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Written By संदीप तिवारी

निर्भया डॉक्यूमेंट्री : कितनी ईमानदार हैं लेस्ली उडविन

निर्भया डॉक्यूमेंट्री : कितनी ईमानदार हैं लेस्ली उडविन - Nirbya documentary
ब्रिटिश फिल्मकार लेस्ली उडविन ने भारत में बलात्कार की समस्या पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई। इसे 'डॉटर ऑफ इंडिया' का नाम दिया गया और इसे बीबीसी जैसी निष्पक्ष समझी जाने वाली मीडिया से जुड़ी संस्था ने सारी दुनिया में दिखाया। वह भी तब जब यह मामला भारत की सर्वोच्च अदालत में चल रहा है। 
उडविन ने भारतीय समाज को 'बीमार' या 'रुग्ण' बताया है। उनकी डॉक्यूमेंट्री दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को एक मेडिकल छात्रा के साथ बर्बर बलात्कार और उसकी हत्या के बारे में है। इसमें बलात्कार के आरोपियों में से एक मुकेश सिंह का इंटरव्यू है। यह इस तरह का प्रभाव छोड़ती है कि बलात्कार भारत की एक गंभीर समस्या है और यहां महिलाओं के प्रति ज्यादातर पुरुष खराब सोच और घृणित मानसिकता रखते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में भी कुछ पुरुषों की सोच मध्यकालीन हो सकती है लेकिन यह पूरा सच नहीं है। यह सही तस्वीर और हकीकत नहीं है।
 
पर सवाल यह है कि जब बीबीसी चैनल-4 जैसा विश्वसनीय चैनल किसी विषय के बारे में दिखाता है या इससे संबंधित जानकारी देता है तो सारी दुनिया में इसे गंभीरता से लिया जाता है। जर्मनी की एक ताजा घटना इस बात को इंगित करती है जहां लिपजिग विश्वविद्यालय में एक महिला प्रोफेसर ने एक भारतीय छात्र को मात्र इस कारण से इंटर्नशिप देने से मना कर दिया ‍क्योंकि वह एक भारतीय था। प्रोफेसर एनेटी बेकसिकिंगर ने छात्र को भेजे अपने ईमेल संदेश में कथित रूप से कहा कि दुर्भाग्यवश वे किसी भी भारतीय छात्र को इंटर्नशिप के लिए स्वीकार नहीं करती हैं। भारत में रेप एक समस्या है। मेरे साथ बहुत सारी महिलाएं काम करती हैं। इसलिए मैं अनुमति नहीं दे सकती हूं। 
 
एक दूसरे ईमेल संदेश में उनका कहना है, 'यह भरोसा नहीं होता कि इतने साल बीत जाने के बाद भी भारतीय समाज रेप जैसी समस्या का समाधान नहीं खोज सका है।' बाद में, भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टीनर ने प्रोफेसर को लताड़ लगाई और कहा कि भारत बलात्कारियों का देश नहीं है। इस घटना को यहां बताने का उद्देश्य यही है कि खराब नीयत और एकांगी दृष्टिकोण से पेश की गई चीजें कैसे किसी देश की छवि बिगाड़ती हैं।
 
उडविन ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में फांसी की सजा पाए अपराधी मुकेश सिंह से इंटरव्यू लिया। समझा जाता है कि इसके लिए उन्होंने मुकेश सिंह तक 40 हजार तक की राशि पहुंचाई जबकि मुकेश ने उनसे बात करने के लिए दो लाख रुपए मांगे थे। लेकिन मामला चालीस हजार में तय हुआ।
 
