जैसे ओस की बूँद एक गुलाब पर
प्रेम कविता
जैसे ओस की बूँद एक गुलाब पर ठहरती हैंमैं तुम्हारी देह पर ठहर जाऊँगा जैसे रात के आँचल में चंद्रमा मचलता हैमैं तुम्हारी देह में मचल जाऊँगाजैसे एक घने जंगल में नदी बहती हैमैं तुम्हारी देह में बहता रहूँगाऔर जैसे एकदम सुबह-सुबह एक तारा टूटकर बिखर जाता हैमैं तुम्हारी आत्मा के आकाश में बिखर जाऊँगा।