लोकप्रिय हिन्दी कवि नीलाभ अश्क नहीं रहे
जीवन भर विवादों से घिरे रहने वाले और अपने ही अंदाज की वजह से चर्चा में बने रहने वाले हिन्दी के वरिष्ठ कवि एवं बीबीसी के पूर्व पत्रकार नीलाभ अश्क का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे।
श्री नीलाभ अश्क हिन्दी के प्रख्यात लेखक उपेन्द्र नाथ अश्क के बेटे थे और पिछले कई सालों से दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। वह इन दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की पत्रिका रंग-प्रसंग का संपादन भी कर रहे थे।
विगत दिनों अपनी पत्नी भूमिका के साथ उनके विवाद साहित्य गलियारों में चर्चा का विषय रहे। लेकिन अपने जीवन की अंतिम संध्या में लंबा माफीनामा लिखकर उन्होंने अबतक की तमाम गलतियों पर प्रायश्चित भी किया। उनकी कविताएं अपनी विशिष्ट शैली और भाव की खूबसूरती की वजह से सभी वर्गों को आकर्षित करती रही।
श्रद्धांजलि :
लेखक उपन्यासकार गिरिराज किशोर
नीलाभ को मैंने बचपन से देखा और जाना है। वह मेधावी भी थे और स्वतंत्र भी थे। अनुवादक भी अच्छे थे। कविता में कुछ नए प्रयोग किए थे। अश्क जी उन्हें बहुत स्नेह करते थे। उनका जाना मुझे व्यक्तिगत हानि की तरह लगा। दुख होता है वे इतनी जल्दी चले गए। उनके परिवार के लिए हार्दिक संवेदना।
साहित्यकार मंगलेश डबराल
कवि, अनुवादक, पत्रकार और पुरानामित्र नीलाभ भी चला गया। वह एक जटिल लेकिन बहुत जिंदादिल आदमी था और उतना ही प्रतिभाशाली भी। मृत्यु से एक दिन पहले उसने फ़ोन किया तो मैंने कहा कि तुरंत किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती हो जाओ, लेकिन नियति कुछ और थी। मृत्यु शायद मनुष्य के जन्म के साथ ही उपस्थित हो जाती है, लेकिन उसे आजीवन भगाते रहना होता है। शायद नीलाभ उन लोगों में से था जो मृत्यु को बुलाते रहते हैं। वर्ना यह उसके जाने की उम्र नहीं थी।
कवि-अनुवादक जन विजय
पिछली सदी के आठवें दशक के मध्य में नीलाभ से मेरा परिचय सबसे पहले उनके द्वारा किए गए रूसी कवि अन्द्रेय वज़्निसेंस्की के अनुवादों के माध्यम से हुआ था। वज़्निसेंस्की के वे अनुवाद मेरे लिए एक अद्भुत उपलब्धि की तरह थे। बाद में उनकी कविताएं भी पढ़ने को मिलीं। नीलाभ एक बेहतरीन संस्कृतिकर्मी थे। देशी-विदेशी साहित्य का गहन अध्ययन और यूरोपीय तथा भारतीय परम्पराओं व संस्कृतियों की जानकारी का एक बड़ा खजाना उनके पास था। इसलिए उनके पास, उनके साथ बैठना हमेशा लाभदायक होता था। जितनी भी बार उनसे मिला हूं, हमेशा कोई न कोई नई जानकारी लेकर आया हूं। उनकी अंग्रेज़ी बहुत अच्छी थी। वज़्निसेंस्की की वे कविताएं पढ़ने के बाद ही मैंने अनुवाद करने शुरू किए थे। मेरी अंग्रेज़ी कमज़ोर थी। कई बार उनसे अंग्रेज़ी से अनुवाद करते हुए पूछना पड़ता था। अंग्रेजी के मुहावरे समझाते हुए वे उन मुहावरों से जुड़े न जाने कितने क़िस्से भी सुना देते थे। अब अचानक उनके जाने की सूचना पाकर अवाक रह गया हूं। पिछले दिनों यह मालूम हुआ था कि उनकी दोनों किडनियां फ़ेल हो गई हैं क्योंकि शराब बहुत पीते थे। लेकिन किडनियां फ़ेल होने के बावजूद नीलाभ बहुत सक्रिय थे और दिल्ली की गोष्ठियों में आते-जाते रहते थे। उनके पैसों में भारी सूजन आ गई थी। लेकिन फिर भी उनकी सक्रियता कम नहीं हुई थी। मैं बहुत दुखी हूं। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। एक अच्छे अनुवादक, हिन्दी के एक कवि और संस्कृतिकर्मी नीलाभ को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।
कवि-अनुवादक आशुतोष दुबे
हिन्दी में नीलाभ की उपस्थिति एक लगातार विद्रोही मौजूदगी थी। वे बेधड़क सच कहने,पंगे लेने, जूझने,और इस सबमें रमने वाले लेखक थे। हिन्दी के पॉवर स्ट्रक्चर से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा। बेहतरीन अनुवादक,अच्छे कवि और उम्दा संस्मरणकार नीलाभ अपनी बहुत अलग रंग की शख्सियत के चलते निराले थे। उन्होंने अपना लेखक व्यक्तित्व अपने ख्यात पिता उपेन्द्रनाथ अश्क की छाया से बाहर अपने मौलिक ढंग से बनाया था। अपने समकालीन लेखकों पर उनके संस्मरण हिन्दी साहित्य के एक गुजिश्ता दौर का रोमांचक दस्तावेज हैं। वे बीबीसी में भी कार्यरत रहे। इस विलक्षण लेखक को नमन एवं श्रद्धांजलि!