मुकेश सिंह से उन्होंने ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा जिससे लगे कि उसे अपनी करनी पर कोई पछतावा है। वरन उसने विकृत मानसिकता के साथ अपनी गंदी सोच के साथ धमकी भी दी कि बलात्कार के समय लड़कियों को विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उनकी जान जाने का खतरा हो सकता है। एक विदेशी मीडिया द्वारा उस हत्यारे का साक्षात्कार लेना, जिसने बलात्कार के साथ लड़की की हत्या तक कर दी हो, क्या दर्शाता है? एक महिला पत्रकार और मीडिया संस्थान की क्या मजबूरी थी कि एक हत्यारे को किसी ‍सेलिब्रिटी बनाकर उसका इंटरव्यू किया गया? इस साक्षात्कार की अनुमति देने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है। क्या प्रशासन को लगता था कि मुकेश सिंह समाज को कोई संदेश देगा? इस साक्षात्कार के बहाने उसने उन मानवाधिकार संगठनों के लिए क्या संदेश दिया है जो कि भारतीय जेलों में बलात्कारियों की हालत को लेकर भी चिंतित होते हैं? शायद उडविन को लगा हो कि मुकेश सिंह की कोई नीति, विचारधारा और कोई राय होगी जिससे समाज को सकारात्मक संदेश मिलेगा? जहां ऐसे जघन्य अपराधी को नितांत अकेलेपन की सजा मिलनी चाहिए वहीं उसके लिए मीडिया और पत्रकार अनुचित लाभ दिलाने के लिए इतने उत्सुक क्यों रहते हैं? 
 
ये घटनाएं कैसे भूल गईं उडविन... पढ़ें अगले पेज पर....

लेस्ली उडविन को पता होना चाहिए कि रेप केवल भारत में नहीं वरन सारी दुनिया में होते हैं। आंकड़ों के लिहाज से सबसे ज्यादा बलात्कार की घटनाएं अमेरिका में होती हैं। जघन्य और बर्बर रेप की घटनाएं ब्रिटेन में भी होती हैं। इसलिए अगर उडविन और बीबीसी रेप को लेकर इतना ही संजीदा हैं तो उन्हें अमेरिका, पश्चिमी देशों और ब्रिटेन में होने वाले रेप के आंकड़ों पर विचार करना चाहिए। इस कारण से भारत में रेप की चिंता करने वाली उडविन को ब्रिटेन में फैली यौन हिंसा की महामारी पर भी एक डॉक्यूमेंट्री बनाना चाहिए और ब्रिटेन के बीबीसी चैनल 4 को चाहिए कि वह इसे प्रसारित करे।
 
नैतिकता का उपदेश देने वाले बीबीसी को अपने ही एक पूर्व कर्मचारी जिम्मी सेविल पर डॉक्यूमेंट्री बनाना चाहिए। विदित हो कि सेविल ने वर्षों तक बीबीसी परिसर में बच्चों और लड़कियों का यौन शोषण किया लेकिन बीबीसी और उडविन को मुकेश की मानसिकता जानना क्यों जरूरी लगा?  
 
बीबीसी जैसी निष्पक्षता का दावा करने वाली संस्था और उडविन जैसी पत्रकार को रोदरहैम घटना क्यों याद नहीं रहती है? विदित हो कि रोदरहैम सेक्स स्केंडल में 1400 बच्चों को यौन प्रताड़ना दी गई लेकिन ब्रिटिश समाज में फैली यौन हिंसा को समाप्त करने के नाम पर बीबीसी और उडविन का पेशेवर और सामाजिक उत्तरदायित्व कहां चला जाता है?
 
बीबीसी को केवल भारत में हुई रेप की घटना पर ही चिंता क्यों हुई? क्या बीबीसी और लेस्ली उडविन सेलेक्टिव अप्रोच अपनाने के दोषी नहीं हैं? क्या भारतीयों ने उनसे इस तरह की डॉक्यूमेंट्री बनाने को कहा था? पर भारत में बलात्कार की स्थिति पर डॉक्यूमेंट्री बनाने से पहले उडविन को ब्रिटेन के बारे में अपना होम वर्क कर लेना चाहिए था? 
 
ऐसा ही सवाल बीबीसी से किया जा सकता है कि क्या बीबीसी और लेस्ली उडविन रोशडेल, ग्रेटर मानचेस्टर के सेक्स स्कैंडल के सेक्स ट्राफिकिंग गैंग पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनाने का साहस रखते हैं? ब्रिटेन में सन् 2013 में एक बस में एक तेरह वर्षीय नाबालिग लड़की से बलात्कार हुआ लेकिन क्या वहां कोई निर्भया कांड की तरह जनाक्रोश देखा गया?
 
भारत में महिलाओं की स्थिति, हिंसा की घटनाओं और निर्भया कांड के बाद के हालात को बयान करती कई डॉक्यूमेंट्रीज, फिल्में बनी हैं लेकिन इनमें से किसी को भी प्रतिबंधित करने की जरूरत महसूस नहीं की गई। क्योंकि अन्य किसी में ऐसा छल, कपट नहीं किया गया जितना कि इस फिल्म के लिए किया गया। इसे सामाजिक काम के नाम पर कारोबारी तरीके से उपयोग किया गया। 
 
यह उडविन की धोखेबाजी नहीं तो और क्या है... पढ़ें अगले पेज पर...

