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Last Updated : शनिवार, 4 जून 2016 (19:51 IST)

अमेरिकी संसद द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को भाषण के लिए आमंत्रण

अमेरिकी संसद द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को भाषण के लिए आमंत्रण - US House Narendra Modi Speech invitation
प्रधानमंत्री मोदीजी 8 जून को अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त सभा को संबोधित करने वाले हैं। इससे पहले राजीव गांधी, नरसिम्हाराव, अटलबिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहनसिंह इस सभा को संबोधित कर भारतीय प्रजातंत्र को गौरवान्वित कर चुके हैं।
सन् 2005 के पश्चात वर्तमान प्रधानमंत्री को यह आमंत्रण विश्वमंच पर भारत के महत्व को रेखांकित करता है। यद्यपि आधिकारिक तौर पर देखें तो मोदीजी को यह निमंत्रण अमेरिकी कांग्रेस के स्पीकर रयान ने दिया है किंतु ख़बरों के अनुसार राष्ट्रपति ओबामा की पहल पर रयान ने उन्हें आमंत्रित किया है।  
 
यह एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं है कि जिस राष्ट्र ने मोदीजी पर लगभग दस वर्षों तक अमेरिकी  प्रवेश पर पाबंदी लगा रखी थी, आज उसी राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था कांग्रेस ने उन्हें उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया है।
 
अंतरराष्ट्रीय राजनीति कितनी चंचल, चपल और लचीली होती है, इसका इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है? दूसरा अमेरिका जैसे राष्ट्र का पलटी मारना यही दिखाता है कि राष्ट्र कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कूटनीतिक निर्णय राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखकर ही लिए जाते हैं, अन्य किन्हीं सिद्धांतों या मुद्दों के कोई मायने नहीं होते। 
 
राष्ट्राध्यक्ष के रूप में ओबामा की मोदीजी से अमेरिका में शायद यह अंतिम राजकीय मुलाकात हो, क्योंकि इस वर्ष के अंत में ओबामा अपना कार्यकाल समाप्त कर रहे हैं। ओबामा से अपनी मित्रता को देखते हुए मोदीजी पूरा प्रयास करेंगे के कुछ नीतिगत निर्णय भारत के पक्ष में करवा लें। इसलिए यह राजकीय दौरा महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस दौरे से भारत को क्या आशाएं और अपेक्षाएँ हैं इसी पर चर्चा करते हैं। 
 
आतंकवाद और पाकिस्तान का मुद्दा तो उठना ही है और मोदीजी द्वारा उसे प्रभावी रूप से कांग्रेस में रखे जाने की उम्मीद है। चीन का बिना नाम लिए अंतरराष्ट्रीय जल सीमा पर चीन की विस्तारवादी नीति पर संकेतों में शायद कुछ कहा जाये।  
 
भाषण सकारात्मक ही रहेगा जिसमे किसी भी विरोधी राष्ट्र का नाम सीधे नहीं लिया जाएगा। एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप ) में भारत के प्रवेश का मुद्दा भी मोदीजी उठा सकते हैं। भारत चाहता है कि उसे परमाणु क्लब में एक सदस्य के रूप में प्रवेश  मिले  ताकि विश्व में उसे एक जिम्मेदार और अधिकृत परमाणु शक्ति का दर्जा मिले। 
 
अमेरिका की तो लगभग स्वीकृति है किंतु पाकिस्तानी एतराज पर अमेरिका पशोपेश में है और भारत की सदस्यता को लेकर चीन का समर्थन भी तभी हासिल है जब पाकिस्तान को भी इस क्लब में शामिल किया जाए। अन्य मुद्दों में भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की आकांक्षा। 
 
एक खबर से यह भी लगता है कि कुछ अमेरिकी सांसद भारत को नाटो की तरह ही एक सहयोगी देश मानने पर प्रस्ताव रखना चाहते है किंतु अभी यह दूर की कौड़ी नज़र आती है और शायद ओबामा के  कार्यकाल में यह संभव न हो।
 
अमेरिका की एक विशेष बात है। यहां विभिन्न देश अमेरिकी कांग्रेस और प्रशासन से अपने अपने काम निकलवाने तथा नीतियों को अपने देश के पक्ष में मोड़ने के लिए अधिकृत रूप से व्यावसायिक  संस्थाओं को शुल्क देकर नियुक्त कर सकते हैं। जो देश जितना पैसा खर्च करेगा उसे उतने ही लाभ मिलने संभावना होती है। 
 
अमेरिका में यहूदी लॉबी को सबसे मज़बूत और प्रभावी माना जाता है जिसने एक तरह से प्रशासन और कांग्रेस को अपने कब्जे में कर रखा है। यही वजह है कि अमेरिका के संबंध इसराइल से बहुत निकट के हैं। कुछ समय तक पाकिस्तान की लॉबी भी मज़बूत रही और इसलिए भारत के पक्ष में कोई भी निर्णय आसानी से नहीं हो सकता था किंतु परिस्थितियां तेजी से परिवर्तित हुई हैं विशेषकर पाकिस्तान के आतंकवादी चरित्र की वजह से।  
 
दूसरी ओर अनेक भारतीय मूल के अमेरिकी निवासी,  प्रशासन में उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं। भारतीय उद्योगों और उद्योगपतियों ने भी अमेरिका में अपना एक मुकाम बनाया है। ऐसे में लॉबिंग करने के लिए आज धन एक समस्या नहीं है। भारत के लिए समस्या केवल यह है कि अनेक ऐसी संस्थाएँ खड़ी हो गई हैं जिनका उद्देश्य तो भारतीय हितों के लिए प्रयास करना  है किन्तु प्रयास संगठित नहीं होने से जितना प्रभाव डालना चाहिए उतना नहीं डाल पा रहे हैं। साथ ही किसी सफलता का श्रेय लेने की होड़ भी मच जाती है। इसराइल की मात्र एक ही संस्था है अतः धन विपुल मात्रा में इकठ्ठा होता है, प्रयास भी केंद्रित रहते हैं तथा सफलता अथवा विफलता की जिम्मेदार भी एक ही संस्था होती है।   
 
भारत को अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के खेल में टीम के अतिरिक्त सदस्य के रूप में नहीं अपितु एक सक्रिय सदस्य के रूप में खेलना होगा और उम्मीद है कि मोदीजी का यह भाषण विश्व मंच पर भारत की भविष्य की कूटनीतिक सक्रियता का आगाज़ करेगी। ओबामा के कार्यकाल में मोदीजी जितने काम करवा लें। भारत के हित में होगा बाद में नए राष्ट्रपति के साथ में फिर से पटरी बैठाने  में समय  लग सकता है। 
 
भारत के साथ एक अच्छी बात यह है कि अमेरिका के दोनों प्रमुख दलों में भारत समर्थक सांसद बैठे हैं अतः दोनों ही दलों से भारत के रिश्ते अच्छे हैं। प्रधानमंत्री का यह दौरा एक परीक्षा की घडी होगी क्योंकि विगत दो वर्षों के मेहनत का परिणाम इस दौरे में देखने को मिलेगा। ओबमा अपनी विरासत में भारत की  स्थिति को कितना  मजबूत कर के जाते है वह एक देखने वाली बात रहेगी।  हमारा विश्वास है मोदीजी के सद्प्रयासों से ओबामा के साथ निर्मित उनके निकट सदाशयी सम्बन्ध फलदाई सिद्ध होंगे।  
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