रमाशंकर सिंह
नीलाभ अश्क़ नहीं रहे। अपनी ढेर सारी दोस्तियों, दुश्मनी और मोहब्बत के साथ वे हमारे किस्सों में मौजूद होंगे। हिन्दी की दुनिया में वे फ़्रेंचेस्का ओरसिनी की किताबों के बेहतरीन अनुवादक के रूप याद किए जाते रहेंगे।
विनीत शर्मा
नीलाभ 'रंग प्रसंग' के संपादक थे। नीलाभ न सिर्फ एक बड़े पत्रकार थे बल्कि कवि, अनुवादक, रंगकर्मी, समालोचक समेत कई विधाओं के विशेषज्ञ थे। मनुष्य के रूप में बेहद फक्कड़, मनमौजी और सूफी तबीयत वाले नीलाभ ने पिछले ही दिनों फेसबुक पर दो प्रायश्चित पत्र लिखे जो फेसबुक पर लिखे उनके आखिरी पोस्ट साबित हुए।
नीलाभ की कविताएं
1. है वही अंतिम प्रहर
सोई हुई हैं हरकतें
इन खनखनाती बेड़ियों में लिपट कर
है वही अंतिम प्रहर
है वही मेरे हृदय में एक चुप-सी
कान में आहट किसी की
थरथराती है
किसी भूले हुए की
मन्द स्मिति ख़ामोश स्मृति में
कौन था वह
जो अभी
अपनी कथा कह कर
हुआ रुख़सत
व्यथा थी वह
अभी तक
थरथराती है
समय की फांक में ख़ामोश
ले रहे तारे विदा
नभ हो रहा काला
भोर से पहले
क्षितिज पर
कांपती है
एक झिलमिल आभ नीली
हो वहीं तुम
रात के अन्तिम प्रहर में
लिख रहे कुछ पंक्तियाँ
सिल पर समय की
टूटना है जिसे आख़िरकार
होते भोर.. .
2. यह ऐसा समय है
जब बड़े-से-बड़े सच के बारे में
बड़े-से-बड़ा झूठ बोलना संभव है
संभव है अपने हक़ की मांग बुलंद करने वालों को
देश और जनता से द्रोह करने वाले क़रार देना
संभव है
विदेशी लुटेरों के सामने घुटने टेकने वाले प्रधान को
संत और साधु बताना
यह ऐसा समय है
जब प्रेम करने वाले मारे जाते हैं
पशुओं से भी बदतर तरीके से
इज़्ज़त के नाम पर
जब बेटे की लाश को
सूखी आंखों से देखती हुई मां
कहती है
ठीक हुआ यह इसके साथ....
3. जहां से शुरु होती है
ज़िंदगी की सरहद
अभी तक वहां
पहुंच नहीं पा रहे हैं शब्द
जहां कुंवारे कपास की तरह
कोरे सफ़ेद पन्नों पर
दर्ज कर रहे हैं
कवि
अपने सुख-दुख
वहां से बहुत दूर हैं
दण्डकारण्य में बिखरे
ख़ून के अक्षर
दूर बस्तर और दन्तेवाड़ा में
नौगढ़ और झारखण्ड में
लिखी जा रही है
एक और ही गाथा
रात की स्याही को
घोल कर
अपने आंसुओं में
आंसुओं की स्याही को
घोल कर बारूद में
लोहे से
दर्ज कर रहे हैं लोग
अपना-अपना बयान
बुन रहे हैं
अपने संकल्प और सितम से
उस दुनिया के सपने
जहां शब्दों
और ज़िंदगी की
सरहदें
एक-दूसरे में
घुल जाएंगी....
नीलाभ की कृतियां
संस्मरणारम्भ, अपने आप से लंबी बातचीत, जंगल खामोश है, उत्तराधिकार, चीज़ें उपस्थित हैं (1988) शब्दों से नाता अटूट है, शोक का सुख, ख़तरा अगले मोड़ की उस तरफ़ है, ईश्वर को मोक्ष (सभी कविता-संग्रह)
विविध : प्रतिमानों की पुरोहिती, पूरा घर है कविता (गद्य संकलन)।
अन्य रचनात्मक गतिविधियां : शेक्सपियर, ब्रेष्ट तथा लोर्का के नाटकों के रूपान्तर इनके अलावा,मृच्छकटिक’ का रूपान्तर सत्ता का खेल के नाम से। जीवनानन्द दास, सुकान्त, भट्टाचार्य, एजरा पाउण्ड, ब्रेष्ट, ताद्युश रोजश्विच, नाजिम हिकमत, अरनेस्तो कादेनाल, निकानोर पार्रा और पाब्लो नेरूदा की कविताओं के अलावा अरुन्धती राय के उपन्यास के गॉड आफ स्मॉल थिंग्स और लेर्मोन्तोव के उपन्यास हमारे युग का एक नायक का अनुवाद।
रंगमंच के अलावा टेलीविजन, रेडियो, पत्रकारिता, फि्ल्म, ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों तथा नृत्य-नाटिकाओं के लिए पटकथाएं और आलेख। फिल्म, चित्रकला, जैज तथा भारतीय संगीत में उनकी ख़ास दिलचस्पी रही।