इस फिल्म को बनाने वालों ने सोशल रिसर्च के नाम पर इजाजत ली थी और बाद में इसे बीबीसी चैनल 4 पर दिखाया, क्या चैनल को सोशल रिसर्च का प्लेटफॉर्म कहा जा सकता है? अगर उडविन की नीयत में खोट नहीं था तो उन्होंने भारत सरकार से इजाजत मांगते समय अपना असली मकसद क्यों छिपाया?
 
फिल्म बनाने वालों ने कई कानूनी दायित्वों को तोड़ा और इससे साबित होता है कि उनका मकसद कारोबारी फायदे के लिए धोखेबाजी करना थी। भारतीय कानूनों के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई गईं। भारतीय कानून के अनुसार पीड़ित लड़की का नाम नहीं लिया जा सकता था लेकिन उसके पूरे परिवार का खुलासा कर दिया गया? सामाजिक उद्देश्यों के नाम पर व्यावसायिक तिकड़मों को जगह दी गई और इसमें भारतीय समाज को लेकर निष्पक्षता नहीं दर्शाई गई।   
 
पिछले दो वर्षों के दौरान भारत की हर घटना का असामान्य अंतरराष्ट्रीय कवरेज देखा गया है जबकि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और हिंसा वाशिंगटन से लेकर बोगोटा और लंदन तक एक गहरी समस्या है। ऐसे मामलों में भारत में जहां सजा की दर 41.5 प्रतिशत है वहीं ब्रिटेन जैसे 'प्रगतिशील' देश में यह दर 26.5 प्रतिशत है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया अपने आसपास, देश में हो रही बलात्कार की घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं करता है।
 
अंतरराष्ट्रीय मीडिया हाउस, भारत की तुलना में बहुत अधिक फ्रीक्वेंसी से पश्चिमी देशों में हो रहे बर्बर तरीके के बलात्कार, महिलाओं के प्रति हिंसा और सीरियल मर्डर की जानकारी देने से कतराते हैं। यौन शोषण के प्रति बीबीसी का पाखंड जिम्मी सेविल मामले में उजागर हो जाता है। उस पर जहां घृणित यौन अपराधों के आरोप लगे वहीं अपने उच्च नैतिक दावों के बावजूद बीबीसी ने उस पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की जरूरत क्यों नहीं समझी? क्या बीबीसी में अब भी ऐसा करने का साहस है?  
 
विदित हो कि बीबीसी के प्रतियोगी आईटीवी ने जिमी का भंडाफोड़ करते हुए डॉक्यूमेंट्री बनाई तो उसका प्रसारण ही रात सवा ग्यारह बजे किया गया और इसके लिए भी दर्शकों को हिदायतें दी गई थीं। पर निर्भया पर डॉक्यूमेंट्री ब्रिटेन ही नहीं वरन अमेरिका में भी दिखाई गई और इसका प्रसारण पूर्व नियोजित समय से पहले कर दिया गया। यह बीबीसी और उडविन की उद्दंडता, भारतीय कानून की उपेक्षा और भारत में एक बलात्कार को दिखाने के अड़ियलपन का नमूना भर है। इसके पीछे अगर कोई इरादा था तो वह था विदेशों में भारतीय छवि खराब करना और इसके नमूने भी जल्दी ही सामने आ गए। बीबीसी को भारत की छवि बिगाड़ने की बजाय अपने देश में ही ऐसे आंदोलन चलाने चाहिए जोकि ब्रिटेन में होने वाली यौन हिंसा को रोकने का काम करें।
 
शायद बीबीसी और उडविन को इस बात का अहसास नहीं है कि बलात्कार जैसे मामलों में लोगों की इतनी तीव्र और व्यापक प्रतिक्रिया होती है कि नगालैंड में एक कथित 'बलात्कारी' की भीड़ ने पीट पीटकर हत्या कर दी। जबकि इस मामले में ब्रिटेन और वेल्स का यह हाल है कि यहां औसतन हर साल एक लाख आपराधिक मामले होते हैं। इससे संबंधित विवरण इस प्रकार है जिस पर बीबीसी और उडविन को ध्यान देना चाहिए।  
 
उडविन जरा इंग्लैंड के सेक्स अपराधों पर भी नजर डाल लें.... पढ़ें अगले पेज पर.....

