ऐसा लगता है कि गुजरात और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। बहुत कुछ वैसा ही जैसा एक बार किसी ने कहा था कि 'भारत इंदिरा है और इंदिरा भारत।' अब इस पर आप यक़ीन करें या नहीं, लेकिन सार्डिन मछली का नाम भी अब नरेंद्र मोदी के नाम के साथ जुड़ गया है क्योंकि ये मछली गुजरात के तट से आती है।
इसके गुजरात से आने के पीछे कई कारण हैं। पहला तो यह कि कर्नाटक के मंगलुरु ज़िले में अब सार्डिन कम मिलती है इसलिए इसे गुजरात से मंगाना पड़ता है। इसकी शुरुआत साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुई थी।
मछुआरों के संगठन के अध्यक्ष यतीश बैकमपैदी ने बीबीसी हिंदी से कहा, 'चूंकि यह गुजरात से आ रही थी इसलिए लोगों ने इसे स्थानीय भाषा तुलु में 'मोदी भुटाई' कहना शुरू कर दिया था। यह हमारे तटों पर पाई जाने वाली सार्डिन मछली से आकार में बड़ी भी होती है।'
यतीश बताते हैं, 'गुजरात से आने वाली सार्डिन मछली कर्नाटक में मिलने वाली मछली से दो इंच बड़ी होती है। वे ज़्यादा मोटी भी होती हैं लेकिन खाने में स्वादिष्ट होती हैं।' इसकी दूसरी वजह यह थी कि गुजरात के तट पर अब ओमान के मस्कत से ये मछली मंगवाई जाने लगी।
कर्नाटक में मछुआरों के संघ के अध्यक्ष वासुदेव बी कारकेरा ने बताया, 'स्थानीय सार्डिन मछली के एक किलोग्राम में छह से सात टुकड़े निकलते हैं जबकि बाहर से आए मछली में 20 से 25 टुकड़े निकल आते हैं। इसलिए लोग ओमान से आए सार्डिन को लेना पसंद करते हैं।'
स्थानीय किस्म की मछली क़ीमत 60 से 70 रुपए प्रति किलोग्राम होती है जबकि ओमान से आने वाली मछली की क़ीमत 100 से 110 रुपए प्रति किलोग्राम होती है। जब इस मछली का सीज़न नहीं होता है तब स्थानीय सार्डिन को चारा के रूप में पॉलट्री में और तेल निकालने में इस्तेमाल करने के मक़सद से बेचा जाता है।
यतीश का कहना है, 'हमारे तटों पर अब सार्डिन मछली ज़्यादा नहीं बची रह गई है क्योंकि कहीं से भी ज़्यादा लोग हमारे यहां मछली पकड़ने के काम में लगे हुए हैं।' कारकेरा ने कर्नाटक के तट पर सार्डिन मछली की कमी की एक और वजह बताई। उनका कहना है, 'पिछले सितंबर से इस इलाक़े में तापमान बढ़ा हुआ है और सार्डिन बहुत ही कोमल मछली होती है। इसलिए तब से सार्डिन मछली नहीं पकड़ी जा रही है।'