों की गूंज भाषाओं,संस्कृतियों और समय के पार पहुंचती है। आप अपनी कहानियों कि सफलता किस रूप में देखते हैं।

सत्यनारायण पटेल- विजयदान देथा ने लोककथाओं पर बेहतरीन काम किया है। इसलिए वह भाषा, संस्कृति और समय को बंधन को लांघती है। वैसे भी मानवीय संवेदना की तीनों बातों से कोई वास्ता नहीं है। वह हर जगह एक जैसी होती है। हालांकि उसके आकार अलग हो सकते हैं। मैंने भी कुछ लोककथात्मक शैली में कहानियां लिखी हैं लेकिन मैंने जो ज्यादातर काम किया है वह आम आदमी के संघर्ष पर किया है।

माहीमीत- कहानियों के पात्र आपके दिमाग में किस रूप में आते हैं। वास्तविक जीवन से आप अपने पात्र चुनते हैं या फिर काल्पनिक पात्रों को जगह देते हैं।

सत्यनारायण पटेल- मैं अपनी कहानियों के पात्रों को वास्तविक जीवन से ही चुनता हूं। लेकिन कहानी में वे कई बार काल्पनिक भी लगने लगते हैं। जैसे 'काफ़िर बिजू़का उर्फ इब्लीस में महानगर में रहने वाला पात्र है वह ऐसे काम करता है कि लगता है ये सब कल्पना ही संभव है। वास्तव में देखा जाए तो यथार्थ और कल्पना के मिश्रण से ही कहानी बनती है लेकिन कल्पना उतनी ही होती है जितनी आटा गुंथने के लिए पानी की जरूरत होती है या स्वाद के लिए नमक की
आवश्यकता पड़ती है।

माहीमीत- आपकी पसंदीदा पुस्तक कौन सी है।

सत्यनारायण पटेल- गोदान, मैला आंचल, आयरन हिल, मां मेरी पसंदीदा पुस्तक है।

माहीमीत- मंटो और प्रेमचंद की कहानियों को किस रूप में देखते हैं।

सत्यनारायण पटेल- दोनों में अंतर है। प्रेमचंद ने ग्रामीण जीवन की संवेदना और विद्रूपतातों को लाजवाब ढंग से रचा है, जबकि मंटो ने वेश्याओं के जीवन पर बेजोड़ काम किया है।