ना चाँद ही ड़ूबा कहीं ना ही हुई है रात
ग़ज़ल
रोहित जैन जाँ देके हमने दिल को सँभाला है यहाँ परकुछ ऐसे उसकी याद को टाला है यहाँ परअब सोचते हैं मौत से ही चैन पाएँगेकुछ मार ज़िंदगी ने यूँ डाला है यहाँ परदम घुट रहा था मेरा अंधेरों में प्यार केदिल में ग़मों का ही तो उजाला है यहाँ परमरने के इंतज़ार में जीते हैं देखिए कैसा ग़ज़ब ये खेल निराला है यहाँ परबस याद कर रहा हूँ मै जलवा-ए-यार कोबे-बादा मस्तियों को यूँ पाला है यहाँ परऐ नाख़ुदा तू साहिलों से दूर रख मुझेहर शख़्स वहाँ ड़ूबने वाला है यहाँ परइतना नहीं था लाल ये रंगे हिना कभीमसल किसी का दिल कहीं डाला है यहाँ परना चाँद ही ड़ूबा कहीं ना ही हुई है रात'
रोहित' तेरा ही दिल है जो काला है यहाँ पर।