मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By ND

कैलाश-मानसरोवर यात्रा

आध्यात्मिक केंद्र चार धर्मों का

कैलाश-मानसरोवर यात्रा -
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-रेणुकमेहत
कैलाश मानसरोवर का नाम सुनते ही हर किसी का मन वहाँ जाने को बेताब हो जाता है। हमारे 34 सदस्यों के दल ने भी जब इस यात्रा पर जाने की ठानी तो प्रत्येक सदस्य उत्साहित हो कर अपने तन व मन को शक्तिशाली बनाने में लग गया।

कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूँकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है।

  तिब्बतियों की मान्यता है कि वहाँ के एक सत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं, जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभ देव का यह निर्वाण स्थल अष्टपद है। कहते हैं ऋषभ देव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।      
कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली। कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।

तिब्बतियों की मान्यता है कि वहाँ के एक सत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं, जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभ देव का यह निर्वाण स्थल अष्टपद है। कहते हैं ऋषभ देव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी। हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है।

उपर स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जो पुराणों में 'क्षीर सागर' के नाम से वर्णित है। क्षीर सागरकैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्‌या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है।

  20 जून को दिल्ली से हवाई यात्रा द्वारा 1घंटे 25 मिनट में हम काठमांडू पहुँच गये। अगले दिन हमने पशुपतिनाथ के दर्शन किये। यहाँ से आगे की यात्रा प्रारंभ की व दूसरे दिन शाम तक हमारा दल चीन में प्रवेश कर चुका था।      
हमने अपने रूपयों को चीनी मुद्रा में परिवर्तित किया क्योंकि अब चीनी मुद्रा जिसे युवान कहते हैं वह हमें काम में आनी वाली थी। जंगमु नामक कस्बें में हमने भोजन किया व रात 11 बजे हमारी 9 टोयटा, लेंड क्रूजर आगे की यात्रा के लिए हमें तैयार मिली। एक गाड़ी में 4 सवारी व एक ड्रायवर बैठ सकता था। यात्रा के दौरान रात में अचानक हमारी गाड़ी रूक गई। ज्ञात हुआ कि भूस्खलन के कारण रास्ता बंद है। लगभग 16 घंटे हम वहीं अटके रहे एक तरफ बड़े-बड़े पहाड़ और दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी खाई।
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डायनामाईट बुलडोजर व स्कूपर की सहायता से रास्ता साफ हुआ व हमारा काफिला दोपहर को फिर आगे की ओर बढ़ गया। हमारा अगला पड़ाव नियालम नामक कस्बें में था जो समुद्र सतह से 1400 फुट ऊँचाई पर स्थित नियालम में रात गुजारने के बाद अगले दिन हमें सागा शहर केलिये 220 किमी सफर तय करना था। रास्तें पीकू ताल व ब्रह्मपुत्र नदी मिली, शीशा पर्वत श्रृंखला दिखी जो विश्व की चौथी सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है यह 26300 फीट ऊँचाई पर है।

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के बाद हमारी यात्रा सागा से परियाँग नाम की जगह की ओर बढ़ गई। जो 235 किमी का सफर था। शाम तक हम परियाँग पहुँच गये। यहाँ से दक्षिण में कुरला मंधाता पर्वत श्रृंखला दिखाई देती है इसके सामने उत्तर में कैलाश पर्वत स्थित है। रास्ते में डियुमला पास को हमने पार किया जो 17000 फुट की ऊँचाई पर है जो ड्राइविंग का अंतिम सबसे ऊँचा स्थान है।
  कैलाश दर्शन के बाद लगा स्वर्ग यहीं है । वहाँ से एक घंटे की यात्रा के बाद हमें दूर घने नीले रंग की रेखा दिखी वह मानसरोवर था पास आने पर वह स्पष्ट हो गया। उसका गहरा नीला रंग आकाश का रंग विभिन्ना आकारों के बादलों के समूह आज भी मन को गुदगुदाते हैं।      
अगला दिन हमारा लिये बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि हमें कैलाश व मानसरोवर के दर्शन होने वाले थे। जब हमारे ड्रायवर ने हमें कैलाश पर्वत दिखाया हम सब अचंभित हो गये। प्रथम कैलाश दर्शन के साथ ऐसा लगा जैसे स्वर्ग यहीं है अब कोई इच्छा शेष नहीं है। वहाँ से एक घंटे की यात्रा के बाद हमें दूर घने नीले रंग की रेखा दिखी वह मानसरोवर था पास आने पर वह स्पष्ट हो गया। उसका गहरा नीला रंग आकाश का रंग विभिन्ना आकारों के बादलोंके समुह आज भी मन को गुदगुदाते हैं। मानसरोवर से ही दूर एक मात्र बर्फ से ढका शिवलिंग के आकार का पर्वत दिखा। उस दिन निर्जला एकादशी होने से सभी ने मानसरोवर में स्नान कर पूजा अर्चना की उसके पश्चात 105 किमी की उसकी परिक्रमा गाड़ी में बैठकर तय की।

