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नजर लग गई है...
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नईम नजर लग गई है शायद आशीष दुआओं कोरिश्ते खोज रहे हैं अपनी चची, बुआओं को नजरों के आगे फैले बंजर, पठार हैंडोली की एवज अरथी ढोते कहार हैंचलो कबीरा घाटों पर स्नान ध्यान कर-लौटा दें हम महज शाब्दिक सभी कृपाओं कोसगुन हुए जाते ये निर्गुन ताने-बानेघूम रहे हैं जाने किस भ्रम में भरमाने?पड़े हुए क्यों माया ठगिनी के चक्कर मेंपाल रहे हैं-बड़े चाव से हम कुब्जाओं कोरहे न छायादार रूख घर, खेतों, जंगलभरने को भरते बैठे घट अब भी मंगलनदियाँ सूख रही अंतस बाहर की सारी-सूखा रोग लग गया शायद सभी प्रथाओं को।