इंग्लैंड और वेल्स में प्रति वर्ष सेक्स अपराधों की संख्या 4,53,000 है। इनमें से बलात्कार के मामले 60,000 से लेकर 95,000 तक होते हैं। दर्ज मामलों की संख्या 54, 000 होती है। सभी मामलों में सजा-केवल 5620 में होती है। बलात्कार मामलों में सजा मात्र 1070 मामलों में हुई। बलात्कार के मुकदमों को निपटाने में 675 दिन का समय लगता है। जबकि अन्य मुकदमे मात्र 154 दिन में निपट जाते हैं। विदित हो कि इसका स्रोत ब्रिटेन सरकार की रिपोर्ट है। 
 
इसकी तुलना अगर भारत से की जाए तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश में एक साल में 24,206 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। यानी इंग्लैंड और वेल्स में भारत की तुलना में दोगुने से ज्यादा बलात्कार होते हैं। यहां हर साल सेक्स अपराध के 4,53,000 मामले होते हैं लेकिन सजा केवल 5,620 को मिलती है।
 
बलात्कार के 95 हजार मामलों में सजा केवल एक हजार लोगों को होती है। कहने का अर्थ है कि करीब एक फीसदी अपराधियों को सजा सुनाई जाती है। ब्रिटेन एक ऐसा भी देश है जहां हर साल 72 हजार से ज्यादा पुरुष यौन शोषण का शिकार होते हैं। ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के अनुसार बलात्कार के लगभग 12 प्रतिशत मामलों में पुरुष शिकार बनते हैं।
 
ब्रिटेन और अमेरिका आगे : आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि बलात्कार की घटनाएं- आबादी के अनुपात से वारदातें- भारत से ज्यादा पश्चिमी देशों में और कई अन्य देशों में होती हैं। भारत में  वर्ष 2008-12 की अवधि में प्रति एक लाख आबादी पर बलात्कार की औसत दो घटनाएं हुईं। जबकि जापान में एक लाख की आबादी पर 1.2, मोरक्को में 3.6, बहरीन में 4.6, मैक्सिको में 12.3, ब्रिटेन में 24.1 और अमेरिका में 28.6, स्वीडन में 66.5 और दुनिया में बलात्कार की सबसे अधिक घटनाएं दक्षिण अफ्रीका में हुई जो कि प्रति एक लाख की आबादी पर 114.9 घटनाएं हुई।  
 
जहां तक सामाजिक रिचर्स की बात है तो बीबीसी को ब्रिटेन से ही शुरुआत करनी चाहिए। यहां प्रति 20 से पांच महिलाएं पीड़ित हैं। यह हाल उन देशों का है जोकि दिल्ली को विश्व की 'रेप कैपिटल' बताते नहीं थकते हैं। भारत में चरित्र के ह्रास पर हाय तौबा मचाने वाला पश्चिमी मीडिया अपने गिरेबान में झांककर नहीं देखता। फ्रांस और पश्चिम के कई अन्य देशों में हालत इस तरह है कि स्कूलों में छात्र-छात्राओं को मुफ्त में कंडोम बांटे जाते हैं।
 
पश्चिमी देशों की अविवाहित माताओं पर क्या कहेंगी उडविन... पढ़ें अगले पेज पर....

सुरक्षित यौन संबंधों के लिए पश्चिमी देशों मे किए गए प्रयासों को लेकर भी बीबीसी और लेस्ली उडविन को डॉक्यूमेंट्री बनानी चाहिए। इन देशों में अविवाहित माताओं के आंकड़े जारी किए जाएं तो पश्चिमी देशों के मीडिया के सिर शर्म से झुक जाएं। अविवाहित माताओं को लेकर भी एक डॉक्यूमेंट्री बीबीसी और उडविन को बनाना चाहिए ताकि दुनिया जान सके कि अविवाहित माताओं की क्या समस्याएं होती हैं? 
 
