कोई अवतार कभी ऊपर से नहीं आता।
यहीं, बस यहीं पैदा करती है धरती माता।।
जब अव्यवस्था, अनाचार की अति होती है,
हम में से ही उभरता है, कोई मुक्ति दाता।।1।।
यू. पी. त्रस्त हुई नकलचियों से, मजनू की सन्तानों से।
यादव गीरी, माया गीरी से, अवैध बूचड़ खानों से।।
भ्रष्टाचार-जर्जर सड़कों से, बिजली की निर्भीक चोरी से।
दलितों पर अत्याचारों से, गुण्डों की सीना जोरी से।। 2।।
त्रस्त प्रजाजन के मनों से
उठी जब कातर पुकार।
ई. वी. एम. के उदयाचल से उभरा
आदित्य-सा योगी अवतार।। 3।।
अवतार नाम है समर्पण का,
खुद मिट कर कुछ कर जाने का।
सुकरात सा विष पीने, ईसा सा
क्रूस पर चढ़ जाने का।।
राम सा वनवास भोगने का,
कृष्ण सा महाभारत रचाने का।
मोदी / योगी सा जन -सेवा के यज्ञ में
खुद आहुति बन जाने का।।4।।