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Written By WD

गैंग्स ऑफ वासेपुर : फिल्म समीक्षा

Movie Review Gangs of Vassepur | गैंग्स ऑफ वासेपुर : फिल्म समीक्षा
बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : अनुराग कश्यप, सुनील बोहरा, गुनीत मोंग
निर्देशक : अनुराग कश्यप
संगीत : स्नेहा खानवलकर
कलाकार : मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दकी, पीयूष मिश्रा, रीमा सेन, जयदीप अहलावत, रिचा चड्ढा, हुमा कुरैशी, राजकुमार यादव, तिग्मांशु धुलिया
रेटिंग : 3/5

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गैंग्स ऑफ वासेपुर 1947 से 2004 के बीच बनते बिगड़ते वासेपुर शहर की कहानी है, जहां कोल और स्क्रैप ट्रेड माफिया का जंगल राज है। कहानी दो बाहुबली परिवारों पर आधारित है, जिसमें बदले की भावना, खून खराबा, लूट मार के साथ ही इसमें प्रेम कहानियों को भी जगह दी गई है।

सरदार खान (मनोज वाजपेयी) की जिंदगी का एक ही मकसद है। अपने सबसे बड़े दुश्मन कोल माफिया से राजनेता बने रामधीर सिंह (तिग्मांशु धुलिया) से अपने पिता की मौत का बदला लेना। सरदार खान की प्रेम कहानी के साथ उसका इंतकाम भी चलता रहता है और कहानी दूसरी पीढ़ी पर आ जाती है। सरदार खान का बेटा (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) दुश्मन परिवार की बेटी से प्यार करने लगता है और सरदार के 'बदला' अभियान पर विराम लगाने की कोशिश करता है।

फिल्म में किरदारों के ‍ह्रदय परिवर्तन से कहानी के उतार चढ़ाव को समझाया गया है, लेकिन यह फिल्म की कहानी को पेंचीदा बनाता है। कहानी में दहशत है और किसी की जान लेना मामूली बात। इसमें राजनीति, षड्यंत्र, अवैध कमाई और खून के खेल ने पूरे शहर को लहुलुहान बताया गया है। ठेट देसी कहानी फिल्माने के नाम पर फिल्म में गालियों की भरमार है।

फिल्म में इंटरटेंमेंट की मात्रा कम और अपशब्द तथा हिंसा को ज्यादा जगह दी गई है। पहला भाग एवरेस्ट की चढ़ाई की तरह थका देने वाला है, इंटरवल से पहले फिल्म की गति बेहद धीमी है। हालांकि इंटरवल के बाद फिल्म में जान आती है और दर्शकों को कुछ अच्छे सीन (भले ही वे मारधाड़, खून खराबा वाले हों) देखने को मिलते हैं।

फिल्म के डायरेक्टर अनुराग कश्यप का निर्देशन सशक्त है। कई सीन देखने लायक हैं, लेकिन उलझी हुई कहानी के बजाय अगर वे एक सामान्य 'रिवेंज स्टोरी' पर फिल्म बनाते तो यह अधिक लोगों को अपील कर सकती थी। कहानी के मुख्य पात्र सरदार खान को अनुराग ने इतनी चतुराई से पर्दे पर उकेरा है कि दर्शकों को वह सिनेमा घर से निकलने के बाद भी याद रहता है।

सैयद जि़शान कादरी, अखिलेश जायसवाल, सचिन लाडिया के साथ अनुराग कश्यप ने पटकथा का जिम्मा संभाला है। कुछ संवाद बेहतरीन हैं, लेकिन दो पीढ़ियों की कहानी के संवाद के जरिये तात्कालिक परिस्थितियों को निर्मित करने की कोशिश में फिल्म बोझिल सी हो गई है।

फिल्म के मुख्य किरदारों ने छाप छोड़ने वाला अभिनय किया है। मनोज वाजपेयी ने बेहतरीन अभिनय किया है और अपने अभिनय के दम पर दर्शकों को सिनेमा घरों में रोकने की चुनौती में वे सफल रहे हैं। तिग्मांशु धुलिया‍ ने अपना का अच्छी तरह से अंजाम दिया। नवाजुद्दीन सिद्दकी ने नई उम्र के प्रेमी की भूमिका में सफल प्रयास किए। रीमा सेन और रिचा चड्ढा के लिए करने को बहुत कम था, लेकिन दोनों ही ठीक ठाक रहीं।

अगर आप मनोरंजन के लिए फिल्म देखते हैं तो गैंग्स ऑफ वासेपुर आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरेगी, लेकिन अगर आप कलाकारों के अभिनय की रैंज और कुशल निर्देशन देखना चाहते हैं तो गैंग्स ऑफ वासेपुर आपके लिए ही है।