और जहां तक अमेरिका का प्रश्न है तो यहां हर पांचवीं महिला अपने जीवन काल में रेप का शिकार बनती है। व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में कहा गया है ‍कि इनमें से आधी से अधिक महिलाएं 18 साल की उम्र से पहले ही ऐसी वारदातों का शिकार हो जाती हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी वर्गों, नस्लों और देशों की महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। लेकिन कुछ महिलाएं अन्य के मुकाबले इस प्रकार के हमलों की अधिक शिकार होती हैं। अब जब लेस्ली उडविन ने अमेरिका में भी 'डॉटर ऑफ इंडिया' का प्रदर्शन करवाया है तो उन्हें बीबीसी के चैनल फोर के साथ मिलकर अमेरिकी स्थिति पर भी एक डॉक्यूमेंट्री बना देनी चाहिए।                    
 
इस रिपोर्ट के अनुसार 33.5 फीसदी बहु-नस्लीय महिलाओं से बलात्कार किया गया जबकि अमेरिकी-भारतीय मूल और अलास्का की 27 फीसदी महिलाओं को हवस का शिकार बनाया गया। 15 फीसदी हिस्पैनिक महिलाएं शिकार बनीं और 22 फीसदी अश्वेत और 19 फीसदी श्वेत महिलाओं को इस कृत्य का शिकार बनाया गया। बलात्कार की शिकार होने वाली अधिकतर महिलाओं को उनके परिचितों ने ही शिकार बनाया और 98 फीसदी हमलावर पुरुष थे। रिपोर्ट बताती है कि करीब दो करोड़ 20 लाख अमेरिकी महिलाओं और 16 लाख पुरुषों को अपने जीवन काल में बलात्कार का शिकार होना पड़ा है। बीबीसी और लेस्ली उडविन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अमेरिकियों को आइना दिखाते हुए भी एक डॉक्यूमेंट्री बनाएं। 
 
लेस्ली उडविन और बीबीसी अपने इस सामाजिक अभियान का दायरा बढ़ाते हुए चीन जैसे देश में भी डॉक्यूमेंट्री बनाएं क्योंकि वहां बलात्कार को एक साधारण घटना माना जाता है और वहां का मीडिया इस बात पर कभी चर्चा नहीं करता। यह बात और है कि दिल्ली गैंगरेप घटना के बाद 8 फरवरी, 2013 को चीन के प्रसिद्ध अखबारों ने छापा था कि भारत सिलसिलेवार बलात्कार की घटनाओं के लिए जाना जाता है। और चीन ने अपने देश के ना‍गरिकों को दिल्ली में सावधान रहने की भी सलाह दी थी। चीन में अगर बीबीसी और लेस्ली उडविन को कोई दिक्कत हो तो कांगो गणराज्य में उन्हें कोई नहीं रोकेगा। कांगो गणराज्य में प्रतिदिन बलात्कार की एक हजार घटनाएं दर्ज की जाती हैं जिसके शिकार न केवल महिलाएं वरन पुरुष भी होते हैं। चीन में बलात्कार और तिब्बत के लिए संघर्ष करने वाले तिब्बतियों के आंकड़े नहीं रखे जाते हैं। बीबीसी और लेस्ली उडविन चीन या तिब्बतियों को लेकर कोई डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाती हैं तो यह सारी दुनिया के लिए कौतूहल का विषय होगा।    
 
फिर भी अगर उन्हें कोई विषय ठीक नहीं लग रहा हो तो वे व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपतियों की रंगीन मिजाजी पर भी फिल्म बना सकती हैं। अमेरिकी समाज के चरित्र की यह‍ ‍स्थिति है कि बिल क्लिंटन (मोनिका लेविंस्की कांड) समेत अमेरिका के करीब एक दर्जन राष्ट्रपति व्हाइट हाउस के अंदर और बाहर चरित्रहीनता के लिए कुख्यात हुए हैं। इन लोगों पर फिल्म बनाकर उडविन और बीबीसी दुनिया को संदेश दे सकता है कि वे किसी भी देश या समाज की छवि खराब करने के काम में माहिर हैं और वे दुनिया को संदेश देने के साथ-साथ अपने कारोबारी हितों को बड़ी अच्छी तरह से संभाल सकते हैं। और भारत को उनकी इस डॉक्यूमेंट्री का सबक है कि हमें देश की छवि बिगाड़ने की साजिशों के प्रति हमेशा सतर्क रहना चाहिए।