आग हर चीज में बताई गई थी
राजकमल प्रकाशन
पुस्तक के बारे में '
आग हर चीज में बताई गई थी' की कविताओं के शब्द, कठिन दुनिया को भाषा में खोलते और रचते हुए निरंतर एक प्रश्न अपने आपसे भी करते हैं कि एक हिंसक और मनुष्य विरोधी समाज में कविता कौन सा मिथ रच सकती है। इसलिए ये कविताएँ प्रीतिकर किंतु झूठे बिम्बों में 'खर्च नहीं होतीं और न इस नष्ट होती दुनिया का भयावह किंतु चमकदार काव्यभाव्य ही प्रस्तुत करती हैं। 'शब्द और सगुण व दृश्यमान' की इच्छा देवताले की कविता में भाषा का बेहद संश्लिष्ट और विश्वसनीय रूपाकार गढ़ती है।'* रोटी सेंकती पत्नी से हँसकर कहा मैंने अगला फुलका बिल्कुल चंद्रमा की तरहउसने याद दिलाया बेदाग नहीं होता कभी चंद्रमातो शब्दों की पवित्रता के बारे में सोचने लगा मैंक्या शब्द रह सकते हैं प्रसन्न या उदास केवल अपने से('
शब्दों की पवित्रता के बारे में' से)****** प्रेम करती हुई औरत के बाद भी कोई दुनिया हैतो उस वक्त वह मेरी नहीं है उस इलाके में मैं साँस तक नहीं ले सकताजिसमें औरत की गंध वर्जित है सचमुच मैं भाग जाता चंद्रमा से फूल और कविता सेनहीं सोचता कभी कोई भी बात जुल्म और ज्यादती के बारे मेंअगर नहीं होती प्रेम करने वाली औरतें इस पृथ्वी पर('
स्त्री' के साथ से)***** नींद में ही हो चुका होता है दिन पर हमला सुबह होने के कुछ पहले ही मँडराने लगते हैं स्याह डैनेखुलते ही आँख दिखते हैं कमरे में उड़ते दुर्जेय किलेमैं टटोलता हूँ हड्डियाँ, ढूँढता हूँ खून के भीतर चाबी नहीं मिलती। ('
धन्यवाद का पत्थर' से) ------
समीक्षकीय टिप्पणी जैसा कि हर महत्वपूर्ण और सार्थक कविता करती है, ये कविताएँ भी अपने समय की और (अपने से पहले लिखी गई तमाम कविताओं की परंपरा में) खुद अपनी व्याख्या का अवसर देती है।कविता संग्रह : आग हर चीज में बताई गई थी कवि : चंद्रकांत देवताले प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन पृष्ठ : 134मूल्य : 150 रुपए