शाम को हमने ट्रेकिंग द्वारा अष्टपद की यात्रा की वह अदभुत स्थान था वहाँ बहुत पास से कैलाश पर्वत, नंदी पर्वत व अष्ट पद काफी स्पष्ट दिखाई दिये। रात में होरचु नामक स्थान पर पहुँचकर हमने विश्राम किया। नदी नाला पत्थरों को पार करती हमारी गाड़ी पौन घंटे में दारचीनले आई। यहाँ हमने होटल मानसरोवर में रात बिताई। रात में परिक्रमा की योजना बनाई।

आवश्यक सामग्री, गरम कपड़े आदि रखे और अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार घोड़े पिट्टू किराये से लिए। यहाँ से हमें कैलाश के दक्षिणी हिस्से के दर्शन होते हैं यही से ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम हुआ है। वहाँ से बड़े उत्साह से हमारी ढ़ाई दिन की परिक्रमा शुरू हुई। कैलाश पति की कृपा से मौसम साफ व आगे का मार्ग स्पष्ट था।

यात्रा के दौरान एक-एक लकड़ी की छड़ी हर यात्री को दी गई। एक लीटर का आक्सीजन सिलेंडर भी प्रत्येक व्यक्ति के पास था। साथ ही एक सीटी व कपूर की थैली आगे पीछे होने पर व सांस भरने पर उपयोग के लिये दी गई। थी। यदि किसी यात्री को परिक्रमा में सॉस लेने में विशेष कष्ट हो तो उसे पुनः हेलिकॉप्टर द्वारा नेपाल ले जाने की व्यस्था भी थी। पहले व दूसरे दिन 12-12 किमी व तीसरे दिन 18 किमी यात्रा तय करनी थी।
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डिरापुक नामक स्थान पर टेंट डालकर हमारा रात्री पड़ाव था। कैलाश पर्वत के नीचे हमने रात बिताई। प्रातः दूसरे दिन की यात्रा चाय नाश्ते के पश्चात शुरू की गई। सूर्य की किरणें जब कैलाश पर्वत पर पड़ती थी तब वह स्वर्णीम छटा से हमें अभिभूत कर देता था। वहाँ से कैलाश के उत्तरी हिस्से के दर्शन होते हैं। अब हमारा दल सबसे कठिन यात्रा के लिये शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार हो गया। पथरीली पहाड़ी व ऊँची चढ़ाई पर हम 19000 फीट पर पहुँच गये। यह स्थान डोलमाला पास था वहाँ से भी कैलाश के दर्शन होते है।

आगे बड़ी-बड़ी चट्टाने पार करते हुये हमने अद्भूद दृश्य एक ग्लेशियर के रूप में देखा। हमे उस पार करना था बीच में साढ़े तीन से चार फिट चौड़ी दरार छड़ी द्वारा बर्फ के घनत्व का आंकलन कर हमने उसे जय कैलाश बोलकर एक दूसरे की मदद से छलांगा। यदि कोई चूक हो जाती तो हम सीधे नीचे दरार के नीचे गहरे बर्फीले पानी में हो सकते थे। इसके बाद फिर पत्थरीली ढलान थी उसी बीच हमने एक जल कुंड देखा।

  आगे बड़ी-बड़ी चट्टाने पार करते हुये हमने अद्भूद दृश्य एक ग्लेशियर के रूप में देखा। हमे उस पार करना था बीच में साढ़े तीन से चार फिट चौड़ी दरार छड़ी द्वारा बर्फ के घनत्व का आंकलन कर हमने उसे जय कैलाश बोलकर एक दूसरे की मदद से छलांगा।      
थक कर हम चूर हो गये। तथा पैर कई बार आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे पढ़ाव पर पहुँचने के बाद चाय पीकर व रात्री भोजन के पश्चात हम स्लीपिंग में धाराशाई हो गए। सुबह उठने पर बाहर का तापमान (-2) सेंटीग्रेड था। जब हमने टेंट को बाहर से देखा तो उस पर बर्फ की परत जमी थी। अब यह यात्रा का अंतिम दिन था।

यात्रा शुरू हुई व कुछ हद तक समतल थी उतार चढ़ाव नाले झरने पार करते हुए हम चलते जा रहे थे दूर से हमें नीले पानी की लकीर सी दिखी जो राक्षस ताल थी। आगे जब हमारे मान सरोवर में रूके अन्य साथी दिखे तो हृदय भर आया क्योंकि वे हमारी अगवानी हेतु आये थे। साथ ही हमारी गाड़ियों भी हमारा रास्ता देख रही थी हम बहुत प्रसन्न थे कि इतनी कठिन यात्रा निर्विध्न सम्पन्न हुई।