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Written By ND

एक पेड़ की कहानी सुनें-4

आधी उम्र का अनुभव--

Environment day | एक पेड़ की कहानी सुनें-4
* स्वाति शैवा
NDND
आधी उम्र का अनुभव-- अब फल लगने पहले से कुछ कम हो गए हैं। मेरे आस-पास लगे कई साथी 'सड़क दुर्घटना' में चल बसे। यह दुर्घटना अकस्मात थी। उनके परिवारों का विलाप अब भी मेरे कानों में गूँजता रहता है। अब हमारे परिवारों की संख्या भी पहले जैसी नहीं रही। इसलिए हवाएँ और बादल भी अब हमारे घर आना कम ही पसंद करते हैं। वैसे भी यहाँ आकर और हमारी स्थिति देखकर उन्हें मनुष्यों पर गुस्सा ही ज्यादा आता है। पिछली बार तो वे कहकर गए थे कि 'तुमने लोगों को अपना कुछ ज्यादा ही फायदा उठाने दिया है।

ऐसी विनम्रता किस काम की कि लोग तुम्हारा लिहाज ही नहीं करते? जिसे देखो वो तुमसे काम तो ले लेता है लेकिन बदले में तुम्हारी रक्षा तक करने से कतर जाता है। सच बहुत ही एहसान फरामोश है ये इंसानों की कौम। यही हाल रहा तो हम इनका 'हवा-पानी' बदं कर देंगे किसी दिन।'

मैं मुस्कुराकर उन्हें समझाता हूँ कि ठीक है हम दूसरों के काम आने के लिए ही बने हैं। आखिर हमारी वजह से इंसानों को भोजन, पानी, धन आदि मिलते हैं। सेवा का यह भाग्य कम ही लोगों को मिलता है। मेरे इसी जवाब से वे नाराज हो गए। हालांकि जानता हूँ ज्यादा दिन नाराज नहीं रह पाएँगे। लेकिन कभी-कभी मुझे भी ये बात चुभती है, कि फलों से लेकर नीचे गिरने वाली सूखी टहनियों तक, सारी चीजें मैंने इंसानों को दी हैं क्या वाकई उन्हें मेरा खयाल तक नहीं आता होगा?

फिर लगता है.. नहीं, मनुष्य विकास में लगा है और इसमें भी हम योगदान दे रहे हैं यह भी एक तरह की उपलिब्ध है। बस काश, इंसान इतना समझ जाएँ कि कम होते जंगल और रीतती जमीन भविष्य के लिए दुखदाई होगी। खैर.. वे दुनियाभर की बातें जानते हैं तो इतना तो समझते ही होंगे।